इजेकियल

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इजेकियल 598 ई.पू. में बाबुल की सेना ने जेरूसलम नगर पर आक्रमण करके उसे लगभग नष्ट भ्रष्ट कर दिया। वहाँ के महल, सुलेमान के बनाए विशाल मंदिर और प्राय: समस्त सुंदर भवनों में आग लगा दी। शहर की चहारदीवारी को गिराकर जमीन से मिला दिया। प्रधान यहूदी पुरोहित और शहर के सब मुख्य व्यक्तियों को मौत के घाट उतार दिया और हजारों यहूदियों को निर्वासित बंदी के रूप में बाबुल पहुँचाकर बसा दिया। यहूदी जाति के दु:ख भरे इतिहास में यह घटना एक विशेष सीमाचिह्न समझी जाती है। निर्वासित यहूदी बंदियों में यहूदी जाति के पैगंबर इजेकियल भी थे। इतिहासलेखकों के अनुसार इजेकियल ने चबर नदी के किनारे तेल अवीव में निर्वासित जीवन बिताया।

निर्वासित यहूदी इजेकियल को बहुत आदर और सम्मान की दृष्टि से देखते थे और उनसे मार्गदर्शन की आशा रखते थे। पैगंबर इजेकियल के ग्रंथ 'इजेकियल' के अनुसार इजेकियल ने अपने निर्वासित धर्मावलंबियों में राष्ट्रीय और धार्मिक भावनाओं को निरंतर जगाए रखा। अत्यंत मर्मस्पर्शी शब्दों में उन्होंने एक ऐसे इज़रायल राष्ट्र की कल्पना निर्वासितों के सामने रखी जिसका कभी अंत नहीं हो सकता और जिसका भविष्य सदा उज्वल और ऐश्वर्य से भरा होगा। इजेकियल के उपदेश गद्य और पद्य दोनों में प्राप्त हैं।

इजेकियल की शिक्षा-मानव प्राणियों पर ईश्वर कठोर हाथों से शासन करता है। यह्वे अर्थात्‌ ईश्वर की सत्ता परम पवित्र और सार्वभौम है। यह्वे का कोई प्रतिस्पर्धी नहीं। यहूदियों को अभक्तिपूर्ण व्यवहार के लिए यह्वे दंड देगा। अपनी प्रभुसत्ता को दृढ़ करने के लिए ही यह्वे दंड और वरदान देता है।

बाबुली शासकों ने जिस अन्यदेशीय लोगों को फ़िलिस्तीन ले जाकर बसाया था वे सब मनुष्यस्वभाव के अनुसार अपने-अपने देवी देवताओं के साथ यह्वे की पूजा करने लगे थे और यहूदी जनसामान्य ने भी यह्वे के साथ-साथ आगंतुकों के देवताओं की पूजा आरंभ कर दी। फ़िलिस्तीन में यहूदियों की इस वृत्ति से इजेकियल को बड़ी मानसिक पीड़ा पहुँची। अपने उपदेशों में उन्होंने उन्हें अभिशाप दिया। उनकी आशाएँ निर्वासित यहूदियों पर ही केंद्रित थीं। एजेकियल के अनुसार उन्हीं के ऊपर यहूदी धर्म का भविष्य निर्भर था।[1]

पैगंबर की भविष्वाणियों में इजेकियल की शिक्षाओं का महत्वपूर्ण स्थान है। शताब्दियों तक इजेकियल की शिक्षाएँ यहूदी धार्मिक जगत्‌ को प्रभावित करती रहीं।[2]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 511-12 |
  2. सं.ग्रं.-सी.एच. टाय : इजेकियल (1924); जी.टी. बेट्टानी : हिस्ट्री ऑव जूडाइज्म (1892)।

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