Difference between revisions of "करण कुतूहल"

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|टिप्पणियाँ ='करण कुतूहल’ ग्रन्थ में मुख्यतः [[खगोल विज्ञान]] से सम्बन्धित विषयों की चर्चा की गई है तथा [[सूर्य ग्रहण]] और [[चंद्र ग्रहण]] की जानकारी दी गई है।
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[[भास्कराचार्य]] (जन्म- 1114 ई. मृत्यु- 1179 ई.) प्राचीन भारत के सुप्रसिद्ध गणितज्ञ एवं खगोलशास्त्री थे। भास्कराचार्य द्वारा लिखित [[ग्रन्थ|ग्रन्थों]] का अनुवाद अनेक विदेशी भाषाओं में किया जा चुका है।
 
[[भास्कराचार्य]] (जन्म- 1114 ई. मृत्यु- 1179 ई.) प्राचीन भारत के सुप्रसिद्ध गणितज्ञ एवं खगोलशास्त्री थे। भास्कराचार्य द्वारा लिखित [[ग्रन्थ|ग्रन्थों]] का अनुवाद अनेक विदेशी भाषाओं में किया जा चुका है।
  
 
सन् 1163 ई. में भास्कराचार्य ने ‘करण कुतूहल’ नामक ग्रन्थ की रचना की। इस ग्रन्थ में मुख्यतः खगोल विज्ञान सम्बन्धी विषयों की चर्चा की गई है। इस ग्रन्थ में बताया गया है कि जब [[चन्द्रमा]] [[सूर्य]] को ढक लेता है तो [[सूर्य ग्रहण]] तथा जब [[पृथ्वी]] की छाया चन्द्रमा को ढक लेती है तो [[चन्द्र ग्रहण]] होता है।
 
सन् 1163 ई. में भास्कराचार्य ने ‘करण कुतूहल’ नामक ग्रन्थ की रचना की। इस ग्रन्थ में मुख्यतः खगोल विज्ञान सम्बन्धी विषयों की चर्चा की गई है। इस ग्रन्थ में बताया गया है कि जब [[चन्द्रमा]] [[सूर्य]] को ढक लेता है तो [[सूर्य ग्रहण]] तथा जब [[पृथ्वी]] की छाया चन्द्रमा को ढक लेती है तो [[चन्द्र ग्रहण]] होता है।
 
 
==अनुवाद==
 
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भास्कराचार्य द्वारा लिखित ग्रन्थों का अनुवाद अनेक विदेशी भाषाओं में किया जा चुका है। भास्कराचार्य द्वारा लिखित ग्रन्थों ने अनेक विदेशी विद्वानों को भी शोध का रास्ता दिखाया है। कई शताब्दी के बाद केपलर तथा [[न्यूटन]] जैसे यूरोपीय वैज्ञानिकों ने जो सिद्धान्त प्रस्तावित किए उन पर भास्कराचार्य द्वारा प्रस्तावित सिद्धान्तों की स्पष्ट छाप मालूम पड़ती है। ऐसा लगता है जैसे अपने सिद्धान्तों को प्रस्तुत करने के पूर्व उन्होंने अवश्य ही भास्कराचार्य के सिद्धान्तों का अध्ययन किया होगा।
 
भास्कराचार्य द्वारा लिखित ग्रन्थों का अनुवाद अनेक विदेशी भाषाओं में किया जा चुका है। भास्कराचार्य द्वारा लिखित ग्रन्थों ने अनेक विदेशी विद्वानों को भी शोध का रास्ता दिखाया है। कई शताब्दी के बाद केपलर तथा [[न्यूटन]] जैसे यूरोपीय वैज्ञानिकों ने जो सिद्धान्त प्रस्तावित किए उन पर भास्कराचार्य द्वारा प्रस्तावित सिद्धान्तों की स्पष्ट छाप मालूम पड़ती है। ऐसा लगता है जैसे अपने सिद्धान्तों को प्रस्तुत करने के पूर्व उन्होंने अवश्य ही भास्कराचार्य के सिद्धान्तों का अध्ययन किया होगा।
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Latest revision as of 12:06, 17 March 2018

karan kutoohal
lekhak bhaskarachary
prakashak chaukhamba vidya bhavan
ISBN 9789383847556
desh bharat
prishth: 228
bhasha sanskrit aur hindi
sanskaran 2015
tippani 'karan kutoohal’ granth mean mukhyatah khagol vijnan se sambandhit vishayoan ki charcha ki gee hai tatha soory grahan aur chandr grahan ki janakari di gee hai.

bhaskarachary (janm- 1114 ee. mrityu- 1179 ee.) prachin bharat ke suprasiddh ganitajn evan khagolashastri the. bhaskarachary dvara likhit granthoan ka anuvad anek videshi bhashaoan mean kiya ja chuka hai.

sanh 1163 ee. mean bhaskarachary ne ‘karan kutoohal’ namak granth ki rachana ki. is granth mean mukhyatah khagol vijnan sambandhi vishayoan ki charcha ki gee hai. is granth mean bataya gaya hai ki jab chandrama soory ko dhak leta hai to soory grahan tatha jab prithvi ki chhaya chandrama ko dhak leti hai to chandr grahan hota hai.

anuvad

bhaskarachary dvara likhit granthoan ka anuvad anek videshi bhashaoan mean kiya ja chuka hai. bhaskarachary dvara likhit granthoan ne anek videshi vidvanoan ko bhi shodh ka rasta dikhaya hai. kee shatabdi ke bad kepalar tatha nyootan jaise yooropiy vaijnanikoan ne jo siddhant prastavit kie un par bhaskarachary dvara prastavit siddhantoan ki spasht chhap maloom p dati hai. aisa lagata hai jaise apane siddhantoan ko prastut karane ke poorv unhoanne avashy hi bhaskarachary ke siddhantoan ka adhyayan kiya hoga.


panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

tika tippani aur sandarbh

sanbandhit lekh