युवकों के प्रति -स्वामी विवेकानन्द

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 11:20, 19 January 2014 by गोविन्द राम (talk | contribs) ('{{सूचना बक्सा पुस्तक |चित्र=Yuvakon ke prati-vivekanand.jpg |चित्र का नाम='...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search
युवकों के प्रति -स्वामी विवेकानन्द
लेखक स्वामी विवेकानन्द
मूल शीर्षक युवकों के प्रति
प्रकाशक रामकृष्ण मठ
प्रकाशन तिथि 1 जनवरी, 1998
देश भारत
भाषा हिंदी
विषय दर्शन
मुखपृष्ठ रचना अजिल्द

युवकों के प्रति नामक पुस्तक स्वामी विवेकानंद द्वारा रचित है। युवावस्था मानवजीवन का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण काल है। इसी अवस्था में मानव की अन्तर्निहित अनेकविध शक्तियाँ विकासोन्मुख होती हैं। संसार के राजनैतिक, सामाजिक या धार्मिक क्षेत्र में आज तक जो भी हितकर क्रान्तियाँ हुईं उनका मूलस्रोत युवाशक्ति ही रही है। वर्तमान युग में मोहनिद्रा में मग्न हमारी मातृभूमि की दुर्दिशा तथा अध्यात्मज्ञान के अभाव से उत्पन्न समग्र मानवजाति के दुःख-क्लेश को देखकर जब परिव्राजक स्वामी विवेकानन्द व्यथित हृदय से इसके प्रतिकार का उपाय सोचने लगे तो उन्हें स्पष्ट उपलब्धि हुई कि हमारे बलवान्, बुद्धिमान, पवित्र एवं निःस्वार्थ युवकों द्वारा ही भारत एवं समस्त संसार का पुनरुत्थान होगा। उन्होंने गुरुगम्भीर स्वर से हमारे युवकों को ललकारा : ‘‘उठो, जागो—शुभ घड़ी आ गयी है’’, ‘‘उठो, जागो तुम्हारी मातृभमि तुम्हारा बलिदान चाहती है’’, ‘‘उठो, जागो—सारा संसार तुम्हें आह्वान कर रहा है !’’

युवाशक्ति को प्रबोधित करने के लिए स्वामीजी ने आसेतुहिमाचल भारतवर्ष के विभिन्न प्रान्तों में जो तेजोदीप्त भाषण दिये उन्हें पढ़ते हुए आज भी हृदय में नवीन शक्ति और प्रेरणा का संचार होता है। युवकों के लिए इन स्फूर्तिदायी भाषणों का एक स्वतन्त्र संग्रह अत्यन्त आवश्यक था। अद्वैत आश्रम, कलकत्ता द्वारा ‘To the Youth of India’ नाम से इस प्रकार का संकलन पहले से ही प्रसिद्ध किया गया था। उसी का अनुसरण करते हुए ‘‘राष्ट्रीय युव वर्ष’ के उपलक्ष्य में ‘भारत में विवेकानन्द’ ग्रन्थ की सहायता से प्रस्तुत पुस्तक का संकलन किया गया।

पुस्तक के कुछ अंश

जो थोड़ा बहुत कार्य मेरे द्वारा हुआ है, वह मेरी किसी अन्तर्निहित शक्ति द्वारा नहीं हुआ, वरन् पाश्चात्य देशों में पर्यटन करते समय, अपनी इस परम पवित्र और प्रिय मातृभूमि से जो उत्साह, जो शुभेच्छा तथा जो आशीर्वाद मुझे मिले हैं, उन्हीं की शक्ति द्वारा सम्भव हो सका है। हाँ, यह ठीक है कि कुछ काम तो अवश्य हुआ है, पर पाश्चात्य देशों में भ्रमण करने से विशेष लाभ मेरा ही हुआ है। इसका कारण यह है कि पहले मैं जिन बातों को शायद हृदय के आवेग से सत्य मान लेता था, अब उन्हीं को मैं प्रमाणसिद्ध विश्वास तथा प्रत्यक्ष और शक्तिसम्पन्न सत्य के रूप में देख रहा हूँ।

पहले मैं भी अन्य हिन्दुओं की तरह विश्वास करता था कि भारत पुण्यभूमि है कर्मभूमि है, जैसा कि माननीय सभापति महोदय ने अभी अभी तुमसे कहा भी है। पर आज मैं इस सभा के सामने खड़े होकर दृढ़ विश्वास के साथ कहता हूँ कि यह सत्य ही है। यदि पृथ्वी पर ऐसा कोई देश है जिसे हम पुण्यभूमि कह सकते हैं, यदि ऐसा कोई स्थान है जहाँ पृथ्वी के सब जीवों को अपना कर्मफल भोगने के लिए आना पड़ता है। यदि ऐसा कोई स्थान है जहाँ भगवान् की ओर उन्मुख होने के प्रयत्न में संलग्न रहनेवाले जीवमात्र को अन्ततः आना होगा, यदि ऐसा कोई देश है जहाँ मानवजाति की क्षमा, धृति, दया, शुद्धता आदि सद्वृत्तियों का सर्वाधिक विकास हुआ है और यदि ऐसा कोई देश है जहाँ आध्यात्मिकता तथा सर्वाधिक आत्मान्वषेण का विकास हुआ है, तो वह भूमि भारत ही है। [1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. युवकों के प्रति (हिंदी) भारतीय साहित्य संग्रह। अभिगमन तिथि: 19 जनवरी, 2014।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः