आँखों में रंगीन नज़ारे सपने बड़े-बड़े भरी धार लगता है जैसे बालू बीच खड़े । बहके हुए समंदर मन के ज्वार निकाल रहे दरकी हुई शिलाओं में खारापन डाल रहे मूल्य पड़े हैं बिखरे जैसे शीशे के टुकड़े. ! नजरों के ओछेपन जब इतिहास रचाते हैं पिटे हुए मोहरे पन्ना-पन्ना भर जाते हैं बैठाए जाते हैं सच्चों पर पहरे तगड़े । अंधकार की पंचायत में सूरज की पेशी किरणें ऐसे करें गवाही जैसे परदेसी सरेआम नीलाम रोशनी ऊँचे भाव चढ़े । आँखों में रंगीन नज़ारे सपने बड़े-बड़े भरी धार लगता है जैसे बालू बीच खड़े ।
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