माँगे मुकरि न को गयो -रहीम
माँगे मुकरि न को गयो , केहि न त्यागियो साथ ।
माँगत आगे सुख लह्यो, तै ‘रहीम’ रघुनाथ ॥
- अर्थ
माँगने पर कौन नहीं हट जाता ? और, ऐसा कौन है, जो याचक का साथ नहीं छोड़ देता ? पर श्रीरघुनाथजी ही ऐसै हैं, जो माँगने से भी पहले सब कुछ दे देते हैं, याचक अयाचक हो जाता है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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