रहिमन बहु भेषज करत -रहीम

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 12:26, 26 February 2016 by रविन्द्र प्रसाद (talk | contribs) ('<div class="bgrahimdv"> ‘रहिमन’ बहु भेषज करत , व्याधि न छाँड़त साथ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

‘रहिमन’ बहु भेषज करत , व्याधि न छाँड़त साथ ।
खग, मृग बसत अरोग बन , हरि अनाथ के नाथ ॥

अर्थ

कितने ही इलाज किये, कितनी ही दवाइयाँ लीं, फिर भी रोग ने पिंड नहीं छोड़ा। पक्षी और हिरण आदि पशु जंगल में सदा नीरोग रहते हैं भगवान् के भरोसे, क्योंकि वह अनाथों का नाथ है।


left|50px|link=रहिमन प्रीति न कीजिए -रहीम|पीछे जाएँ रहीम के दोहे right|50px|link=रहिमन भेषज के किए -रहीम|आगे जाएँ

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः