रोमन कलॅण्डर

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ईस्वी पूर्व 45 से पहले तक रोम साम्राज्य में रोमन कलैंडर प्रचलित था। वह 1 मार्च से प्रारंभ होता था। वर्ष में केवल 10 माह होते थे -

  1. मार्टिअस,
  2. एप्रिलिस,
  3. मेअस,
  4. जूनिअस,
  5. क्विंटिलिस,
  6. सैक्सिटिलिस,
  7. सेप्टेम्बर,
  8. अक्टूबर,
  9. नवंबर तथा
  10. दिसंबर।
किये गये सुधार

इन 10 महीनों के वर्ष में केवल 304 दिन होते थे। इसके बाद कड़ाके की सर्दी पड़ती थी और तब कोई विशेष काम नहीं होता था। लिहाजा 61 दिन का समय छोड़ दिया जाता था। माना जाता है कि रोम के सम्राट ‘नुमा पांपिलिअस’ ने दिसंबर और मार्च महीनों के बीच फरवरी और जनवरी माह जोड़े। इससे वर्ष में दिनों की संख्या 354 या 355 हो गई। हर दो वर्ष बाद 22 या 23 दिनों का अधिमास जोड़ कर 366 दिन का वर्ष मान लिया जाता था। इसमें सुधार किए जाते रहे। बाद में कलैंडर की गणनाएं चंद्रमा के बजाय दिनों के आधार पर की जाने लगीं। पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा की गणना के आधार पर वर्ष में दिनों की संख्या 365.25 हो गई। इस सवा अर्थात एक चौथाई दिन से गणना में बड़ा भ्रम पैदा होने लगा।

जुलियस सीजर के सुधार

तब रोम के शासक जूलियस सीज़र ने रोमन कलैंडर में सुधार किया। ईस्वी पूर्व 44 में 'क्विंटिलिस माह' का नाम बदल कर जूलियस सीजर के सम्मान में ‘जुलाई’ रख दिया गया। जूलियस सीजर ने कलैंडर को सुधारने में मिस्र के खगोलविद 'सोसिजेनीज' की मदद ली। वर्ष 1 जनवरी से शुरू किया गया। वर्ष का आरंभ बहुत पिछड़ चुका था। इसलिए उसने आदेश दिया कि ईस्वी पूर्व 46 में 67 दिन जोड़ दिए जाएं। इस तरह ई.पू. 46 में कुल 445 दिन हो गए। इससे भ्रांति बढ़ गई। इसलिए 445 दिनों के उस वर्ष को ‘भ्रांति वर्ष’ कहा जाता है। उसने यह भी आदेश दिया कि उसके बाद हर चौथे वर्ष को छोड़ कर प्रत्येक वर्ष 365 दिन का होगा। चौथा वर्ष लीप वर्ष होगा और उसमें 366 दिन होंगे। फरवरी को छोड़ कर प्रत्येक माह में 31 या 30 दिन होंगे। फरवरी में 28 दिन होंगे लेकिन लीप वर्ष में फरवरी में 29 दिन माने जाएंगे। अनुमान है कि 8 ईस्वी पूर्व में 'सम्राट ऑगस्टस' के नाम पर 'सेक्सटिलिस माह' का नाम ‘अगस्त’ रख दिया गया।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कलैंडर का विज्ञान (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 1जुलाई, 2011।

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