तंदूरी पाककला

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मिट्टी की बेलनाकार भट्टी या तंदूर में लकड़ी के कोयले की आंच पर भोजन पकाने की पद्धति को तंदूरी पाककला कहते है।

  • तंदूर विशाल कलश की आकृति वाला होता है, यह तंदूर कम से कम एक मीटर ऊंचा और प्राय: गर्दन तक ज़मीन में धंसा होता है।
  • ऐसा माना जाता है कि तंदूरी पाककला का जन्म फ़ारस में हुआ, जहाँ से यह किसी एक या अन्य रूप में संपूर्ण भारत में लोकप्रिय हो गई।
  • तंदूर को गर्म करने के लिए इसमें पहले लकड़ी या कोयले की आग घंटो तक जलाकर रखी जाती।
  • मसालेदार कबाब (मांस) को दही और मसाले में लपेटकर लोहे की पतली छड़ों में पिरोकर गर्म तंदूर में रखकर पकाया जाता है। यह पककर तंदूरी रंग का (सुर्ख़ नारंगी लाल) हो जाता है, तब इसमें प्राकृतिक वनस्पति रंग मिलाया जाता है।
  • गेहूं के आटे से बना अंडाकार नान (रोटी) तंदूर की भीतरी दीवार पर लगाकर पकाया जाता है।
  • तंदूरी मुर्ग़ा तंदूरी पाककला का सर्वाधिक लोकप्रिय व्यंजन है। पंख वग़ैरह साफ़ करने के बाद पूरा मुर्ग़ा तंदूर में जल्दी ही भून जाता है।


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