Revision as of 16:25, 10 January 2012 by प्रकाश बादल(talk | contribs)('{| style="background:transparent; float:right" |- | {{सूचना बक्सा कविता |चित्र=Ajey.JPG |चि...' के साथ नया पन्ना बनाया)
अच्छे मौसम में
हम मैच देखते हैं
कुरते और ट्राऊज़र उतार कर
गाढ़े चश्मे पहन कर
हमारी चिकनी चमड़ियों पर
झप झप धूप झरता है aअच्छे मौसम में
उमंग से ऊपर उठता है झण्डा
राष्ट्रीय धुन के साथ
हम खड़े हो जाते हैं सम्मान में
अपने भावुक राष्ट्रपति का अनुसरण करते हुए
होंठों में बुदबुदाते हैं अधबिसरे राष्ट्र गान
आँखों के कोर भर जाते हैं
बूँद बूँद खुशियाँ
छप छप छलकतीं गुलाबी गालों पर
हमारे बगलों में सुन्दर मस्त लड़कियाँ होतीं हैं
उत्तेजक पिण्डलियों वाली
उछलती फुदकतीं
हवा उड़ाती है
स्कार्फ और मुलायम लटें
बिखेरतीं हैं इत्र की गन्ध ताज़ी
रविवार की सुबह
क़ुदरत शरीक़ होती है – रोमाँचित
हमारे उत्सव में
नीला आकाश
हरी घास
युद्ध से दूर ..........
हम मैच देखते हैं
अच्छे मौसम में
कविता नहीं लिख सकते .
घटिया मौसम में बड़ा पाठ
सूरज मुँह छिपा लेता है गर्द गुबार में
आसमान से बरस रही होती है आग
रात दिन उड़ते हैं जंगी जहाज़
नींद नहीं आती
रॉकेट और बमों के शोर में
तपता रहता है रेत / दिन भर
मरीचिकाओं में से प्रकट होती रहतीं हैं
फौलादी बख्तरबन्द गाड़ियाँ
एक के बाद एक
अनगिनत
रेडियो सिग्नल , आड़े तिरछे बंकर और ट्रेंच
बारूदी सुरंगें, ग्रेनेड फटते हैं रह- रह कर
और कान के पर्दों में घंटियाँ बजती रहतीं हैं निरंतर
कटीली तारों में उलझी हुई जाँघें
काँप रहीं होतीं हैं बेतरह
दुख रहा होता है पसलियों में खुभा हुआ संगीन
गुड़्मुड़ अजनबी भाषाएं
बर्बर और भयावह
रौंदती चली जातीं हैं हमारे ज़ख्मी पैरों को
पसीना पसीना हो जाते हैं हमारे माथे
हम चीख नहीं पाते
साँसें रोक , आतंकित
फटी आँखों से करते रह जाते हैं इंतज़ार
दुश्मन के गुज़र जाने का...................
हम युद्ध झेलेते हैं
घटिया मौसम में
कविता नहीं लिख सकते .