Difference between revisions of "प्रयोग:शिल्पी3"

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
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गायकवाड़ एक [[मराठा]] ख़ानदान था, जो [[पेशवा बाजीराव प्रथम]] (1720-40) के शासनकाल में सत्ता में आया। इस वंश के संस्थापक दामजी प्रथम के बारे में कुछ भी ज्ञात नहीं है। उसके भतीजे पीलाजी (1721-32) के जीवन काल में यह ख़ानदान प्रमुखता में आया। पीलाजी राजा साहू के सेनापति खाण्डेराव दाभाड़े के गुट का था। उसने 1720 ई. में [[सूरत]] से 50 मील पूर्व सौनगढ़ में एक दुर्ग का निर्माण कराया। 1731 ई. में वह बिल्हापुर अथवा बालापुर के युद्ध में खाण्डेराव के पुत्र और उत्तराधिकारी त्र्यम्बकराव दाभाड़े की तरफ़ से लड़ा। किन्तु इस युद्ध में दाभाड़े की पराजय और मृत्यु हो जाने पर उसने पेशवा बाजीराव प्रथम के साथ संधि कर ली। पेशवा ने उसे [[गुजरात]] पर निगाह रखने को कहा। गायकवाड़ ने अपना मुख्य ठिकाना [[बड़ौदा]] का बनाया। किन्तु पीलाजी की 1732 ई. में हत्या कर दी गई और उसका पुत्र दामाजी द्वितीय उत्तराधिकारी बना, जो सन 1761 ई. में [[पानीपत युद्ध|पानीपत के युद्ध]] में मौजूद था और बाद में भाग निकला। 1768 ई. में उसकी मृत्यु हो गई।
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|+'''रचनाऐं'''
 
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! '''ये गजरे तारों वाले'''   
 
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|<poem>इस सोते संसार बीच,
 
जग कर, सज कर रजनी बाले।
 
कहाँ बेचने ले जाती हो,
 
ये गजरे तारों वाले?
 
मोल करेगा कौन,
 
सो रही हैं उत्सुक आँखें सारी।
 
मत कुम्हलाने दो,
 
सूनेपन में अपनी निधियाँ न्यारी॥
 
निर्झर के निर्मल जल में,
 
ये गजरे हिला हिला धोना।
 
लहर हहर कर यदि चूमे तो,
 
किंचित् विचलित मत होना॥
 
होने दो प्रतिबिम्ब विचुम्बित,
 
लहरों ही में लहराना।
 
'लो मेरे तारों के गजरे'
 
निर्झर-स्वर में यह गाना॥
 
यदि प्रभात तक कोई आकर,
 
तुम से हाय! न मोल करे।
 
तो फूलों पर ओस-रूप में
 
बिखरा देना सब गजरे॥</poem>         
 
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! '''ये गजरे तारों वाले'''   
 
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|<poem>धूम्र जिसके क्रोड़ में है, उस अनल का हाथ हूँ मैं,
 
नव प्रभा लेकर चला हूँ, पर जलन के साथ हूँ मैं
 
सिद्धि पाकर भी, तुम्हारी साधना का..
 
ज्वलित क्षण हूँ।
 
एक दीपक किरण-कण हूँ
 
  
व्योम के उर में, अपार भरा हुआ है जो अँधेरा
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दामाजी द्वितीय के कई पुत्र थे, जिनमें 1768 से 1800 ई. तक लगातार उत्तराधिकारी का युद्ध चलता रहा। 1800 ई. में दामाजी के बड़े लड़के गोविन्दराव का पुत्र सिंहासन पर आसीन हुआ। उसने 1819 ई. तक शासन किया। इस दौरान गायकवाड़ वंश ने [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] के साथ शान्तिपूर्ण सम्बन्ध बनाये रखा और बिना किसी युद्ध के 1805 ई. में आश्रित संधि कर ली। गायकवाड़ वंश अंग्रेज़ों के प्रति वफ़ादार बना रहा और इस कारण दूसरे और तीसरे आंग्ल-मराठा युद्धों में अन्य मराठा सरदारों को जन-धन की जो अपार क्षति उठानी पड़ी, उससे बच गया। आनन्दराव का उत्तराधिकारी उसका भाइर सयाजी द्वितीय (1819-47) बना और उसके बाद उसके तीन पुत्र गणपतिराव (1847-56), खाण्डेराव (1856-70) और मल्हारराव (1870-75) क्रमश: सिंहासन पर आसीन हुए। मल्हारराव पर कुशासन और ब्रिटिश रेजीडेंट कर्नल फ़ेयरे को विष देकर मरवा डालने का अभियोग चलाया गया। उसे गिरफ्तार कर लिया गया और वाइसराय लार्ड नार्थब्रुक द्वारा नियुक्त आयोग के सामने उस पर मुक़दमा चलाया गया। हत्याभियोग पर आयोग के सदस्यों में मतभेद था, अत: उसे बरी कर दिया गया, किन्तु दुराचरण और कुशासन के आरोप में उसे गद्दी से उतार दिया गया। मल्हारराव के कोई संतान नहीं थी, इसलिए भारत सरकार ने सयाजी राव नामक बालक को, जिसका गायकवाड़ वंश से दूर का सम्बन्ध था, गद्दी पर बैठा दिया और नये शासक के अल्पवयस्क रहने तक प्रशासन सर टी. माधवराव के हाथों के सुपुर्द कर दिया। सयाजीराव तृतीय ने 1875 ई. में शासन सम्भाला और 1933 ई. में उसकी मृत्यु हुई। उसने अपने को देशी रजवाड़ों में सर्वाधिक योग्य और जागरूक शासक सिद्ध किया और बड़ौदा को भारत का सर्वाधिक उन्नतिशील राज्य बना दिया।<ref>पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश' पृष्ठ संख्या-124</ref>
और जिसने विश्व को, दो बार क्या सौ बार घेरा
 
उस तिमिर का नाश करने के लिए,
 
मैं अटल प्रण हूँ।
 
एक दीपक किरण-कण हूँ।
 
 
 
शलभ को अमरत्व देकर,प्रेम पर मरना सिखाया
 
सूर्य का संदेश लेकर,रात्रि के उर में समाया
 
पर तुम्हारा स्नेह खोकर भी
 
तुम्हारी ही शरण हूँ।
 
एक दीपक किरण-कण हूँ।</poem>         
 
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! '''खोलो प्रियतम खोलो द्वार...'''
 
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|<poem>शिशिर कणों से लदी हुई
 
कमली के भीगे हैं सब तार
 
चलता है पश्चिम का मारुत
 
ले कर शीतलता का भार
 
 
 
अरुण किरण सम कर से छू लो
 
खोलो प्रियतम खोलो द्वार....
 
 
 
डरो ना इतना धूल धूसरित
 
होगा नहीं तुम्हारा द्वार
 
धो डाले हैं इनको प्रियतम
 
इन आँखों से आँसू ढ़ार
 
 
 
अरुण किरण सम कर से छू लो
 
खोलो प्रियतम खोलो द्वार...</poem>  
 
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Revision as of 06:31, 9 April 2011

gayakava d ek maratha khanadan tha, jo peshava bajirav pratham (1720-40) ke shasanakal mean satta mean aya. is vansh ke sansthapak damaji pratham ke bare mean kuchh bhi jnat nahian hai. usake bhatije pilaji (1721-32) ke jivan kal mean yah khanadan pramukhata mean aya. pilaji raja sahoo ke senapati khanderav dabha de ke gut ka tha. usane 1720 ee. mean soorat se 50 mil poorv saunagadh mean ek durg ka nirman karaya. 1731 ee. mean vah bilhapur athava balapur ke yuddh mean khanderav ke putr aur uttaradhikari tryambakarav dabha de ki taraf se l da. kintu is yuddh mean dabha de ki parajay aur mrityu ho jane par usane peshava bajirav pratham ke sath sandhi kar li. peshava ne use gujarat par nigah rakhane ko kaha. gayakava d ne apana mukhy thikana b dauda ka banaya. kintu pilaji ki 1732 ee. mean hatya kar di gee aur usaka putr damaji dvitiy uttaradhikari bana, jo san 1761 ee. mean panipat ke yuddh mean maujood tha aur bad mean bhag nikala. 1768 ee. mean usaki mrityu ho gee.

damaji dvitiy ke kee putr the, jinamean 1768 se 1800 ee. tak lagatar uttaradhikari ka yuddh chalata raha. 1800 ee. mean damaji ke b de l dake govindarav ka putr sianhasan par asin hua. usane 1819 ee. tak shasan kiya. is dauran gayakava d vansh ne aangrezoan ke sath shantipoorn sambandh banaye rakha aur bina kisi yuddh ke 1805 ee. mean ashrit sandhi kar li. gayakava d vansh aangrezoan ke prati vafadar bana raha aur is karan doosare aur tisare aangl-maratha yuddhoan mean any maratha saradaroan ko jan-dhan ki jo apar kshati uthani p di, usase bach gaya. anandarav ka uttaradhikari usaka bhair sayaji dvitiy (1819-47) bana aur usake bad usake tin putr ganapatirav (1847-56), khanderav (1856-70) aur malhararav (1870-75) kramash: sianhasan par asin hue. malhararav par kushasan aur british rejideant karnal feyare ko vish dekar marava dalane ka abhiyog chalaya gaya. use giraphtar kar liya gaya aur vaisaray lard narthabruk dvara niyukt ayog ke samane us par muqadama chalaya gaya. hatyabhiyog par ayog ke sadasyoan mean matabhed tha, at: use bari kar diya gaya, kintu duracharan aur kushasan ke arop mean use gaddi se utar diya gaya. malhararav ke koee santan nahian thi, isalie bharat sarakar ne sayaji rav namak balak ko, jisaka gayakava d vansh se door ka sambandh tha, gaddi par baitha diya aur naye shasak ke alpavayask rahane tak prashasan sar ti. madhavarav ke hathoan ke supurd kar diya. sayajirav tritiy ne 1875 ee. mean shasan sambhala aur 1933 ee. mean usaki mrityu huee. usane apane ko deshi rajava doan mean sarvadhik yogy aur jagarook shasak siddh kiya aur b dauda ko bharat ka sarvadhik unnatishil rajy bana diya.[1]

  1. pustak 'bharatiy itihas kosh' prishth sankhya-124