अमिता (उपन्यास): Difference between revisions
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Latest revision as of 14:03, 23 December 2012
अमिता (उपन्यास)
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लेखक | यशपाल |
मूल शीर्षक | अमिता |
प्रकाशक | लोकभारती प्रकाशन |
प्रकाशन तिथि | 1 जनवरी, 2010 |
देश | भारत |
पृष्ठ: | 164 |
भाषा | हिंदी |
विधा | उपन्यास |
मुखपृष्ठ रचना | सजिल्द |
'अमिता' उपन्यास साहित्यकार यशपाल का 'दिव्या' की भाँति ऐतिहासिक है। ‘अमिता’ ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में कल्पना को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास है। इस उपन्यास के प्राक्कथन में यशपाल स्वयं इसके मूल मन्तव्य की ओर इशारा करते हैं–‘विश्वशान्ति के प्रयत्नों में सहयोग देने के लिए मुझे भी तीन वर्ष में दो बार यूरोप जाना पड़ा है। स्वभावतः इस समय (1954-1956) में लिखे मेरे इस उपन्यास में, मुद्दों द्वारा लक्ष्यों को प्राप्त करने अथवा समस्याओं को सुलझाने की नीति की विफलता का विचार कहानी का मेरुदंड बन गया है।’
कथानक
यशपाल जी का नया उपन्यास 'अमिता' प्रियदर्शन सम्राट अशोक की कलिंग विजय के आधार पर लिखा गया है । इसके बहुत पहले यशपाल जी ने अतीत से राजनीतिक कथानक लेकर 'दिव्या' नामक उपन्यास लिखा था। [1]
‘अमीता’ यशपाल का ऐतिहासिक उपन्यास है । अशोक प्रथम बार कलिंग पर आक्रमण करता है तो कलिंग के सिपाही बहादुरी से लडते है किन्तु सम्राट की मृत्यु हो जाती है। कलिंग की महारानी बौद्ध धर्म मे दीक्षित हो जाती है। महामंत्री और सेनापति महारानी की पुत्री अमिता के नाम पर शासन करते है। अन्तत: अशोक विजयी होता है और अमिता की बालसुलभ सरलता से उसका हदय परिवर्तन हो जाता है ।[2]
कलिंग पर अशोक के आक्रमण की घटना में परिवर्तन करके यशपाल ने इस उपन्यास का केन्द्र कलिंग की बालिका राजकुमारी अमिता को बनाया है। उपन्यास के माध्यम से वे जो सन्देश युद्ध-त्रस्त संसार को देना चाहते हैं, वह उन्हीं के शब्दों में : ‘मनुष्य ने अपने अनुभव और विकास से शान्ति की रक्षा का अधिक विश्वास योग्य उपाय खोज लिया है। यह सत्य बहुत सरल है। मनुष्य अन्तर्राष्ट्रीय रूप में दूसरों की भावना और सदिच्छा पर विश्वास करे, दूसरों के लिए भी अपने समान ही जीवित रहने और आत्म-निर्णय से सह-अस्तित्व के अधिकार को स्वीकार करे। सभी राष्ट्र और समाज अपने राष्ट्रों की सीमाओं में, अपने सिद्धान्तों और विश्वासों के अनुसार व्यवस्था रखने में स्वतन्त्र हों। जीवन में समृद्धि और सन्तोष पाने का मार्ग अपनी शक्ति को उत्पादन में लगाना है, दूसरों को डरा कर और मारकर छीन लेने की इच्छा करना नहीं है।’
चरित्र चित्रण
अमिता नायिका प्रधान उपन्यास है और अमिता इस उपन्यास की नायिका है । अन्य पात्रों मे महारानी नन्दा, आचार्य सुकण्ठ , श्रेष्ठि सौमित्र, दासी हिता, दास मोद और अशोक आदि है । सम्पूर्ण उपन्यास मे अमिता मे बाल सुगम सरलता और बालहठ की अभिव्यक्ति हुई है । महारानी नन्दा बौद्ध धर्म के पति आस्था रखने वाली नारी है और आचार्य सुकण्ठ में देश प्रेम की अभिव्यक्ति हुई है । दासी हिता और दास मोद उस युग की दास प्रथा के परिचायक है । श्रेष्ठि सौमित्र उस युग के शोषक वर्ग का प्रतिनिधित्व करते है । अशोक के ऐतिहासिक रुप को अभिव्यक्त करते हुए हदय परिवर्तन के सिद्धान्त का पुतला बना दिया है । नायिका अमिता, महारानी नन्दा और आचार्य सुकण्ठ आदि पात्र लेखक की सिद्धान्तवादिता के आग्रह से मुक्त है, किन्तु दास मोद और दासी हिता के द्वारा लेखक युग के शोषण का चित्र खीचना चाहता है । दासी हिता और दास मोद की प्रेम कहानी ने उनकी मानव हदय की रागात्मक वृत्तियो का परिचय दिया गया है । अमिता एक सप्राण पात्र है किन्तु वह पूर्ण रुप से सपाट है, उसके चरित्र मे उतार चढाव का अभाव है । महारानी नन्दा और आचार्य सुकण्ठ, दासी हिता, दास मोद और श्रेष्ठि सौमित्र सभी सपाट है, जीवन के उतार चढावों का उनमे अभाव है। आचार्य सुकण्ठ और महारानी नन्दा राजनीति के कुचक्र बनकर रह गए है और अशोक की तरह उनमें भी लेखक प्राण चेतना नहीं फूंक सका है । सभी ‘प्रतिनिधि परिस्थितियों के प्रतिनिधि पात्र’ है और वे अपनी अपनी परिस्थितियों का प्रतिनिधित्व करते है। [3]
ऐतिहासिकता
‘अमिता’ इतिहास नहीं, ऐतिहासिक कल्पना मात्र है। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर व्यक्ति और समाज की प्रवृत्ति और गति का चित्र है। लेखक ने कला के अनुराग से काल्पनिक चित्र में ऐतिहासिक वातावरण के आधार पर यथार्थ का रंग देने का प्रयत्न किया है।
बालिका अमिता का चित्रण
यशपाल ने बालिका अमिता की बाल सुलभ क्रिया कलापों का सुंदर चित्रण किया है। - बालिका महाराजकुमारी प्रति दो पग दौड़कर तीसरे पग पर उछलती आ रही थी। उनके पीछे-पीछे आता वृद्ध कंचुकी उद्दाल लम्बे चोंगे पर राजकीय चिह्न बाँधे, द्रुत गति के कारण हाँफ रहा था। उद्दाल का चेहरा अतिवार्धक्य के कारण पीले पड़ गये दाढ़ी-मूँछ से ढँका हुआ था। उसके माथे पर अनुभव की रेखायें थीं जिन्हें उत्तरदायित्व के बोझ ने और भी गहरा कर दिया था। उद्दाल के पीछे हाँफती हुई प्रौढ़ा दासी वापी आ रही थी। वापी के हाथ में राजकुमारी के लिये लाल चमड़े के छोटे-छोटे, सुन्दर जूते थे।[4]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ क्रांतिकारी यशपाल:एक समर्पित व्यक्तित्व (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 23 दिसम्बर, 2012।
- ↑ अमिता(1956) (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 23 दिसम्बर, 2012।
- ↑ अमिता(1956) (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 23 दिसम्बर, 2012।
- ↑ अमिता (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 23 दिसम्बर, 2012।
बाहरी कड़ियाँ
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