आंध्र प्रदेश की संस्कृति

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भारतीय सांस्कृतिक विरासत में आंध्र प्रदेश का योगदान उल्लेखनीय है। प्राचीन समय से इस क्षेत्र में वास्तुकला और चित्रकला अत्यंत विकसित रही। भारतीय परंपरा में कुचिपुडी नृत्य शैली अनोखी है। कर्नाटक (दक्षिण भारतीय) संगीत ने आंध्र प्रदेश से बहुत कुछ ग्रहण किया है। कई दक्षिण भारतीय शास्त्रीय संगीतकार आंध्र प्रदेश के हैं और बहुत सी संगीत रचनाओं की भाषा तेलुगु रही है। द्रविड़ परिवार की चार प्रमुख साहित्यिक भाषाओं में से एक तेलुगु का भारतीय भाषाओं में सम्मानित स्थान है। यह भाषा अपनी पुरातन शैली और मधुर प्रवाह के लिए विख्यात है। आधुनिक भारतीय साहित्यिक पुनर्जागरण में आंध्रवासी प्रमुख रहे हैं और उनके लेखन में साहित्यिक स्वरूपों और अभिव्यक्ति में आई समकालीन क्रांति का प्रभाव प्रतिबिंबित हुआ है। यहाँ अंग्रेजी, तेलुगु और उर्दू में कई पत्रिकाएं प्रकाशित होती हैं।

तेलंगाना क्षेत्र की मुस्लिम संस्कृति राज्य की सांस्कृतिक विविधता को और भी समृद्ध करती है। कला व साहित्य राजसी व निजी संरक्षण में पनपते थे, जिनमें से कुछ प्रतिष्ठान आज भी कार्यरत हैं। राज्य ने ललित कलाओं, नृत्य, नाटक, संगीत और साहित्य के पुनरुत्थान, उनकी लोकप्रियता बढ़ाने और प्रोत्साहित करने के लिए स्वायत्त अकादमियाँ बनाई हैं। संस्कृति की सतत चेतना ग्रामीण की बजाय एक शहरी प्रक्रिया है, क्योंकि सांस्कृतिक कार्यक्रम, साहित्यिक बैठकें और धार्मिक चर्चाएं अधिकतर नगरों या शहरों में होती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में लोकसंस्कृति की प्रधानता है। राज्य के अलग-अलग भागों में विभिन्न ऐतिहासिक परिस्थितियों में हुए सांस्कृतिक विकास के कारण वहाँ की बोलियों, जाति व्यवस्था और आदतों में अंतर आने से लोककला में वैविध्य आया। लोकगायकों द्वारा गायन, कठपुतली नाच और पौराणिक कथा वाचन इस क्षेत्र की अपनी कलाएं हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में संचार माध्यमों, विशेषकर रेडियों और टेलीविजन की पहुँच से ग्रामीण जनता में शास्त्रीय संस्कृति और शहरी जनता में लोक संस्कृति संबंधी जागरुकता लाने में मदद मिली है। आंध्र प्रदेश फ़िल्म बनाने वाले कुछ प्रमुख भारतीय राज्यों में से एक है।



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