अब तुम्हारा प्यार भी -गोपालदास नीरज

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 11:46, 11 September 2013 by रविन्द्र प्रसाद (talk | contribs) ('{| style="background:transparent; float:right" |- | {{सूचना बक्सा कविता |चित्र=Gopaldas-Neeraj.jp...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search
अब तुम्हारा प्यार भी -गोपालदास नीरज
कवि गोपालदास नीरज
जन्म 4 जनवरी, 1925
मुख्य रचनाएँ दर्द दिया है, प्राण गीत, आसावरी, गीत जो गाए नहीं, बादर बरस गयो, दो गीत, नदी किनारे, नीरज की पाती, लहर पुकारे, मुक्तकी, गीत-अगीत, विभावरी, संघर्ष, अंतरध्वनी, बादलों से सलाम लेता हूँ, कुछ दोहे नीरज के
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
गोपालदास नीरज की रचनाएँ

अब तुम्हारा प्यार भी मुझको नहीं स्वीकार प्रेयसि !
चाहता था जब हृदय बनना तुम्हारा ही पुजारी,
छीनकर सर्वस्व मेरा तब कहा तुमने भिखारी,
आँसुओं से रात दिन मैंने चरण धोये तुम्हारे,
पर न भीगी एक क्षण भी चिर निठुर चितवन तुम्हारी,
जब तरस कर आज पूजा-भावना ही मर चुकी है,
तुम चलीं मुझको दिखाने भावमय संसार प्रेयसि !
अब तुम्हारा प्यार भी मुझको नहीं स्वीकार प्रेयसि !

        भावना ही जब नहीं तो व्यर्थ पूजन और अर्चन,
        व्यर्थ है फिर देवता भी, व्यर्थ फिर मन का समर्पण,
        सत्य तो यह है कि जग में पूज्य केवल भावना ही,
        देवता तो भावना की तृप्ति का बस एक साधन,
        तृप्ति का वरदान दोनों के परे जो-वह समय है,
        जब समय ही वह न तो फिर व्यर्थ सब आधार प्रेयसि !
        अब तुम्हारा प्यार भी मुझको नहीं स्वीकार प्रेयसि !

अब मचलते हैं न नयनों में कभी रंगीन सपने,
हैं गये भर से थे जो हृदय में घाव तुमने,
कल्पना में अब परी बनकर उतर पाती नहीं तुम,
पास जो थे हैं स्वयं तुमने मिटाये चिह्न अपने,
दग्ध मन में जब तुम्हारी याद ही बाक़ी न कोई,
फिर कहाँ से मैं करूँ आरम्भ यह व्यापार प्रेयसि !
अब तुम्हारा प्यार भी मुझको नहीं स्वीकार प्रेयसि !

        अश्रु-सी है आज तिरती याद उस दिन की नजर में,
        थी पड़ी जब नाव अपनी काल तूफ़ानी भँवर में,
        कूल पर तब हो खड़ीं तुम व्यंग मुझ पर कर रही थीं,
        पा सका था पार मैं खुद डूबकर सागर-लहर में,
        हर लहर ही आज जब लगने लगी है पार मुझको,
        तुम चलीं देने मुझे तब एक जड़ पतवार प्रेयसि !
        अब तुम्हारा प्यार भी मुझको नहीं स्वीकार प्रेयसि !

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः