मथत-मथत माखन रहे -रहीम
मथत-मथत माखन रहे, दही मही बिलगाय।
‘रहिमन’ सोई मीत है, भीर परे ठहराय॥
- अर्थ
सच्चा मित्र वही है, जो विपदा में साथ देता है। वह किस काम का मित्र, जो विपत्ति के समय अलग हो जाता है? मक्खन मथते-मथते रह जाता है, किन्तु मट्ठा दही का साथ छोड़ देता है।
left|50px|link=राम-नाम जान्यो नहीं -रहीम|पीछे जाएँ | रहीम के दोहे | right|50px|link=जिहि रहीम तन मन लियो -रहीम|आगे जाएँ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख