अभ्यास

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अभ्यासः (पुल्लिंग) [अभि+आ+अस्+घञ्]

1. आवृत्ति
2. बार-बार किसी कार्य को करना, लगातार किसी कार्य में लगे रहना, अनवरत अभ्यास के द्वारा, (पवित्र और अविकृत रहना) 12/12, 'निगृहीतेन मनसा- रघु. 10/23, इसी प्रकार शर, अस्त्र आदि।
3. आदत, प्रथा, चलन,-अमंगलाभ्यासरतिम्-कु. 5/65, या. 3/68
4. शस्त्रास्त्र विषयक अनुशासन, कवायद, सैनिक कवायद
5. पाठ करना, अध्ययन करना,-काव्यज्ञ-शिक्षयाभ्यासः काव्य. 1
6. आसपास का, सामीप्य, पड़ोस ('अभ्याश' के लिए)-कु. 6/2, (अभ्यासे-शे मधौ का यहाँ अर्थ 'मधु' को संबोधित करना है। जो कि उसके निकट है-अर्थात् अपने आपको पूर्ण रूप से उसके सामने प्रकट करके। यहाँ पावती की उपमा पूर्णतः सुरक्षित है-अर्थात् स्वयं चुप रहते हुए अपनी सखी को संबोधित करने के बहाने अपने प्रियतम से बात करना); अर्पितेयं तवाभ्यासे सीता पुण्यव्रता वधूः-उत्तर. 7/17, आपको सौंपी हुई; अभ्यासा (शा) दागतः-सिद्धा. (अलुक् समास के रूप में)
7. (व्या. में) द्वित्व होना
8. द्वित्व हुए मूल शब्द का प्रथम अक्षर, द्वित्व अक्षर
9. (गण. में) गुणा
10. सम्मिलित गान, गीत की टेक


सम.-गत (विशेषण) उपागत, निकट गया हुआ,-योगः (पुल्लिंग) अनवरत गहन चिंतन से उत्पन्न मनोयोग,-अभ्यासयोगेन ततो मामिच्छाप्तं धनंजय-भग. 12/9,-लोपः (पुल्लिंग) द्वित्व किए हुए अक्षर को हटा देना,-व्यवायः (पुल्लिंग) द्वित्व अक्षर से उत्पन्न अन्तराल।[1]


  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश |लेखक: वामन शिवराम आप्टे |प्रकाशक: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002 |पृष्ठ संख्या: 88 |

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