अदालत -अवतार एनगिल: Difference between revisions

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कुछ ही दिनों में
कुछ ही दिनों में
बदली के साथ-साथ
बदली के साथ-साथ
हो जाएगी तरक्की भी
हो जाएगी तरक़्क़ी भी


जानते हैं खूब
जानते हैं खूब

Latest revision as of 06:23, 29 June 2013

अदालत -अवतार एनगिल
कवि अवतार एनगिल
मूल शीर्षक सूर्य से सूर्य तक
देश भारत
पृष्ठ: 88
भाषा हिन्दी
विषय कविता
प्रकार काव्य संग्रह
अवतार एनगिल की रचनाएँ




साक्षी
एक अदद
चश्मदीद गवाह
गंगा राम
वल्द गीता राम
असुरक्षा के बेपैंदे धरातल पर खड़ा
साक्षी देता है
और कहता है
हवा को आग - आग को हवा
कितना झूठा है 'आंखों देखा सच्च
कितना सच्चा है कविता का झूठ ।

वकील

एक अदद वकील
काले लबादे वाला भील
क़ानून का भाला लिए
किताबों का हवाला लिए
देखता है सिर्फ
अभियुक्त का गला
लहराते हैं 'तथ्य'
दनदनाता है टाईपराईटर
ठीक करते हैं आप
गले बंधे झूठ की गांठ।

न्यायाधीश

एक अदद न्यायाधीश
लंच के बाद
निकालते हैं
टूथ पिक से
जाने किसका
दांतों फंसा मांस
कुछ ही दिनों में
बदली के साथ-साथ
हो जाएगी तरक़्क़ी भी

जानते हैं खूब
कि वकील की दलील ने
पेशियों की तारीख़ें ही बदलनी हैं
जस्टिस डिलेड इज़ द जस्टिस अवार्डिड ।

अभियुक्त

एक अदद अभियुक्त
कटघरे में नियम बंधा
चौंधिया गया था
और फिर बिंध गईं थीं उसकी आँखें
शब्दों की शमशीरों से

प्रतिलिपियों के खर्चों झुका
तर्कों के घ्रेरों रुका
पगला गया है
इस व्यूह में
धनुषधारी अर्जुन का बेटा ।

अदालत

एक अदद चश्मदीद गवाह - गंगा राम
एक अदद वकील - काले लबादे वाला भील
एक मांसाहारी न्यायाधीश
देते हैं निर्णय :
एक अदद शाकाहारी अभियुक्त निश्चय ही दोषी है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

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