सीढ़ियाँ चढ़ के आती हुई सी धूप दोपहर शायद इन दिनों भी अच्छी होगी वहाँ शाम तक बैठी रहे साथ साथ रूह का गुनगुना स्पर्श। तमस को हवा उलीच के ले जाए पहाड़िन चांदी के बर्क बांटे सुबह सुबह। बाबू! जब भीड़ में चुंधिया जाओ तो देखना अक्स रूह का गुनगुना स्पर्श। रातरानियों की खुशबू अगले मौसम दूँगी धौलाधारी चांदनी में लपेट लपेट निर्गले मोसम देवदार डूबे रोम ले जाना आज दोपहर भर बैठ के खोलो पोर पोर। धूप कहे यह मेरी तुम्हारी अपनी झिंझोटी है शहर में खुले आम हांक लगाओगे डूब जाएगी। रूह का गुनगुना स्पर्श। (1984) _______________________________ 1. अगले से अगले 2. हिमाचली लोकगीत का एक प्रकार
अशोक चक्रधर · आलोक धन्वा · अनिल जनविजय · उदय प्रकाश · कन्हैयालाल नंदन · कमलेश भट्ट कमल · गोपालदास नीरज · राजेश जोशी · मणि मधुकर · शरद जोशी · प्रसून जोशी · कुमार विश्वास · डॉ. तुलसीराम · रमाशंकर यादव 'विद्रोही' · बागेश्री चक्रधर