बख्शी ग्रन्थावली-3

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 08:42, 13 December 2012 by आरुष परिहार (talk | contribs) (''''बख्शी ग्रन्थावली-3''' हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

बख्शी ग्रन्थावली-3 हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी की 'बख्शी ग्रन्थावली' का तीसरा खण्ड है। इस खण्ड में शोध और समीक्षा सर्जनात्मक विधा है। साहित्य का विशिष्ट अंग है और आलोचना के सिद्धान्तों की परिधि में ही रहकर साहित्यिक कृतियों की समीक्षा की जाती है।

बख्शी जी ने 'यदि मैं लिखता' शीर्षक से हिन्दी की कुछ प्रमुख रचनाओं पर रचनात्मक ढंग से अपनी समीक्षाएँ प्रस्तुत की हैं। बख्शी जी ने समीक्षा के आधार पर कृति के उद्देश्यों की रक्षा करते हुए एक नवीन कृति प्रस्तुत करना बख्शी जी के साहित्य की प्रमुख विशेषता है। सृजनात्मक समीक्षा की पद्धति हिन्दी के अन्य समीक्षकों में लगभग नगण्य है, पुन: सृजन की यह विशेषता बख्शी जी के निबन्ध और साहित्य में अन्त तक बनी रही। बख्शी जी साहित्यकार के रचनात्मक धर्म के लिए उसी समीक्षा को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं जिसमें तुलना के माध्यम से किसी घटना वस्तुस्थिति या पात्र के चरित्र का वैशिष्ट्य निरुपित किया जा सके। इस प्रसंग में बख्शी जी ने विश्व कथा-साहित्य और काव्य के सैकड़ों सन्दर्भ प्रस्तुत किये हैं। किसी कृति की कमियों की ओर संकेत करते समय बख्शी जी अपूर्व तर्क और मनोवैज्ञानिक दृष्टि का परिचय देते हैं। उनकी सहमति से असहमति नहीं प्रगट की जा सकती। इन सारी विशेषताओं के कारण बख्शी जी के ये निबन्ध हिन्दी साहित्य में अलग अस्तित्व रखते हैं। समीक्षा में बख्शी जी ने और पाश्चात्य साहित्य समीक्षा के सैद्धान्तिक पक्ष का आडम्बर न दिखाते हुए सुन्दर तुलनात्मक समीक्षा का रूप उपस्थित किया है। तुलनात्मक समीक्षक के जनक के रूप में उन्हें देखा जाये तो गलत न होगा।[1]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्रीवास्तव, डॉ. नलिनी। सम्पूर्ण बख्शी ग्रन्थावली आठ खण्डों में (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) वाणी प्रकाशन (ब्लॉग)। अभिगमन तिथि: 13 दिसम्बर, 2012।

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः