बिगरी बात बनै नहीं -रहीम
बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय ।
‘रहिमन’ फाटे दूध को, मथै न माखन होय ॥
- अर्थ
लाख उपाय क्यों न करो, बिगड़ी हुई बात बनने की नहीं। जो दूध फट गया, उसे कितना ही मथो, उसमें से मक्खन निकलने का नहीं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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