नीलगिरि गुफ़ाएँ: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
 
(3 intermediate revisions by 2 users not shown)
Line 1: Line 1:
'''नीलगिरि गुफ़ाएँ''' [[भुवनेश्वर]], [[उड़ीसा]] से चार-पाँच मील की दूरी पर स्थित हैं। ये गुफ़ाएँ [[जैन धर्म]] से सम्बन्धित हैं। माना जाता है कि इन गुफ़ाओं का निर्माण तीसरी शती ई.पू. में हुआ था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=505|url=}}</ref>
'''नीलगिरि गुफ़ाएँ''' [[भुवनेश्वर]], [[उड़ीसा]] से चार-पाँच मील की दूरी पर स्थित हैं। ये गुफ़ाएँ [[जैन धर्म]] से सम्बन्धित हैं। माना जाता है कि इन गुफ़ाओं का निर्माण तीसरी शती ई. पू. में हुआ था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=505|url=}}</ref>
{{tocright}}
{{tocright}}
====गुफ़ा समूह====
==गुफ़ा समूह==
नीलगिरि गुफाओं के पास घना वन्य प्रदेश है। नीलगिरि, खंडगिरि और उदयगिरि नामक गुहा समूह में 66 गुफाएँ हैं, जो दो पहाड़ियों पर स्थित हैं। [[उदयगिरि गुफ़ाएँ|उदयगिरि]] खंडगिरि में सब मिलाकर 19 गुफ़ाएँ हैं और उन्हीं के निकटवर्ती नीलगिरि नामक पहाड़ी में और भी कई गुफ़ाएँ देखने को मिलती हैं। इनमें रानीगुफ़ा के अतिरिक्त मंचपुरी और वैकुंठपुरी नाम की गुफ़ाएँ भी दर्शनीय हैं। इन गुफ़ाओं के [[शिलालेख|शिलालेखों]] तथा कलाकृतियों के आधार पर [[कलिंग]] नरेश [[खारवेल]] व उसके समीपवर्ती काल की पुष्टि होती हैं।
नीलगिरि गुफाओं के पास घना वन्य प्रदेश है। 'नीलगिरि', [[उदयगिरि और खण्डगिरि गुफ़ाएँ|'खंडगिरि' और 'उदयगिरि']] नामक गुहासमूह में 66 गुफाएँ हैं, जो दो पहाड़ियों पर स्थित हैं। उदयगिरि व खण्डगिरि में सब मिलाकर 19 गुफ़ाएँ हैं और उन्हीं के निकटवर्ती नीलगिरि नामक पहाड़ी में और भी कई गुफ़ाएँ देखने को मिलती हैं। इनमें '[[रानीगुफ़ा]]' के अतिरिक्त 'मंचपुरी' और 'वैकुंठपुरी' नाम की गुफ़ाएँ भी दर्शनीय हैं। इन गुफ़ाओं के [[शिलालेख|शिलालेखों]] तथा कलाकृतियों के आधार पर [[कलिंग]] [[खारवेल|नरेश खारवेल]] व उसके समीपवर्ती काल की पुष्टि होती हैं।
====जैन धार्मिक स्थल====
==जैन धार्मिक स्थल==
खंडगिरि की नवमुनि नामक गुफ़ा में दसवीं शती का एक शिलालेख है, जिसमें [[जैन]] मुनि शुभचन्द्र का नाम आया है। इस कारण यह प्रतीत होता है कि यह स्थान ई. पूर्व द्वितीय शती से दसवीं शती तक [[जैन धर्म]] का एक सुदृढ़ और प्रमुख केन्द्र रहा था।
खंडगिरि की 'नवमुनि' नामक गुफ़ा में दसवीं शती का एक [[शिलालेख]] है, जिसमें जैन मुनि 'शुभचन्द्र' का नाम आया है। इस कारण यह प्रतीत होता है कि यह स्थान ई. पूर्व द्वितीय शती से दसवीं शती तक [[जैन धर्म]] का एक सुदृढ़ और प्रमुख केन्द्र रहा था।
 
 
{{seealso|उदयगिरि और खण्डगिरि गुफ़ाएँ}}


{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
Line 11: Line 14:
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{उड़ीसा के पर्यटन स्थल}}
{{उड़ीसा के पर्यटन स्थल}}
[[Category:उड़ीसा राज्य]][[Category:उड़ीसा राज्य के ऐतिहासिक स्थान]][[Category:इतिहास कोश]][[Category:उड़ीसा राज्य के पर्यटन स्थल]][[Category:पर्यटन कोश]]
[[Category:उड़ीसा राज्य]][[Category:उड़ीसा राज्य के ऐतिहासिक स्थान]][[Category:इतिहास कोश]][[Category:उड़ीसा राज्य के पर्यटन स्थल]][[Category:ऐतिहासिक स्थल]][[Category:पर्यटन कोश]]
__INDEX__
__INDEX__

Latest revision as of 14:00, 10 January 2015

नीलगिरि गुफ़ाएँ भुवनेश्वर, उड़ीसा से चार-पाँच मील की दूरी पर स्थित हैं। ये गुफ़ाएँ जैन धर्म से सम्बन्धित हैं। माना जाता है कि इन गुफ़ाओं का निर्माण तीसरी शती ई. पू. में हुआ था।[1]

गुफ़ा समूह

नीलगिरि गुफाओं के पास घना वन्य प्रदेश है। 'नीलगिरि', 'खंडगिरि' और 'उदयगिरि' नामक गुहासमूह में 66 गुफाएँ हैं, जो दो पहाड़ियों पर स्थित हैं। उदयगिरि व खण्डगिरि में सब मिलाकर 19 गुफ़ाएँ हैं और उन्हीं के निकटवर्ती नीलगिरि नामक पहाड़ी में और भी कई गुफ़ाएँ देखने को मिलती हैं। इनमें 'रानीगुफ़ा' के अतिरिक्त 'मंचपुरी' और 'वैकुंठपुरी' नाम की गुफ़ाएँ भी दर्शनीय हैं। इन गुफ़ाओं के शिलालेखों तथा कलाकृतियों के आधार पर कलिंग नरेश खारवेल व उसके समीपवर्ती काल की पुष्टि होती हैं।

जैन धार्मिक स्थल

खंडगिरि की 'नवमुनि' नामक गुफ़ा में दसवीं शती का एक शिलालेख है, जिसमें जैन मुनि 'शुभचन्द्र' का नाम आया है। इस कारण यह प्रतीत होता है कि यह स्थान ई. पूर्व द्वितीय शती से दसवीं शती तक जैन धर्म का एक सुदृढ़ और प्रमुख केन्द्र रहा था।


  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 505 |

संबंधित लेख