प्रणववाद

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 12:47, 4 February 2011 by प्रिया (talk | contribs) (Adding category Category:हिन्दू धर्म कोश (को हटा दिया गया हैं।))
Jump to navigation Jump to search
  • इस सिद्धान्त के अनुसार शब्द अथवा नाद को ही ब्रह्म या अन्तिम तत्त्व मानकर उसकी उपासना की जाती है।
  • किसी न किसी रूप में सभी योगसाधना के अभ्यासी शब्द की उपासना करते हैं।
  • यह प्रणाली अतिप्राचीन है।
  • प्रणव के रूप में इसका मूल वेदमंत्रों में वर्तमान है।
  • इसका प्राचीन नाम 'स्फोटवाद' भी है।
  • छठी शताब्दी के लगभग सिद्धयोगी भर्तुहरि ने प्रसिद्ध ग्रन्थ वाक्यपदीय में 'शब्दाद्वैतवाद' का प्रवर्तन किया था।
  • नाथ सम्प्रदाय में भी शब्द की उपासना पर ही ज़ोर दिया जाता है।
  • चरनदासी पन्थ में भी शब्द का प्राधान्य है।
  • आधुनिक संतमार्गी राधास्वामी सत्संगी लोग शब्द की ही उपासना करते हैं।



पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः