सत्यकाम -सुमित्रानन्दन पंत: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
(''''सत्यकाम''' प्रसिद्ध कवि सुमित्रानन्दन पंत की [[कव...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
No edit summary
 
(One intermediate revision by the same user not shown)
Line 1: Line 1:
'''सत्यकाम''' प्रसिद्ध [[कवि]] [[सुमित्रानन्दन पंत]] की [[कविता|कविताओं]] का संग्रह है। पंत जी [[हिन्दी साहित्य]] में [[छायावादी युग]] के चार स्तंभों में से एक थे। एक नये युग के प्रवर्तक के रूप में पंत जी आधुनिक हिन्दी साहित्य में उदित हुए थे।
{{सूचना बक्सा पुस्तक
|चित्र=Blank-image-book.jpg
|चित्र का नाम=
|लेखक=
|कवि= [[सुमित्रानन्दन पंत]]
|मूल_शीर्षक = सत्यकाम
|मुख्य पात्र =
|कथानक =
|अनुवादक =
|संपादक =
|प्रकाशक =
|प्रकाशन_तिथि =
|भाषा = [[हिन्दी]]
|देश = [[भारत]]
|विषय =
|शैली =
|मुखपृष्ठ_रचना =
|विधा = [[महाकाव्य]]
|प्रकार =
|पृष्ठ =
|ISBN =
|भाग =
|विशेष =[[कवि]] [[सुमित्रानन्दन पंत]] ने अपने [[महाकाव्य]] 'सत्यकाम' को अपनी [[माता]] को समर्पित किया था, जो इन्हें जन्म देते ही मृत्यु को प्राप्त हो गई थीं।
|टिप्पणियाँ =
}}
 
'''सत्यकाम''' प्रसिद्ध [[कवि]] [[सुमित्रानन्दन पंत]] द्वारा रचित एक [[महाकाव्य]] है। पंत जी [[हिन्दी साहित्य]] में [[छायावादी युग]] के चार स्तंभों में से एक थे। एक नये युग के प्रवर्तक के रूप में पंत जी आधुनिक हिन्दी साहित्य में उदित हुए थे।


सुमित्रानन्दन पंत का अपने [[माता]]-[[पिता]] के प्रति असीम-सम्मान था। इसलिए उन्होंने अपने दो महाकाव्यों में से एक [[महाकाव्य]] '[[लोकायतन -सुमित्रानन्दन पंत|लोकायतन]]' अपने पूज्य पिता को और दूसरा महाकाव्य 'सत्यकाम' अपनी स्नेहमयी माता को, जो इन्हें जन्म देते ही स्वर्ग सिधार गईं, समर्पित किया है।<ref>{{cite web |url=http://pustak.org/bs/home.php?bookid=2150|title=सुमित्रानन्दन पंत रचना संचयन|accessmonthday=13 सितम्बर|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> अपनी माँ सरस्वती देवी<ref>पीहर का पुकारू नाम 'सरुली'</ref> को स्मरण करते हुए इन्होंने अपना दूसरा महाकाव्य 'सत्यकाम' जिन शब्दों के साथ उन्हें समर्पित किया है, वे द्रष्टव्य हैं-
सुमित्रानन्दन पंत का अपने [[माता]]-[[पिता]] के प्रति असीम-सम्मान था। इसलिए उन्होंने अपने दो महाकाव्यों में से एक [[महाकाव्य]] '[[लोकायतन -सुमित्रानन्दन पंत|लोकायतन]]' अपने पूज्य पिता को और दूसरा महाकाव्य 'सत्यकाम' अपनी स्नेहमयी माता को, जो इन्हें जन्म देते ही स्वर्ग सिधार गईं, समर्पित किया है।<ref>{{cite web |url=http://pustak.org/bs/home.php?bookid=2150|title=सुमित्रानन्दन पंत रचना संचयन|accessmonthday=13 सितम्बर|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> अपनी माँ सरस्वती देवी<ref>पीहर का पुकारू नाम 'सरुली'</ref> को स्मरण करते हुए इन्होंने अपना दूसरा महाकाव्य 'सत्यकाम' जिन शब्दों के साथ उन्हें समर्पित किया है, वे द्रष्टव्य हैं-

Latest revision as of 13:21, 13 September 2013

सत्यकाम -सुमित्रानन्दन पंत
कवि सुमित्रानन्दन पंत
मूल शीर्षक सत्यकाम
देश भारत
भाषा हिन्दी
विधा महाकाव्य
विशेष कवि सुमित्रानन्दन पंत ने अपने महाकाव्य 'सत्यकाम' को अपनी माता को समर्पित किया था, जो इन्हें जन्म देते ही मृत्यु को प्राप्त हो गई थीं।

सत्यकाम प्रसिद्ध कवि सुमित्रानन्दन पंत द्वारा रचित एक महाकाव्य है। पंत जी हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार स्तंभों में से एक थे। एक नये युग के प्रवर्तक के रूप में पंत जी आधुनिक हिन्दी साहित्य में उदित हुए थे।

सुमित्रानन्दन पंत का अपने माता-पिता के प्रति असीम-सम्मान था। इसलिए उन्होंने अपने दो महाकाव्यों में से एक महाकाव्य 'लोकायतन' अपने पूज्य पिता को और दूसरा महाकाव्य 'सत्यकाम' अपनी स्नेहमयी माता को, जो इन्हें जन्म देते ही स्वर्ग सिधार गईं, समर्पित किया है।[1] अपनी माँ सरस्वती देवी[2] को स्मरण करते हुए इन्होंने अपना दूसरा महाकाव्य 'सत्यकाम' जिन शब्दों के साथ उन्हें समर्पित किया है, वे द्रष्टव्य हैं-

मुझे छोड़ अनगढ़ जग में तुम हुई अगोचर,
भाव-देह धर लौटीं माँ की ममता से भर !
वीणा ले कर में, शोभित प्रेरणा-हंस पर,
साध चेतना-तंत्रि रसौ वै सः झंकृत कर
खोल हृदय में भावी के सौन्दर्य दिगंतर !


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सुमित्रानन्दन पंत रचना संचयन (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 13 सितम्बर, 2013।
  2. पीहर का पुकारू नाम 'सरुली'

संबंधित लेख