मलिक अम्बर

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मलिक अम्बर, एक हब्शी ग़ुलाम था, वह तरक़्क़ी करके वज़ीर के पद तक पहुँचा था। उसने पहली बार 1601 ई. में नाम क़माया, जब उसने मुग़ल सेना को हराया। 1626 ई. में उसकी मृत्यु हुई।

व्यक्तित्व

मलिक अम्बर अहमदनगर में बस गया था। चाँद सुल्तान की मृत्यु के बाद वह तरक़्क़ी करके अहमदनगर के वज़ीर के पद पर पहुँच गया। वहाँ का राज्य प्रबन्ध अनेक वर्षों तक उसके हाथ में रहा। वह जितना योग्य सिपहसलार था, उतना ही योग्य राजनेता भी था। उसमें नेतृत्व के सहज गुण थे और मध्ययुगीन भारत के सबसे बड़े राजनीतिज्ञों में उसकी गणना की जाती थी।

शासन व्यवस्था

उसने अहमदनगर राज्य की उत्तम शासन व्यवस्था की। इसके अलावा उसने राज्य में मालगुज़ारी की व्यवस्था भी बड़े सुन्दर ढंग से की। सारी कृषि योग्य भूमि को उर्वरता के आधार पर चार श्रेणियों में विभाजित कर दिया और लग़ान स्थायी रूप से निश्चित कर दिया गया, जो नक़द लिया जाता था। लग़ान की वसूली राज्य के अधिकारी गाँव के पटेल से करते थे।

मुग़लों से युद्ध

मुग़ल सेना दौलताबाद पर अधिकार करना चाहती थी, जो कि अहमदनगर सल्तनत की राजधानी थी। 1601 ई. में राजधानी यहीं स्थानान्तरित कर दी गई थी। उसी के उद्योग से अहमदनगर पर क़ब्ज़ा करने के जहाँगीर के सारे प्रयत्न विफल हो गए। उसने अहमदनगर को बादशाह जहाँगीर के पंजे से बचाने की जी तोड़ कोशिश की। लेकिन 1616 ई. में जब बहुत बड़ी मुग़ल सेना ने अहमदनगर पर चढ़ाई की तो मलिक अम्बर को आत्म समर्पण करना पड़ा। उस समय शाहज़ादा ख़ुर्रम मुग़ल सेना का नेतृत्व कर रहा था।

मृत्यु

मलिक अम्बर ने बड़े सम्मान के साथ जीवन बिताया और 1626 ई. में बहुत वृद्ध हो जाने पर उसकी मृत्यु हुई। उसकी मृत्यु के बाद ही अहमदनगर सल्तनत को मुग़ल साम्राज्य में सम्मिलित किया जा सका।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

(पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश') पृष्ठ संख्या-15 और 350


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