Difference between revisions of "सुदामा चरित -नरोत्तमदास"
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करत रहति उपदेस गुरु, ऐसो परम विचित्र॥5॥ | करत रहति उपदेस गुरु, ऐसो परम विचित्र॥5॥ | ||
− | + | (सुदामा की पत्नी) | |
महादानि जिनके हितू, हैं हरि जदुकुल- चंद। | महादानि जिनके हितू, हैं हरि जदुकुल- चंद। | ||
दे दारिद-सन्ताप ते, रहैं न क्यों निरद्वन्द।।6।। | दे दारिद-सन्ताप ते, रहैं न क्यों निरद्वन्द।।6।। | ||
− | + | (सुदामा) | |
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कह्यौ सुदामा, बाम सुनु, बृथा और सब भोग। | कह्यौ सुदामा, बाम सुनु, बृथा और सब भोग। | ||
सत्य भजन भगवान को, धर्म-सहित जग जोग।।7।। | सत्य भजन भगवान को, धर्म-सहित जग जोग।।7।। | ||
− | + | (सुदामा की पत्नी) | |
लोचन-कमल, दुख मोचन तिलक भाल, | लोचन-कमल, दुख मोचन तिलक भाल, | ||
स्रवननि कुंडल, मुकुट धरे माथ हैं। | स्रवननि कुंडल, मुकुट धरे माथ हैं। | ||
Line 78: | Line 77: | ||
औरन को धन चाहिये बावरिए ब्राह्मन को धन केवल भिच्छा॥9॥ | औरन को धन चाहिये बावरिए ब्राह्मन को धन केवल भिच्छा॥9॥ | ||
− | + | (सुदामा की पत्नी) | |
दानी बडे तिहु लोकन में जग जीवत नाम सदा जिनकौ लै। | दानी बडे तिहु लोकन में जग जीवत नाम सदा जिनकौ लै। | ||
दीनन की सुधि लेत भली बिधि सिद्वि करौ पिय मेरो मतो लै। | दीनन की सुधि लेत भली बिधि सिद्वि करौ पिय मेरो मतो लै। | ||
Line 91: | Line 90: | ||
(सुदामा की पत्नी) | (सुदामा की पत्नी) | ||
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कोदोंए सवाँ जुरितो भरि पेटए तौ चाहति ना दधि दूध मठौती। | कोदोंए सवाँ जुरितो भरि पेटए तौ चाहति ना दधि दूध मठौती। | ||
सीत बितीतत जौ सिसियातहिंए हौं हठती पै तुम्हें न हठौती॥ | सीत बितीतत जौ सिसियातहिंए हौं हठती पै तुम्हें न हठौती॥ | ||
Line 103: | Line 101: | ||
जो पै दरिद्र लिखो है ललाट तौए काहु पै मेटि न जात अयानी॥13॥ | जो पै दरिद्र लिखो है ललाट तौए काहु पै मेटि न जात अयानी॥13॥ | ||
− | + | (सुदामा की पत्नी) | |
पूरन पैज करी प्रह्लाद की , खम्भ सों बॉध्यो कपता जिहि बेरे। | पूरन पैज करी प्रह्लाद की , खम्भ सों बॉध्यो कपता जिहि बेरे। | ||
द्रौपदि ध्यान धरयो जब हीं, तबहीं पट कोटि लगे चहूॅ फेरे। | द्रौपदि ध्यान धरयो जब हीं, तबहीं पट कोटि लगे चहूॅ फेरे। | ||
Line 113: | Line 111: | ||
देव गंधर्व और किन्नर -जच्छ से,सॉझ लौं ठाढे रहैं जिहि ठाऊॅ।।15।। | देव गंधर्व और किन्नर -जच्छ से,सॉझ लौं ठाढे रहैं जिहि ठाऊॅ।।15।। | ||
− | + | (सुदामा की पत्नी) | |
भूले से भूप अनेक खरे रहैं , ठाढै रहै तिमि चक्कवे भारी। | भूले से भूप अनेक खरे रहैं , ठाढै रहै तिमि चक्कवे भारी। | ||
छेव गन्धर्व ओ किन्नर जच्छ से, रोके जे लोकन के अधिकारी। | छेव गन्धर्व ओ किन्नर जच्छ से, रोके जे लोकन के अधिकारी। | ||
Line 125: | Line 123: | ||
जौ ब्रजराज सौ प्रीति नहीं, केहि काज सुरेसहु की ठकुराई।।17।। | जौ ब्रजराज सौ प्रीति नहीं, केहि काज सुरेसहु की ठकुराई।।17।। | ||
− | + | (सुदामा की पत्नी) | |
फाटे पट, टूटी छानि भीख मॉगि -मॉगि खाय, | फाटे पट, टूटी छानि भीख मॉगि -मॉगि खाय, | ||
बिना जग्य बिमुख रहत देव - पित्रई। | बिना जग्य बिमुख रहत देव - पित्रई। | ||
Line 145: | Line 143: | ||
बिपति परे पैद्वार मित्र के न जाइये।।19।। | बिपति परे पैद्वार मित्र के न जाइये।।19।। | ||
− | + | (सुदामा की पत्नी) | |
विप्र के भगत हरि जगत विदित बंधुए | विप्र के भगत हरि जगत विदित बंधुए | ||
लेत सब ही की सुधि ऐसे महादानि हैं। | लेत सब ही की सुधि ऐसे महादानि हैं। | ||
Line 154: | Line 152: | ||
नाम लेते चौगुनीए गये तें द्वार सौगुनी सोए | नाम लेते चौगुनीए गये तें द्वार सौगुनी सोए | ||
देखत सहस्त्र गुनी प्रीति प्रभु मानिहैं॥20॥ | देखत सहस्त्र गुनी प्रीति प्रभु मानिहैं॥20॥ | ||
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(सुदामा) | (सुदामा) | ||
Line 162: | Line 159: | ||
जीवन शेष अहै दिन केतिक , होहूॅ हरी सो कनावडो जाइ कै।।21।। | जीवन शेष अहै दिन केतिक , होहूॅ हरी सो कनावडो जाइ कै।।21।। | ||
− | + | (सुदामा की पत्नी) | |
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हूजै कनावडों बार हजार लौं, जौ हितू दीनदयालु से पाइए। | हूजै कनावडों बार हजार लौं, जौ हितू दीनदयालु से पाइए। | ||
तीनहु लोक के ठाकुर जे, तिनके दरबार न जात लजाइए। | तीनहु लोक के ठाकुर जे, तिनके दरबार न जात लजाइए। | ||
मेरी कही जिय में धरि कै पिय, भूलि न और प्रसंग चलाइए। | मेरी कही जिय में धरि कै पिय, भूलि न और प्रसंग चलाइए। | ||
और के द्वार सो काज कहा पिय, द्वारिकानाथ के द्वारे सिधारिए।।22।। | और के द्वार सो काज कहा पिय, द्वारिकानाथ के द्वारे सिधारिए।।22।। | ||
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(सुदामा) | (सुदामा) | ||
Line 175: | Line 170: | ||
द्वार खरे प्रभु के छरिया तहँए भूपति जान न पावत नेरे। | द्वार खरे प्रभु के छरिया तहँए भूपति जान न पावत नेरे। | ||
पाँच सुपारि तै देखु बिचार कैए भेंट को चारि न चाउर मेरे॥23॥ | पाँच सुपारि तै देखु बिचार कैए भेंट को चारि न चाउर मेरे॥23॥ | ||
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यह सुनि कै तब ब्राह्मनीए गई परोसी पास। | यह सुनि कै तब ब्राह्मनीए गई परोसी पास। | ||
पाव सेर चाउर लियेए आई सहित हुलास॥24॥ | पाव सेर चाउर लियेए आई सहित हुलास॥24॥ | ||
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सिद्धि करी गनपति सुमिरिए बाँधि दुपटिया खूँट। | सिद्धि करी गनपति सुमिरिए बाँधि दुपटिया खूँट। | ||
Line 192: | Line 185: | ||
==बाहरी कड़ियाँ== | ==बाहरी कड़ियाँ== | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
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