बहार आई -गोपालदास नीरज

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 14:04, 2 June 2017 by व्यवस्थापन (talk | contribs) (Text replacement - " दुख " to " दु:ख ")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search
बहार आई -गोपालदास नीरज
कवि गोपालदास नीरज
जन्म 4 जनवरी, 1925
मुख्य रचनाएँ दर्द दिया है, प्राण गीत, आसावरी, गीत जो गाए नहीं, बादर बरस गयो, दो गीत, नदी किनारे, नीरज की पाती, लहर पुकारे, मुक्तकी, गीत-अगीत, विभावरी, संघर्ष, अंतरध्वनी, बादलों से सलाम लेता हूँ, कुछ दोहे नीरज के
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
गोपालदास नीरज की रचनाएँ

तुम आए कण-कण पर बहार आई
तुम गए, गई झर मन की कली-कली।

तुम बोले पतझर में कोयल बोली,
बन गई पिघल गुँजार भ्रमर-टोली,
तुम चले चल उठी वायु रूप-वन की
झुक झूम-झूमकर डाल-डाल डोली,
मायावी घूँघट उठते ही क्षण में
रुक गया समय, पिघली दु:ख की बदली।
तुम गए, गई झर मन की कली-कली॥

रेशमी रजत मुस्कानों में रँगकर।
तारे बनकर छा गए अश्रु तम पर,
फँस उरझ उनींदे कुन्तुल-जालों में,
उतरा धरती पर ही राकेन्दु मुखर,
बन गई अमावस पूनों सोने की,
चाँदी से चमक उठे पथ गली-गली।
तुम गए, गई झर मन की कली-कली॥

तुमने निज नीलांचल जब फैलाया,
दोपहरी मेरी बनी तरल छाया,
लाजारुण ऊषे झाँकी झुरमुट से,
निज नयन ओट तुमने जब मुस्काया,
घुँघरू सी गमक उठी सूनी संध्या,
चंचल पायल जब आँगन में मचली।
तुम गए, गई झर मन की कली-कली॥

हो चले गए जब से तुम मनभावन!
मेरे आँगन में लहराता सावन,
हर समय बरसती बदली सी आँखें,
जुगनू सी इच्छाएँ बुझतीं उन्मन,
बिखरे हैं बूँदों से सपने सारे,
गिरती आशा के नीड़ों पर बिजली।
तुम गए गई झर मन की कली-कली॥

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः