कुमारिल भट्ट

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 06:35, 4 May 2011 by लक्ष्मी (talk | contribs) ('*कुमारिल भट्ट (लगभग 670 ई) मीमांसा दर्शन के दो प्रधान सं...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search
  • कुमारिल भट्ट (लगभग 670 ई) मीमांसा दर्शन के दो प्रधान संप्रदायों में से एक एवं भट्ट संप्रदाय के संस्थापक थे। ईसा की सातवीं शताब्दी में पैदा कुमारिल भट्ट ने मीमांसा दर्शन के भट्ट सम्प्रदाय की स्थापना की थी।
  • कुमारिल भट्ट, शंकराचार्य से और वाचस्पति मिश्र (850 ई.) से पहले हुए। एवं भवभूति (620-680) इन्हीं के शिष्य थे।
  • कुछ विद्वान कुमारिल भट्ट को दक्षिण का निवासी मानते हैं।
  • कुमारिल ने ज्ञान के स्वरूप तथा उसके साधनों का विवेचन विस्तार से किया है। उनके अनुसार जिस समय को किसी वस्तु का ज्ञान होता है, उसी समय उसकी सत्यता का भी ज्ञान हो जाता है। उसकी सत्यता सिद्ध करने के लिए किसी अन्य प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती।
  • कुमारिल के मतानुसार संसार की उत्पत्ति तथा प्रलय नहीं होता। जीवों का जन्म-मरण चलता रहता है। किन्तु समग्र संसार की उत्पत्ति होती है, न विनाश। न्याय दर्शन की भाँति वे भी ईश्वर को जगत का कारण नहीं मानते। उनके अनुसार आत्मा नित्य तथा कर्त्ता और कर्म-फल-भोक्ता दोनों है। वेदान्त का अध्ययन और चिन्तन मोक्ष प्राप्ति में सहायक होता है। मोक्ष की स्थिति में सुख की भी अनुभूति नहीं रहती, आत्मा दु:ख से पूर्णत: मुक्त हो जाती है।

रचनाएँ

कुमारिल ने शाबर भाष्य पर तीन प्रसिद्ध वृतिग्रन्थों की रचना की।

  • श्लोक वार्तिक
  • तंत्रवार्तिक
  • दुप्टीका।




पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः