अर्घ्य
अर्घ्य (विशेषण) [अर्घ+यत् अर्घमर्हति]
- 1. मुल्यवान अनर्घ-अनमोल दे. श. के नी.
- 2. सम्माननीय तानयनिर्घ्यमादाय दूरात्प्रत्युद्ययी गिरि 6/50, शि. 1/14,-र्घ्यम् किसी देवता या सम्मान्य व्यक्ति को सादर आहुति या उपहार,-अर्घयस्मै-विक्रम. 5, ददतु तरवः पुष्पैरध्यं फले मधुश्चुतः-उत्तर. 3/24, अर्घ्यमर्घ्यमिति वादिन नृपम्-रघु. 11/69, कु. 1-58, 6/50[1]
- REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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