राज्यश्री: Difference between revisions
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*पिता की मृत्यु के उपरान्त ही [[मालवा]] के शासक ने आक्रमण करके ग्रहवर्मा को मार डाला और राज्यश्री को बन्दी बनाकर कन्नौज के काराग़ार में डाल दिया। | *पिता की मृत्यु के उपरान्त ही [[मालवा]] के शासक ने आक्रमण करके ग्रहवर्मा को मार डाला और राज्यश्री को बन्दी बनाकर कन्नौज के काराग़ार में डाल दिया। | ||
*इसकी सूचना मिलते ही उसके ज्येष्ठ अग्रज [[राज्यवर्धन]] ने उसे काराग़ार से मुक्त कराने के लिए कन्नौज की ओर प्रस्थान किया। | *इसकी सूचना मिलते ही उसके ज्येष्ठ अग्रज [[राज्यवर्धन]] ने उसे काराग़ार से मुक्त कराने के लिए कन्नौज की ओर प्रस्थान किया। | ||
*राज्यवर्धन ने [[मालव]] शासक [[देवगुहा]] को पराजित करके मार डाला, पर वह स्वयं देवगुहा के सहायक और [[बंगाल]] के शासक [[शशांक]] द्वारा मारा गया। | |||
*इसी उथल-पुथल में राज्यश्री काराग़ार से भाग निकली और [[विन्ध्यांचल]] के जंगलों में उसने शरण ली। | *इसी उथल-पुथल में राज्यश्री काराग़ार से भाग निकली और [[विन्ध्यांचल]] के जंगलों में उसने शरण ली। | ||
*इस बीच उसका कनिष्ठ अग्रज [[हर्षवर्धन]] राज्यवर्धन का उत्तराधिकारी बन चुका था। उसने राज्यश्री को विन्ध्यांचल के जंगलों में उस समय ढूँढ निकाला, जब वह निराश होकर चिता में प्रवेश करने ही वाली थी। | *इस बीच उसका कनिष्ठ अग्रज [[हर्षवर्धन]], राज्यवर्धन का उत्तराधिकारी बन चुका था। उसने राज्यश्री को विन्ध्यांचल के जंगलों में उस समय ढूँढ निकाला, जब वह निराश होकर चिता में प्रवेश करने ही वाली थी। | ||
*हर्षवर्धन उसे कन्नौज वापस लौटा लाया और आजीवन उसको सम्मान दिया। उसने कन्नौज से ही अपने विशाल साम्राज्य का शासन कार्य किया। | *हर्षवर्धन उसे कन्नौज वापस लौटा लाया और आजीवन उसको सम्मान दिया। उसने कन्नौज से ही अपने विशाल साम्राज्य का शासन कार्य किया। | ||
*चीनी यात्री ह्वेनसांग के अनुसार वह प्राय राज्यश्री से राज्यकार्य में परामर्श लेता था। | *चीनी यात्री ह्वेनसांग के अनुसार वह प्राय राज्यश्री से राज्यकार्य में परामर्श लेता था। |
Revision as of 09:17, 15 December 2010
- राज्यश्री थानेश्वर के शासक प्रभाकरवर्धन की पुत्री और सम्राट हर्षवर्धन की भगिनी (बहन) थी।
- उसका विवाह कन्नौज के मौखरी वंशज शासक ग्रहवर्मा से हुआ था।
- पिता की मृत्यु के उपरान्त ही मालवा के शासक ने आक्रमण करके ग्रहवर्मा को मार डाला और राज्यश्री को बन्दी बनाकर कन्नौज के काराग़ार में डाल दिया।
- इसकी सूचना मिलते ही उसके ज्येष्ठ अग्रज राज्यवर्धन ने उसे काराग़ार से मुक्त कराने के लिए कन्नौज की ओर प्रस्थान किया।
- राज्यवर्धन ने मालव शासक देवगुहा को पराजित करके मार डाला, पर वह स्वयं देवगुहा के सहायक और बंगाल के शासक शशांक द्वारा मारा गया।
- इसी उथल-पुथल में राज्यश्री काराग़ार से भाग निकली और विन्ध्यांचल के जंगलों में उसने शरण ली।
- इस बीच उसका कनिष्ठ अग्रज हर्षवर्धन, राज्यवर्धन का उत्तराधिकारी बन चुका था। उसने राज्यश्री को विन्ध्यांचल के जंगलों में उस समय ढूँढ निकाला, जब वह निराश होकर चिता में प्रवेश करने ही वाली थी।
- हर्षवर्धन उसे कन्नौज वापस लौटा लाया और आजीवन उसको सम्मान दिया। उसने कन्नौज से ही अपने विशाल साम्राज्य का शासन कार्य किया।
- चीनी यात्री ह्वेनसांग के अनुसार वह प्राय राज्यश्री से राज्यकार्य में परामर्श लेता था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
(पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश') पृष्ठ संख्या-402