लॉर्ड लिटन प्रथम

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लार्ड लिटन प्रथम भारत का 1876 ई. से 1880 ई.) तक वाइसराय तथा गवर्नर-जनरल रहा। इसका पूरा नाम रॉबर्ट बुलवेर लिटन एडवर्ड था, जिसका जन्म-8 नवम्बर, 1831 को लन्दन, इंग्लैण्ड में हुआ था और मृत्यु-24 नवम्बर, 1891 को पेरिस, फ़्राँस में हुई। इसका एक उपनाम ओवेन मेरेडिथ भी था। अपने जीवनकाल में ये एक कवि के रूप में भी प्रसिद्ध रहा। वह एक विद्वान शासक था और उसका व्यक्तित्व बाहर से देखते ही विशिष्ट प्रतीत होता था।

राजनयिक जीवन

प्रथम बैरन लिटन के पुत्र रॉबर्ट लिटन ने अपना राजनयिक जीवन वांशिगटन में मंत्री रहे अपने चाचा के अवैतनिक सहायक के रूप में शुरू किया। उनकी पहली वैतनिक नियुक्ति (1858 ई.) वियना में हुई और 1874 में उन्हें लिस्बन में मंत्री बनाया गया। 1873 ई. में उन्हें विरासत के रूप में अपने पिता की बैरन की उपाधि मिली। नवम्बर 1875 में प्रधानमंत्री बेंजामिन डिज़रायली ने लिटन को भारत का गवर्नर-जनरल नियुक्त किया।

शासनकाल

लिटन प्रथम का शासनकाल उज्जवल नहीं कहा जा सकता। जिस समय उसने शासन-भार सम्भाला, देश में भयंकर अकाल फैला था। सारा दक्षिण भारत दो वर्ष, 1876 से 1878 ई. तक भयंकर रूप से पीड़ित रहा। दूसरे वर्ष अकाल मध्य भारत तथा पंजाब में भी फैल गया। इससे लगभग पचास लाख व्यक्तियों का जीवन प्रभावित हो गया। सरकार ने अकाल के मुँह से लोगों की जान बचाने के लिए जो उपाय किए वे अपर्याप्त थे।

अकाल कमीशन

अकाल के ही समय वाइसराय ने 1877 ई. में दिल्ली में एक अत्यन्त शानदार दरबार किया, जिसमें महारानी विक्टोरिया को भारत की सम्राज्ञी घोषित किया गया। बाद में उसने जनरल रिचर्ड स्ट्रैची की अध्यक्षता में अकाल के कारणों तथा सहायता के प्रश्न पर विचार करने के लिए अकाल कमीशन नियुक्त किया। इसकी रिपोर्ट के आधार पर एक अकाल कोड का निर्माण किया गया। जिसमें भविष्य में अकाल का सामना करने के लिए कुछ ठोस सिद्धान्त निर्धारित किये गये।

नीतियाँ

लार्ड लिटन के शासनकाल में सारे ब्रिटिश भारत तथा देशी रियासतों में एक समान नमक कर निर्धारित किया गया। इससे नमक की तस्करी बन्द हो गई और सिन्धु नदी पर स्थित अटक से लेकर दक्षिण में महानदी तक 2500 मील की दूरी में नागफनी की कटीली झाड़ी चुंगी के बाड़ के रूप में खड़ी की गई थी, उसे हटाना सम्भव हो गया। वस्तुत: लंकाशायर की सूती कपड़ा मिलों के हित में परन्तु प्रकट रूप में मुक्त व्यापार के नाम लार्ड लिटन ने अपनी एक्जीक्यूटिव कौंसिल की अवहेलना करके, सूती कपड़ों के आयात पर लगाया गया 5 प्रतिशत कर हटा दिया और इस प्रकार भारत के सूती वस्त्र उद्योग का विस्तार रोक दिया। 1878 ई. में उसने भारतीयों के द्वारा अपने देशी भाषा के पत्रों में सरकार के कार्यों की प्रतिकूल आलोचनाओं को रोकने के लिए वर्नाकुलर प्रेस एक्ट पास किया। यह प्रतिक्रियावादी क़ानून था, जिसे चार वर्ष के बाद उसके उत्तराधिकारी लार्ड रिपन ने रद्द कर दिया।

अनुचित घोषणा

लार्ड लिटन का सबसे दुर्भाग्यपूर्ण और अनुचित कार्य था, 1878 ई. में अफ़ग़ानिस्तान के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर देना। वहाँ अपने कार्यकाल के दौरान लिटन ने मुख्य रूप से अफ़ग़ानिस्तान के साथ भारत के सम्बन्धों पर ध्यान केन्द्रित किया। उसकी नियुक्ति के समय अफ़ग़ानिस्तान में रूसी प्रभाव बढ़ रहा था और लिटन को आदेश मिला था कि वह इसको प्रभावहीन करे या सेना नियुक्त कर सीमाओं को सुदृढ़ करे। जब रूसियों को निकालने के लिए अफ़ग़ानों को राज़ी करने की वार्ता विफल हो गई, तो लिटन ने बल का प्रयोग किया। जिससे 1878-80 ई. का द्वितीय अफ़ग़ान-युद्ध हुआ। दूसरा अफ़ग़ान-युद्ध (1878-88 ई.) साम्राज्यवादी उद्देश्यों की पूर्ति के लिए छेड़ा गया था। इसमें धन व जन की भारी हानि हुई थी। इस युद्ध का भारी ख़र्चा अधिकांशत: भारतीय करदाता को उठाना पड़ा, जो लार्ड लिटन के प्रशासन पर एक काला धब्बा छोड़ गया।

लिटन का इस्तीफ़ा

1880 में लिटन ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया और उसे उसी वर्ष लिटन का अर्ल एवं वाइकाउण्ट नेबवर्थ बनाया गया। लिटन के वाइसराय काल में अफ़ग़ानिस्तान पर ज़्यादा ध्यान दिया गया, लेकिन उसने भारतीय प्रशासन के लिए भी काफ़ी काम किया। उसने अकाल राहत के कारगर उपायों की निगरानी की, आन्तरिक सीमा शुल्क बाधाओं को दूर किया, वित्तीय व्यवस्था का विकेन्द्रीकरण किया, महारानी विक्टोरिया को भारत की साम्राज्ञी घोषित किया और सिविल सर्विस के 1/6 प्रतिशत पद भारतीयों के लिए आरक्षित किए। लिटन ने फ़्राँस में ब्रिटिश राजदूत (1887-91 ई.) के रूप में अपना कार्यकाल समाप्त किया।

कवि रूप

लिटन के समकालीन उन्हें राजनयिक या प्रशासक के बजाय कवि के रूप में ज़्यादा जानते थे। उसके प्रथम संग्रह-क्लाइटेम्नेस्ट्रा एण्ड अदर पोयम्स (1855 ई) शीर्षक से वर्णनात्मक छन्दों की पुस्तक और द वांडरर (1858 ई.) शीर्षक से आत्मकथात्मक गीतों की पुस्तक सफल रही। विनोदपूर्ण एवं रोमानी छन्दबद्ध उपन्यास ल्यूसाइल (1860 ई.) भी लोकप्रिय हुआ। 1883 ई. में उन्होंने द लाइफ़ एण्ड लिटरेरी रिमेंस ऑफ़ एडबर्ड बुलवेर, लार्ड लिटन शीर्षक से दो खण्डों में एक पुस्तक प्रकाशित की।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

(पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश') पृष्ठ संख्या-421 (पुस्तक 'भारत ज्ञानकोश') पृष्ठ संख्या-159


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