तैत्तिरीयोपनिषद भृगुवल्ली अनुवाक-3: Difference between revisions
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- तैत्तिरीयोपनिषद के भृगुवल्ली का यह तीसरा अनुवाक है।
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- पुन: तप करने के बाद भृगु को बोध हुआ कि 'प्राण' ही ब्रह्म है; क्योंकि उसी से जीवन है और उसी में जीवन का लय है।
- मिलने पर वरुण ऋषि ने अपने पुत्र की सोच का समर्थन किया, किन्तु अभी सोचने के लिए कहा।
- तप से ही 'ब्रह्म' को जाना जा सकता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख
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