खरच बढ्यो उद्यम घट्यो -रहीम
खरच बढ्यो उद्यम घट्यो, नृपति निठुर मन कीन।
कहु ‘रहीम’ कैसे जिए, थोरे जल की मीन॥
- अर्थ
राजा भी निठुर बन गया, जबकि खर्च बेहद बढ़ गया और उद्यम में कमी आ गयी। ऐसी दशा में जीना दूभर हो जाता है, जैसे जरा से जल में मछली का जीना।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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