अन्तर दावा लगि रहै -रहीम
अन्तर दावा लगि रहै, धुआं न प्रगटै सोय।
के जिय जाने आपनो, जा सिर बीती होय॥
- अर्थ
आग अन्तर में सुलग रही है, पर उसका धुआं प्रकट नहीं हो रहा है। जिसके सिर पर बीतती है, उसी का जी उस आग को जानता है। कोई दूसरे उस आग का यानी दु:ख का मर्म समझ नहीं सकते।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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