मृणालिनी मुखर्जी

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मृणालिनी मुखर्जी (अंग्रेज़ी: Mrinalini Mukherjee, जन्म- 1949; मृत्यु- 15 फ़रवरी, 2015) भारतीय मूर्तिकार थीं। वह कलाकार बेनोड़े बिहारी और लीला मुखर्जी की पुत्री थीं। वह अपनी उस कला के लिए जानी जाती हैं जो पाट के रेशों, मृत्तिका शिल्प और कांस्य रंग से बनी होती थी। ब्रिटेन और यूरोप में मृणालिनी मुखर्जी की कलाकृतियों की प्रदर्शनियां लगाई जा चुकी हैं। उन्‍होंने मूर्ति कला के क्षेत्र में उल्‍लेखनीय कार्य किया है। उनके द्वारा जूट के रेशों, सेरेमिक और तांबे से बनाई गईं कलाकृतियां बहुत प्रसिद्ध हैं।

जन्म

आधुनिक भारतीय मूर्तिकला के प्रमुख कलाकारों में मृणालिनी मुखर्जी का महत्वपूर्ण स्थान है। इनका जन्म सन 1949 में मुंबई में हुआ था। इनके पिता का नाम विनोद बिहारी मुखर्जी था जो एक प्रसिद्ध चित्रकार थे। मृणालिनी मुखर्जी ने सन 1970 में कला महाविद्यालय बड़ोदरा से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। सन 1970 से 1972 तक प्रो. के. जी. सुब्रमण्यम के निर्देशन में म्यूरल डिजाइन में पोस्ट डिप्लोमा प्राप्त किया। इसी समय में इन्होंने प्राकृतिक रेशों को एक माध्यम के रूप में प्रयोग करना प्रारंभ किया।[1]

मूर्ति शिल्प निर्माण

सन 1978 में मृणालिनी मुखर्जी को ब्रिटेन से छात्रवृत्ति प्राप्त हुई। सन 1994-1995 में आधुनिक कला संग्रहालय ऑक्सफोर्ड द्वारा मूर्ति शिल्पों की प्रदर्शनी हेतु आपको आमंत्रित किया गया। सन 1986 में इन्होंने हॉलैंड मैं एक अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला में भी भाग लिया। मृणालिनी मुखर्जी ने रेशों व कांस्य धातु का उपयोग करते हुए कई मूर्ति शिल्पों का निर्माण किया। उन्होंने जूट की रस्सी, सुतली, डोरी आदि का प्रयोग कर गांठ दार धरातल में त्रिआयामी प्रभाव देते हुए धातु के छल्लो का प्रयोग कर अपने मूर्ति शिल्पों को एक सुनिश्चित आकार व अभिव्यक्ति प्रदान की है।

आधुनिक और प्रयोगवादी शैली

मृणालिनी मुखर्जी की कला शैली आधुनिक और प्रयोगवादी हैं। विषयवस्तु मुख्य रूप से प्रकृति से संबंधित है। इनके द्वारा निर्मित मूर्ति शिल्पों मैं वनराजा, पुरुष, वाटरफॉल, देवी, वुमन, ऑन पीकॉक, पुष्प, पाम, स्केप श्रृखला आदि हैं।[1]

पाम स्केप मूर्ति शिल्प के माध्यम से मृणालिनी मुखर्जी ने प्रकृति सी कोमलता व सहजता को बहुत बारीकी के साथ कांस्य में डालने में सफलता प्राप्त की। वहीं वन राजा मूर्ति शिल्प में वनराजा सिंह को खड़ी मुद्रा में सीधे तने हुए दिखाया गया है। जिसके हाथ नीचे कि ओर प्रतीत होते हैं। वनराजा की अभिव्यक्ति के लिए सिंहासन बनाया गया है, जिस पर फाइबर (रेशों) गांठे डालकर अलग-अलग पैटर्न या नमूने बनाए गए हैं। वनराज को बैंगनी रंग शेष शिल्प को हरे रंग के तानों के रेशे व गांठे डालकर अलग-अलग पैटर्न या नमूने बनाए गए हैं।

मृत्यु

कला के क्षेत्र में मृणालिनी मुखर्जी के योगदान के लिए अनेक पुरस्कार प्रदान किए गए हैं। 65 वर्ष की उम्र में 15 फ़रवरी 2015 में दिल्ली में इनका देहवसान हो गया।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 मृणालिनी मुखर्जी की जीवनी (हिंदी) fineartist.in। अभिगमन तिथि: 14 अक्टूबर, 2021।

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