ज्वार भाटा

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पृथ्वी पर स्थित सागरों के जल-स्तर का सामान्य-स्तर से उपर उठना ज्वार तथा नीचे गिरना भाटा कहलाता है। ज्वार-भाटा की घटना केवल सागर पर ही लागू नहीं होती बल्कि उन सभी चीजों पर लागू होती है जिन पर समय एवं स्थान के साथ परिवर्तनशील गुरुत्व बल लगता है।

शब्दार्थ

ज्वार का अर्थ है उठना और भाटा का गिरना या सिमटना। अर्थात समुद्र का उठना और गिरना। इसका अर्थ केवल लहरों के उठने गिरने से ही मत लगाना। 'ज्वार-भाटा' समुद्र के तल के उठने और गिरने से भी आते हैं। जल का स्तर अचानक बढ़ना शुरू होता है, फिर नीचे गिरने लगता है।

उत्पत्ति

पृथ्वी, चन्द्रमा और सूर्य की पारस्परिक गुरुत्वाकर्षण शक्ति की क्रियाशीलता ही ज्वार-भाटा की उत्पत्ति का प्रमुख कारण है। पृथ्वी अपनी धुरी पर पूर्व की ओर घूमती है। एक माह में अपनी धुरी पर वह 28 चक्कर लगाती है। इसी तरह चंद्रमा पृथ्वी के चक्कर काटता है। पृथ्वी की गति मात्रा चंद्रमा से 81.5 गुना अधिक है। दोनों ही इस्पात की गेंदों जैसे हैं। चंद्रमा जब भी पृथ्वी के निकट आता है तो पृथ्वी में खिंचाव सा पैदा कर देता है। सूर्य भी ऐसा ही करता है। ये दोनों ही पृथ्वी को अपनी ओर खींचते हैं। सारी पृथ्वी पर ही इस खींचातानी का प्रभाव पड़ता है। ठोस जमीन तो ऊपर उठ नहीं पाती, पर जो तल ठोस नहीं होता न, अत: इस आकर्षण के कारण समुद्र का जल ऊपर उठने के लिए उमड़ने लगता है। क्योंकि सूर्य के मुकाबले चंद्रमा पृथ्वी के अधिक निकट है तो उसका खिंचाव पृथ्वी पर सूर्य के खिंचाव से अधिक प्रभावशाली होता है। यही कारण है कि अधिकतर ज्वार-भाटे चंद्रमा के कारण आते हैं। क्योंकि चंद्रमा अपने परिक्रमा पथ में भूमध्य रेखा के उत्तर-दक्षिण भी घूमता है। अत: पृथ्वी से उसकी दूरी घटती-बढ़ती रहती है। जब वह पृथ्‍वी के समीप आता है तो 'ज्वार' और दूरी बढ़ने पर 'भाटा' उत्पन्न होता है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. समुद्र : ज्वार-भाटा (हिंदी) वेबदुनिया हिंदी। अभिगमन तिथि: 15 नवम्बर, 2013।

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