महाक्षत्रप: Difference between revisions

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'''इनकी दो शाखाएँ थीं, यथा पश्चिमी क्षत्रप कुल,''' जिसका प्रवर्तन [[भूमक]] ने [[महाराष्ट्र]] में किया और [[उज्जयिनी]] का महाक्षत्रप कुल, जिसे [[चष्टन]] (चस्टन अथवा सष्टन) ने प्रचलित किया था। इन दोनों कुलों के प्रवर्तक शक आक्रान्ताओं के सरदार थे। पश्चिमी क्षत्रप कुल के आरम्भ की तिथि निश्चित नहीं है। कदाचित उसकी राजधानी [[नासिक]] थी और केवल दो शासकों, भूमक और [[नहपान]] के ही नाम ज्ञात हैं। दोनों में किसी की भी तिथि निश्चित नहीं है। विद्वानों ने भूमक का काल ईसा की प्रथम शताब्दी का प्रारम्भिक वर्ष माना है और नहपान का काल दूसरी शताब्दी का प्रारम्भिक वर्ष।  
'''इनकी दो शाखाएँ थीं, यथा पश्चिमी क्षत्रप कुल,''' जिसका प्रवर्तन [[भूमक]] ने [[महाराष्ट्र]] में किया और [[उज्जयिनी]] का महाक्षत्रप कुल, जिसे [[चष्टन]] (चस्टन अथवा सष्टन) ने प्रचलित किया था। इन दोनों कुलों के प्रवर्तक शक आक्रान्ताओं के सरदार थे। पश्चिमी क्षत्रप कुल के आरम्भ की तिथि निश्चित नहीं है। कदाचित उसकी राजधानी [[नासिक]] थी और केवल दो शासकों, भूमक और [[नहपान]] के ही नाम ज्ञात हैं। दोनों में किसी की भी तिथि निश्चित नहीं है। विद्वानों ने भूमक का काल ईसा की प्रथम शताब्दी का प्रारम्भिक वर्ष माना है और नहपान का काल दूसरी शताब्दी का प्रारम्भिक वर्ष।  
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पश्चिमी [[भारत]] के शक क्षत्रपों में नहपान सबसे प्रतापी था। उसका उल्लेख कई अभिलेखों में किसी अनिश्चित सम्वत् की तिथियों के साथ हुआ है। कुछ विद्वानों ने उक्त तिथियों की शक सम्वत् की तिथियों को स्वीकार किया है और उसका राज्यकाल 119 ई. से 124 ई. तक ठहराया है। उसने क्षत्रप के रूप में शासन आरम्भ किया और उपरान्त महाक्षत्रप बना। [[नहपान]] ने पश्चिमी भारत के एक विस्तृत भू-भाग पर राज्य किया और प्रभूत दान दिया। किन्तु [[सातवाहन]] शासक गौतमी पुत्र श्री [[सातकर्णी]] ने उसे परास्त करके पश्चिमी क्षत्रपों के वंश का अन्त कर दिया।
पश्चिमी [[भारत]] के शक क्षत्रपों में नहपान सबसे प्रतापी था। उसका उल्लेख कई अभिलेखों में किसी अनिश्चित सम्वत् की तिथियों के साथ हुआ है। कुछ विद्वानों ने उक्त तिथियों की शक सम्वत् की तिथियों को स्वीकार किया है और उसका राज्यकाल 119 ई. से 124 ई. तक ठहराया है। उसने क्षत्रप के रूप में शासन आरम्भ किया और उपरान्त महाक्षत्रप बना। [[नहपान]] ने पश्चिमी भारत के एक विस्तृत भू-भाग पर राज्य किया और प्रभूत दान दिया। किन्तु [[सातवाहन]] शासक [[गौतमीपुत्र सातकर्णि]] ने उसे परास्त करके पश्चिमी क्षत्रपों के वंश का अन्त कर दिया।
 
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'''उज्जयिनी के महाक्षत्रपों ने दीर्घकाल''' तक शासन किया। इस वंश का प्रवर्तक यशोभोतिक का पुत्र चस्तन अथवा चष्टन था। यशोभोतिक के नाम से ही स्पष्ट है कि वह शक था। उसका शासनकाल लगभग 130 ई. में आरम्भ हुआ और उसके वंशज 388 ई. तक राज्य करते रहे। इस वंश का सबसे महान शासक चष्टन का पौत्र [[रुद्रदामा प्रथम]] (130-150 ई.) था। उसने पश्चिमी [[भारत]] के एक विस्तृत भू-भाग पर राज्य किया और उसकी उपलब्धियाँ [[गिरनार]] नामक पर्वत पर उत्कीर्ण एक संस्कृत अभिलेख में वर्णित हैं। अभिलेख के अनुसार उसने सुदर्शन ताल के उस बाँध का पुनर्निर्माण कराया, जो सर्वप्रथम [[चन्द्रगुप्त मौर्य]] के शासनकाल में निर्मित हुआ था। रुद्रदामा के उपरान्त उसका ज्येष्ठ पुत्र [[दामघसद प्रथम]] शासक हुआ और उपरान्त उसका पुत्र [[जीवनदामा]] तथा [[दामघसद]] का भाई [[रुद्रसिंह]] सिंहासनासीन हुए।
'''उज्जयिनी के महाक्षत्रपों ने दीर्घकाल''' तक शासन किया। इस वंश का प्रवर्तक यशोभोतिक का पुत्र चस्तन अथवा चष्टन था। यशोभोतिक के नाम से ही स्पष्ट है कि वह शक था। उसका शासनकाल लगभग 130 ई. में आरम्भ हुआ और उसके वंशज 388 ई. तक राज्य करते रहे। इस वंश का सबसे महान शासक चष्टन का पौत्र [[रुद्रदामा प्रथम]] (130-150 ई.) था। उसने पश्चिमी [[भारत]] के एक विस्तृत भू-भाग पर राज्य किया और उसकी उपलब्धियाँ [[गिरनार]] नामक पर्वत पर उत्कीर्ण एक संस्कृत अभिलेख में वर्णित हैं। अभिलेख के अनुसार उसने सुदर्शन ताल के उस बाँध का पुनर्निर्माण कराया, जो सर्वप्रथम [[चन्द्रगुप्त मौर्य]] के शासनकाल में निर्मित हुआ था। रुद्रदामा के उपरान्त उसका ज्येष्ठ पुत्र [[दामघसद प्रथम]] शासक हुआ और उपरान्त उसका पुत्र [[जीवनदामा]] तथा [[दामघसद]] का भाई [[रुद्रसिंह]] सिंहासनासीन हुए।

Revision as of 12:28, 8 December 2010

महाक्षत्रप, क्षत्रप

क्षत्रप शब्द का प्रयोग ईरान से शु्रू हुआ । यह राज्यों के मुखिया के लिए प्रयुक्त होता था । दारा (डेरियस या दरियुव्ह) के समय में राज्यपालों के लिए यह उपाधि प्रयुक्त होती थी । यही बाद में महाक्षत्रप कही जाने लगी । भारत में क्षत्रप शब्द आज भी राजनीति में प्रयोग किया जाता है ।

शकों की संयुक्त शासन- प्रणाली में वरिष्ठ शासक को “महाक्षत्रप’ की उपाधि मिलती थी तथा अन्य कनिष्ठ शासक 'क्षत्रप’ कहे जाते थे । पश्चिमी क्षत्रपों के मिले सिक्कों से पता चलता है कि “महाक्षत्रप- उपाधि’ सबको नहीं मिलती है ।

क्षत्रप कुल का प्रवर्तन

इनकी दो शाखाएँ थीं, यथा पश्चिमी क्षत्रप कुल, जिसका प्रवर्तन भूमक ने महाराष्ट्र में किया और उज्जयिनी का महाक्षत्रप कुल, जिसे चष्टन (चस्टन अथवा सष्टन) ने प्रचलित किया था। इन दोनों कुलों के प्रवर्तक शक आक्रान्ताओं के सरदार थे। पश्चिमी क्षत्रप कुल के आरम्भ की तिथि निश्चित नहीं है। कदाचित उसकी राजधानी नासिक थी और केवल दो शासकों, भूमक और नहपान के ही नाम ज्ञात हैं। दोनों में किसी की भी तिथि निश्चित नहीं है। विद्वानों ने भूमक का काल ईसा की प्रथम शताब्दी का प्रारम्भिक वर्ष माना है और नहपान का काल दूसरी शताब्दी का प्रारम्भिक वर्ष।

नहपान

पश्चिमी भारत के शक क्षत्रपों में नहपान सबसे प्रतापी था। उसका उल्लेख कई अभिलेखों में किसी अनिश्चित सम्वत् की तिथियों के साथ हुआ है। कुछ विद्वानों ने उक्त तिथियों की शक सम्वत् की तिथियों को स्वीकार किया है और उसका राज्यकाल 119 ई. से 124 ई. तक ठहराया है। उसने क्षत्रप के रूप में शासन आरम्भ किया और उपरान्त महाक्षत्रप बना। नहपान ने पश्चिमी भारत के एक विस्तृत भू-भाग पर राज्य किया और प्रभूत दान दिया। किन्तु सातवाहन शासक गौतमीपुत्र सातकर्णि ने उसे परास्त करके पश्चिमी क्षत्रपों के वंश का अन्त कर दिया।

उज्जयिनी के महाक्षत्रप

उज्जयिनी के महाक्षत्रपों ने दीर्घकाल तक शासन किया। इस वंश का प्रवर्तक यशोभोतिक का पुत्र चस्तन अथवा चष्टन था। यशोभोतिक के नाम से ही स्पष्ट है कि वह शक था। उसका शासनकाल लगभग 130 ई. में आरम्भ हुआ और उसके वंशज 388 ई. तक राज्य करते रहे। इस वंश का सबसे महान शासक चष्टन का पौत्र रुद्रदामा प्रथम (130-150 ई.) था। उसने पश्चिमी भारत के एक विस्तृत भू-भाग पर राज्य किया और उसकी उपलब्धियाँ गिरनार नामक पर्वत पर उत्कीर्ण एक संस्कृत अभिलेख में वर्णित हैं। अभिलेख के अनुसार उसने सुदर्शन ताल के उस बाँध का पुनर्निर्माण कराया, जो सर्वप्रथम चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में निर्मित हुआ था। रुद्रदामा के उपरान्त उसका ज्येष्ठ पुत्र दामघसद प्रथम शासक हुआ और उपरान्त उसका पुत्र जीवनदामा तथा दामघसद का भाई रुद्रसिंह सिंहासनासीन हुए।

रुद्रसिंह के उपरान्त उसके तीन पुत्र रुद्रसेन प्रथम, संघदामा और दामसेन शासक हुए और दामसेन के उपरान्त उसके तीन पुत्र यशोदामा, विजयसेन और दामजदश्री क्रमश: सिंहासनासीन हुए। उपरान्त रुद्रसेन द्वितीय, विश्वमित्र, भर्तुदामा, रुद्रदामा द्वितीय और रुद्रसेन तृतीय (348-378 ई.) ने शासन किया। रुद्रसेन तृतीय के उत्तराधिकारी कदाचित् सिंहसेन, रुद्रसेन चतुर्थ और सत्यसिंह थे। सत्यसिंह का पुत्र और उत्तराधिकारी रुद्रसिंह तृतीय इस वंश का अन्तिम शासक था। उसे गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य ने पराजित और अपदस्थ किया। उज्जयिनी के महाक्षत्रपों का इतिहास इस दृष्टि से रोचक है कि वह दर्शाता है कि उस काल का एक विदेशी शासक वंश कितनी शीघ्रता से ही भारतीय एवं हिन्दू धर्मानुयायी बन गया तथा उसने संस्कृत को अपनी राजभाषा स्वीकार कर लिया।