भारतीय पुलिस: Difference between revisions

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गाँवों में चौकीदार रखे जाते थे, जिन्हें सरकार मामूली वेतन दिया करती थी। उनका काम अपने क्षेत्र के बदमाशों पर नज़र रखना और कोई दंडनीय अपराध होने पर उसकी सूचना थानाध्यक्ष को देना होता था। [[कलकत्ता]], [[बम्बई]] तथा [[मद्रास]] के प्रेसीडेंसी नगरों में पुलिस कमिश्नर के अधीन एक संयुक्त पुलिसदल होता था। पुलिस कमिश्नर सीधे पुलिस विभाग से सम्बन्धित मंत्री के अधीन होता था और क़ानून तथा व्यवस्था बनाये रखना तथा विभागीय प्रशिक्षण प्रदान करना उसकी ज़िम्मेदारी होती थी। अब [[भारतीय प्रशासनिक सेवा]] के सदस्यों की भाँति पुलिस अधीक्षकों की भरती भी मुख्य रूप से अखिल भारतीय [[प्रतियोगिता परीक्षा]] के आधार पर होती है। किन्तु अभी तक कोई अखिल भारतीय पुलिस सेवा नहीं गठित की गई है।
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[[1861]] ई. के पुलिस एक्ट के द्वारा पुलिस को प्रान्तीय संगठन बना दिया गया और उसका प्रशासन सम्बन्धित प्रान्तीय सरकारों के ज़िम्मे कर दिया गया। प्रत्येक प्रान्त के पुलिस संगठन का प्रधान पुलिस महानिरीक्षक होता है, जो कि उसका नियंत्रण करता है। सारे देश में पुलिस संगठन का सबसे बड़ा दोष यह था कि पुलिस अफ़सरों में शिक्षा का अभाव तथा भ्रष्टाचार का बोलबाला रहता था। [[1902]] ई. में पुलिस प्रशासन की जाँच करने के लिए एक कमीशन की नियुक्ति की गई और उसकी सिफ़ारिशों के आधार पर पुलिस दल में सुधार करने और उसका मनोबल ऊँचा उठाने के लिए क़दम उठाये गये। एक ख़फ़िया जाँच विभाग की स्थापना की गई तथा अंतरप्रान्तीय समन्वय के लिए केन्द्रीय सरकार के गृह विभाग के अधीन केन्द्रीय ख़ुफ़िया विभाग गठित किया गया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पुलिस दल में अधिक शिक्षित व्यक्तियों को आकर्षित करने के उद्देश्य से वेतन मान में सुधार कर दिया गया है और सुविधाओं में भी वृद्धि कर दी गई है। पुलिस दलों के सदस्यों में यह भावना उत्पन्न करने का प्रयास किया गया है कि, वे जनता के सेवक हैं, किन्तु इसमें सीमित सफलता ही मिली है।
1861 ई. के पुलिस एक्ट के द्वारा पुलिस को प्रान्तीय संगठन बना दिया गया और उसका प्रशासन सम्बन्धित प्रान्तीय सरकारों के ज़िम्मे कर दिया गया। प्रत्येक प्रान्त के पुलिस संगठन का प्रधान पुलिस महानिरीक्षक होता है, जो कि उसका नियंत्रण करता है। सारे देश में पुलिस संगठन का सबसे बड़ा दोष यह था कि पुलिस अफ़सरों में शिक्षा का अभाव तथा भ्रष्टाचार का बोलबाला रहता था। [[1902]] ई. में पुलिस प्रशासन की जाँच करने के लिए एक कमीशन की नियुक्ति की गई और उसकी सिफ़ारिशों के आधार पर पुलिस दल में सुधार करने और उसका मनोबल ऊँचा उठाने के लिए क़दम उठाये गये। एक ख़फ़िया जाँच विभाग की स्थापना की गई तथा अंतरप्रान्तीय समन्वय के लिए केन्द्रीय सरकार के गृह विभाग के अधीन केन्द्रीय ख़ुफ़िया विभाग गठित किया गया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पुलिस दल में अधिक शिक्षित व्यक्तियों को आकर्षित करने के उद्देश्य से वेतन मान में सुधार कर दिया गया है और सुविधाओं में भी वृद्धि कर दी गई है। पुलिस दलों के सदस्यों में यह भावना उत्पन्न करने का प्रयास किया गया है कि, वे जनता के सेवक हैं, किन्तु इसमें सीमित सफलता ही मिली है।


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Latest revision as of 07:29, 22 October 2016

भारतीय पुलिस
विवरण सर्वप्रथम ब्रिटिश भारत में इस विभाग की स्थापना गवर्नर-जनरल लार्ड कार्नवालिस (1786-93 ई.) ने की।
स्थापना (1786-93 ई.)
संबंधित लेख भारतीय पुलिस सेवा पुलिस स्मृति दिवस
अन्य जानकारी 1861 ई. के पुलिस एक्ट के द्वारा पुलिस को प्रान्तीय संगठन बना दिया गया और उसका प्रशासन सम्बन्धित प्रान्तीय सरकारों के ज़िम्मे कर दिया गया।
अद्यतन‎

सर्वप्रथम ब्रिटिश भारत में इस विभाग की स्थापना गवर्नर-जनरल लार्ड कार्नवालिस (1786-93 ई.) ने की। कलकत्ता, ढाका, पटना तथा मुर्शिदाबाद में चार अधीक्षकों के अधीन पुलिस रखी गई। क्रमश: प्रत्येक ज़िले में एक पुलिस अधीक्षक की नियुक्ति हुई। उसके अधीन प्रत्येक सब-डिवीजन में एक उप-पुलिस अधीक्षक, प्रत्येक सर्किल में एक पुलिस इंसपेक्टर तथा प्रत्येक थाने में एक थानाध्यक्ष होता था। थानाध्यक्ष के अधीन कई कांस्टेबल होते थे। इन सबको राज्य से वेतन दिया जाता था और वे सामूहिक रूप से अपने-अपने क्षेत्र में शांति और व्यवस्था बनाये रखने के लिए ज़िम्मेदार होते थे।

गाँवों में चौकीदार रखे जाते थे, जिन्हें सरकार मामूली वेतन दिया करती थी। उनका काम अपने क्षेत्र के बदमाशों पर नज़र रखना और कोई दंडनीय अपराध होने पर उसकी सूचना थानाध्यक्ष को देना होता था। कलकत्ता, बम्बई तथा मद्रास के प्रेसीडेंसी नगरों में पुलिस कमिश्नर के अधीन एक संयुक्त पुलिसदल होता था। पुलिस कमिश्नर सीधे पुलिस विभाग से सम्बन्धित मंत्री के अधीन होता था और क़ानून तथा व्यवस्था बनाये रखना तथा विभागीय प्रशिक्षण प्रदान करना उसकी ज़िम्मेदारी होती थी। अब भारतीय प्रशासनिक सेवा के सदस्यों की भाँति पुलिस अधीक्षकों की भरती भी मुख्य रूप से अखिल भारतीय प्रतियोगिता परीक्षा के आधार पर होती है। किन्तु अभी तक कोई अखिल भारतीय पुलिस सेवा नहीं गठित की गई है। thumb|left|भारतीय पुलिस 1861 ई. के पुलिस एक्ट के द्वारा पुलिस को प्रान्तीय संगठन बना दिया गया और उसका प्रशासन सम्बन्धित प्रान्तीय सरकारों के ज़िम्मे कर दिया गया। प्रत्येक प्रान्त के पुलिस संगठन का प्रधान पुलिस महानिरीक्षक होता है, जो कि उसका नियंत्रण करता है। सारे देश में पुलिस संगठन का सबसे बड़ा दोष यह था कि पुलिस अफ़सरों में शिक्षा का अभाव तथा भ्रष्टाचार का बोलबाला रहता था। 1902 ई. में पुलिस प्रशासन की जाँच करने के लिए एक कमीशन की नियुक्ति की गई और उसकी सिफ़ारिशों के आधार पर पुलिस दल में सुधार करने और उसका मनोबल ऊँचा उठाने के लिए क़दम उठाये गये। एक ख़फ़िया जाँच विभाग की स्थापना की गई तथा अंतरप्रान्तीय समन्वय के लिए केन्द्रीय सरकार के गृह विभाग के अधीन केन्द्रीय ख़ुफ़िया विभाग गठित किया गया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पुलिस दल में अधिक शिक्षित व्यक्तियों को आकर्षित करने के उद्देश्य से वेतन मान में सुधार कर दिया गया है और सुविधाओं में भी वृद्धि कर दी गई है। पुलिस दलों के सदस्यों में यह भावना उत्पन्न करने का प्रयास किया गया है कि, वे जनता के सेवक हैं, किन्तु इसमें सीमित सफलता ही मिली है।


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