दक्षिण

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दक्षिण
विवरण दक्षिण एक दिशा है। दक्षिण दिशा में वास्तु के नियमानुसार निर्माण करने से सुख, सम्पन्नता और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
देवता यमराज
वास्तु महत्व वास्तु के अनुसार दक्षिण दिशा में मुख्‍य द्वार नहीं होना चाहिए। इस दिशा में घर का भारी सामान रखना चाहिए। इस दिशा में दरवाज़ा और खिड़की नहीं होना चाहिए।
अन्य जानकारी प्राचीनकाल में दिशा निर्धारण प्रातःकाल व मध्याह्न के पश्चात एक बिन्दु पर एक छड़ी लगाकर सूर्य रश्मियों द्वारा पड़ रही छड़ी की परछाई तथा उत्तरायणदक्षिणायन काल की गणना के आधार पर किया जाता था।

दक्षिण (अंग्रेज़ी:South) एक दिशा है। इस दिशा में यम का स्थान माना गया है। यम का अभिप्राय मृत्यु से होता है। इसलिए इस दिशा में खुलापन, किसी भी प्रकार के गड्ढ़े और शौचालय आदि किसी भी हालत में नहीं होना चाहिए। भवन भी इस दिशा में सबसे ऊंचा होना चाहिए। फैक्ट्री में मशीन इसी दिशा में लगाना चाहिए। ऊंचे पेड़ भी इसी दिशा में लगाने चाहिए। इस दिशा में धन रखने से बढ़ौत्तरी होती है।

वास्तु शास्त्र के अनुसार

दक्षिण दिशा के अधिपति देवता हैं भगवान यमराज। दक्षिण दिशा में वास्तु के नियमानुसार निर्माण करने से सुख, संपन्नता और समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस दिशा में रखा जाने वाला हर सामान नियमानुसार होना चाहिये। तभी घर में सुख शान्ति, समृद्धि और सम्पन्नता बनी रहती है। वास्तु के अनुसार दक्षिण दिशा में मुख्‍य द्वार नहीं होना चाहिए। इस दिशा में घर का भारी सामान रखना चाहिए। इस दिशा में दरवाजा और खिड़की नहीं होना चाहिए। यह स्थान खाली भी नहीं रखा जाना चाहिए। इस दिशा में घर के भारी सामान रखें। शहर के दक्षिण भाग में आपका घर है तो वास्तु के उपाय करें।

दिशाओं के नाम

अंग्रेज़ी संस्कृत (हिन्दी)
East पूरब, प्राची, प्राक्
West पश्चिम, प्रतीचि, अपरा
North उत्तर, उदीचि
South दक्षिण, अवाचि
North-East ईशान्य
South-East आग्नेय
North-West वायव्य
South-West नैऋत्य
Zenith ऊर्ध्व
Nadir अधो


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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