अन्तर दावा लगि रहै -रहीम

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search

अन्तर दावा लगि रहै, धुआं न प्रगटै सोय।
के जिय जाने आपनो, जा सिर बीती होय॥

अर्थ

आग अन्तर में सुलग रही है, पर उसका धुआं प्रकट नहीं हो रहा है। जिसके सिर पर बीतती है, उसी का जी उस आग को जानता है। कोई दूसरे उस आग का यानी दु:ख का मर्म समझ नहीं सकते।


left|50px|link=एकै साधे सब सधै -रहीम|पीछे जाएँ रहीम के दोहे right|50px|link=कदली सीप भुजंग मुख -रहीम|आगे जाएँ

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः