हेमकूट

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  • महाभारत के अनुसार हरिवर्ष के दक्षिण में स्थित एक पर्वत है।
  • इस पर्वत को पार करने के पश्चात् अर्जुन अपनी दिग्विजय यात्रा के प्रसंग मे हरिवर्ष पहुंचे थे-

‘सरोमानसमासाद्यहाटकानभितः प्रभुः गंधर्वरक्षितं देशमजयत् पांडवस्ततः।
हेमकूटमासाद्य न्यविशत् फाल्गुनस्तथा, तं हेमकूटं राजेन्द्र समतिकम्य पांडवः।
हरिवर्ष विवेशाथ सैन्येन महता वृतः’[1]

  • इससे हेमकूट तथा मानसरोवर का सान्निध्य भी सूचित होता है।
  • वास्तव में भीष्मपर्व[2] में तो हेमकूट को कैलाश का पर्याय ही कहा गया है, ‘हेमकूटस्तु सुमहान् कैलासो नाम पर्वतः’।[3]
  • मत्स्यपुराण में हेमकूट पर अप्सराओं का निवास बताया गया है।
  • विष्णुपुराण[4] में मेरुपर्वत के दक्षिण में हिमवान, हेमकूट और निषध नामक पर्वतों की स्थिति बताई गई है-‘हिमवान हेमकूटश्च निषधश्चास्य दक्षिणे’।
  • जैसा महाभारत के उपर्युक्त वर्णन से स्पष्ट है हेमकूट कैलास या उसके निकट की हिमाजय श्रेणी का नाम जान पड़ता है।
  • जैन ग्रंथ जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति में हेमकूट को जंबूद्वीप के छह वर्षपर्वतों में से एक माना गया है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सभापर्व 28-5 तथा दाक्षिणात्य पाठ
  2. भीष्मपर्व 6, 41
  3. भीष्मपर्व 6, 41
  4. विष्णुपुराण 2, 2, 10

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