आयलर संख्याएँ

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आयलर संख्याएँ आयलर (ऑयलर) संख्याओं का नाम जर्मन गणितज्ञ लियोनार्ड ऑयलर के नाम पर रखा गया है। ये संख्याएँ आयलर बहुपदों (पॉलीनोमियल्स) से उत्पन्न होती हैं:

यदि चित्र:Euler-1.gif
जहाँ ई नेपरीय लघुगणकों का आधार है और

आ0न (य) = यन,

तो आ0न(य) को घात न और वर्ण (ऑर्डर) शून्य का आयलर बहुपद कहते हैं।

वर्ण स के आयलर बहुपदों की परिभाषा यह है: चित्र:Euler-2.gif य =1/2स रखने से २नआन() (य) के जो मान प्राप्त होते हैं, उन्हें वर्ण स की आयलर संख्याएँ आन() कहते हैं। विषम प्रत्यय (साफ़िक्स) की समस्त आयलर संख्याएँ शून्य हो जाती हैं।

इस प्रकार आन (स)=२ आन(स) (1/2स)।

आन (१)(स) के लिए हम आन(स) लिखते हैं। चित्र:Euler-3.gif

हम जानते हैं कि का पुनर्विन्यास करके य२प के गुणांक को श्रेणी 1/4p व्युकाे 1/2 pय के पद य२प के गुणांक के समान रखने से हमें यह प्राप्त होगा: चित्र:Euler-4.gif
इस संबंध से स्पष्ट है कि आयलर संख्याएँ बराबर बढ़ती जाती हैं और प्रत्येक संख्या का चिन्ह बदलता जाता है, अर्थात्‌ वे क्रमानुसार घनात्मक और ऋणात्मक होती हैं।[1]

का मान सारणिक के रूप में होता है। चित्र:Euler-5.gif

बर्नूली संख्याओं की भाँति आयलर संख्याएँ भी सांख्यिकी स्टैटिस्टिक्स) में अंतर्वेशन (इंटरपोलेशन) में प्रयुक्त होती हैं।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 399-400 |
  2. सं.ग्रं.-मिल्न-टॉमसन: कैल्क्युलस ऑव फ़ाइनाइट डिफ़रेंसेज़।

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