मुस्कुराकर चल मुसाफिर -गोपालदास नीरज

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 14:18, 3 February 2013 by व्यवस्थापन (talk | contribs) (Text replace - " मंजिल " to " मंज़िल ")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search
मुस्कुराकर चल मुसाफिर -गोपालदास नीरज
कवि गोपालदास नीरज
जन्म 4 जनवरी, 1925
मुख्य रचनाएँ दर्द दिया है, प्राण गीत, आसावरी, गीत जो गाए नहीं, बादर बरस गयो, दो गीत, नदी किनारे, नीरज की पाती, लहर पुकारे, मुक्तकी, गीत-अगीत, विभावरी, संघर्ष, अंतरध्वनी, बादलों से सलाम लेता हूँ, कुछ दोहे नीरज के
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
गोपालदास नीरज की रचनाएँ

पंथ पर चलना तुझे तो मुस्कुराकर चल मुसाफिर!
वह मुसाफिर क्या जिसे कुछ शूल ही पथ के थका दें?
हौसला वह क्या जिसे कुछ मुश्किलें पीछे हटा दें?
वह प्रगति भी क्या जिसे कुछ रंगिनी कलियाँ तितलियाँ,

मुस्कुराकर गुनगुनाकर ध्येय-पथ, मंज़िल भुला दें?
ज़िन्दगी की राह पर केवल वही पंथी सफल है,
आँधियों में, बिजलियों में जो रहे अविचल मुसाफिर!
पंथ पर चलना तुझे तो मुस्कुराकर चल मुसाफिर॥

जानता जब तू कि कुछ भी हो तुझे ब़ढ़ना पड़ेगा,
आँधियों से ही न खुद से भी तुझे लड़ना पड़ेगा,
सामने जब तक पड़ा कर्र्तव्य-पथ तब तक मनुज ओ!
मौत भी आए अगर तो मौत से भिड़ना पड़ेगा,

है अधिक अच्छा यही फिर ग्रंथ पर चल मुस्कुराता,
मुस्कुराती जाए जिससे ज़िन्दगी असफल मुसाफिर!
पंथ पर चलना तुझे तो मुस्कुराकर चल मुसाफिर।

याद रख जो आँधियों के सामने भी मुस्कुराते,
वे समय के पंथ पर पदचिह्न अपने छोड़ जाते,

चिह्न वे जिनको न धो सकते प्रलय-तूफ़ान घन भी,
मूक रह कर जो सदा भूले हुओं को पथ बताते,
किन्तु जो कुछ मुश्किलें ही देख पीछे लौट पड़ते,
ज़िन्दगी उनकी उन्हें भी भार ही केवल मुसाफिर!
पंथ पर चलना तुझे तो मुस्कुराकर चल मुसाफिर॥

कंटकित यह पंथ भी हो जायगा आसान क्षण में,
पाँव की पीड़ा क्षणिक यदि तू करे अनुभव न मन में,
सृष्टि सुख-दुख क्या हृदय की भावना के रूप हैं दो,
भावना की ही प्रतिध्वनि गूँजती भू, दिशि, गगन में,
एक ऊपर भावना से भी मगर है शक्ति कोई,
भावना भी सामने जिसके विवश व्याकुल मुसाफिर!
पंथ पर चलना तुझे तो मुस्कुराकर चल मुसाफिर॥

देख सर पर ही गरजते हैं प्रलय के काल-बादल,
व्याल बन फुफारता है सृष्टि का हरिताभ अंचल,
कंटकों ने छेदकर है कर दिया जर्जर सकल तन,
किन्तु फिर भी डाल पर मुसका रहा वह फूल प्रतिफल,
एक तू है देखकर कुछ शूल ही पथ पर अभी से,
है लुटा बैठा हृदय का धैर्य, साहस बल मुसाफिर!
पंथ पर चलना तुझे तो मुस्कुराकर चल मुसाफिर॥

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः