सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है। करता नहीं क्यों दूसरा कुछ बातचीत, देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफिल मैं है। यों खड़ा मक़्तल में क़ातिल कह रहा है बार-बार क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है। ऐ शहीदे-मुल्को-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार अब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफिल में है। वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमां, हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है। खींच कर लाई है सब को कत्ल होने की उम्मीद, आशिक़ों का आज जमघट कूचा-ऐ-क़ातिल में है। सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-क़ातिल में है।