ज्वालादेवी मंदिर: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - "करीब" to "क़रीब")
No edit summary
 
(One intermediate revision by one other user not shown)
Line 1: Line 1:
[[चित्र:Jwala-Devi-Himachal-Pradesh.jpg|thumb|250px|ज्वालादेवी मंदिर, कांगड़ा]]
{{सूचना बक्सा मन्दिर
|चित्र=Jwala-Devi-Himachal-Pradesh.jpg
|चित्र का नाम=ज्वालादेवी मंदिर, कांगड़ा
|वर्णन=कांगड़ा घाटी, [[हिमाचल प्रदेश]] से क़रीब 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ज्वालादेवी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहाँ माँ शक्ति की नौ ज्वालाएँ प्रज्ज्लित हैं।
|स्थान=[[हिमाचल प्रदेश]]
|निर्माता=
|जीर्णोद्धारक=
|निर्माण काल=
|देवी-देवता=
|वास्तुकला=
|भौगोलिक स्थिति=
|संबंधित लेख=
|शीर्षक 1=
|पाठ 1=
|शीर्षक 2=
|पाठ 2=
|अन्य जानकारी=मंदिर में विशालकाय [[चाँदी]] के दरवाज़े हैं। इसका गुंबद सोने की तरह चमकने वाले पदार्थ की प्लेटों से बना है।
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन=
}}
कांगड़ा घाटी, [[हिमाचल प्रदेश]] से क़रीब 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ज्वालादेवी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहाँ माँ शक्ति की नौ ज्वालाएँ प्रज्ज्लित हैं। माना जाता है कि देवी सती की जीभ इसी जगह गिरी थी। कालीधर पर्वत की शांत तलहटी में बसे इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहाँ देवी की कोई मूर्ति नहीं है। बल्कि यहाँ धधकती ज्वाला बिना [[घी]], तेल दीया और बाती के लगातार जलती रहती है। यह ज्वाला पत्थर को चीरकर बाहर निकलती आती है। कहा जाता है कि [[अकबर]] ने इस जलती ज्वाला को बुझाने के लिए कई कोशिशें कीं, लेकिन ज्वाला रुकी नहीं। जब अकबर को यह महसूस हुआ कि वह कोई शक्ति है, तो अकबर ने देवी के लिए विशेष तौर पर सोने का छत्र बनवाकर चढ़ाया। लेकिन सोने का वह छत्र दूसरी धातु से बदल गया। वो छत्र आज भी वहीं रखा हुआ है।  
कांगड़ा घाटी, [[हिमाचल प्रदेश]] से क़रीब 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ज्वालादेवी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहाँ माँ शक्ति की नौ ज्वालाएँ प्रज्ज्लित हैं। माना जाता है कि देवी सती की जीभ इसी जगह गिरी थी। कालीधर पर्वत की शांत तलहटी में बसे इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहाँ देवी की कोई मूर्ति नहीं है। बल्कि यहाँ धधकती ज्वाला बिना [[घी]], तेल दीया और बाती के लगातार जलती रहती है। यह ज्वाला पत्थर को चीरकर बाहर निकलती आती है। कहा जाता है कि [[अकबर]] ने इस जलती ज्वाला को बुझाने के लिए कई कोशिशें कीं, लेकिन ज्वाला रुकी नहीं। जब अकबर को यह महसूस हुआ कि वह कोई शक्ति है, तो अकबर ने देवी के लिए विशेष तौर पर सोने का छत्र बनवाकर चढ़ाया। लेकिन सोने का वह छत्र दूसरी धातु से बदल गया। वो छत्र आज भी वहीं रखा हुआ है।  
==वास्तुकला==
==वास्तुकला==
मंदिर में विशालकाय [[चाँदी]] के दरवाजे हैं। इसका गुंबद सोने की तरह चमकने वाले पदार्थ की प्लेटों से बना है। मुख्य द्वार से पहले एक बड़ा घंटा है, इसे [[नेपाल]] के राजा ने प्रदान किया था। पूजा के लिए मंदिर का आंतरिक हिस्सा चौकोर बनाया गया है। प्रांगण में एक चट्टान है, जो देवी महाकाली के उग्र मुख का प्रतीक है। द्वार पर दो [[सिंह]] विराजमान है। रात को सोने से पहले की जाने वाली [[आरती पूजन|आरती]] का विशेष महत्त्व है। यह आरती बेहद अलग होती है।
मंदिर में विशालकाय [[चाँदी]] के दरवाज़े हैं। इसका गुंबद सोने की तरह चमकने वाले पदार्थ की प्लेटों से बना है। मुख्य द्वार से पहले एक बड़ा घंटा है, इसे [[नेपाल]] के राजा ने प्रदान किया था। पूजा के लिए मंदिर का आंतरिक हिस्सा चौकोर बनाया गया है। प्रांगण में एक चट्टान है, जो देवी महाकाली के उग्र मुख का प्रतीक है। द्वार पर दो [[सिंह]] विराजमान है। रात को सोने से पहले की जाने वाली [[आरती पूजन|आरती]] का विशेष महत्त्व है। यह आरती बेहद अलग होती है।
==मार्ग==
==मार्ग==
ज्वालादेवी मंदिर पहुँचने के लिए नजदीकी एयरपोर्ट [[कुल्लू]] और रेलवे स्टेशन [[कालका]] है। कुल्लू से ज्वालादेवी मात्र 25 किलोमीटर और कालका से 90 किलोमीटर की दूरी पर है। [[धर्मशाला]] से यह स्थल क़रीब 30 किलोमीटर की दूरी पर है। [[दिल्ली]] से ज्वालादेवी की क़रीब 350 किलोमीटर है।  
ज्वालादेवी मंदिर पहुँचने के लिए नजदीकी एयरपोर्ट [[कुल्लू]] और रेलवे स्टेशन [[कालका]] है। कुल्लू से ज्वालादेवी मात्र 25 किलोमीटर और कालका से 90 किलोमीटर की दूरी पर है। [[धर्मशाला]] से यह स्थल क़रीब 30 किलोमीटर की दूरी पर है। [[दिल्ली]] से ज्वालादेवी की क़रीब 350 किलोमीटर है।  

Latest revision as of 12:17, 10 November 2016

ज्वालादेवी मंदिर
वर्णन कांगड़ा घाटी, हिमाचल प्रदेश से क़रीब 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ज्वालादेवी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहाँ माँ शक्ति की नौ ज्वालाएँ प्रज्ज्लित हैं।
स्थान हिमाचल प्रदेश
अन्य जानकारी मंदिर में विशालकाय चाँदी के दरवाज़े हैं। इसका गुंबद सोने की तरह चमकने वाले पदार्थ की प्लेटों से बना है।

कांगड़ा घाटी, हिमाचल प्रदेश से क़रीब 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ज्वालादेवी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहाँ माँ शक्ति की नौ ज्वालाएँ प्रज्ज्लित हैं। माना जाता है कि देवी सती की जीभ इसी जगह गिरी थी। कालीधर पर्वत की शांत तलहटी में बसे इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहाँ देवी की कोई मूर्ति नहीं है। बल्कि यहाँ धधकती ज्वाला बिना घी, तेल दीया और बाती के लगातार जलती रहती है। यह ज्वाला पत्थर को चीरकर बाहर निकलती आती है। कहा जाता है कि अकबर ने इस जलती ज्वाला को बुझाने के लिए कई कोशिशें कीं, लेकिन ज्वाला रुकी नहीं। जब अकबर को यह महसूस हुआ कि वह कोई शक्ति है, तो अकबर ने देवी के लिए विशेष तौर पर सोने का छत्र बनवाकर चढ़ाया। लेकिन सोने का वह छत्र दूसरी धातु से बदल गया। वो छत्र आज भी वहीं रखा हुआ है।

वास्तुकला

मंदिर में विशालकाय चाँदी के दरवाज़े हैं। इसका गुंबद सोने की तरह चमकने वाले पदार्थ की प्लेटों से बना है। मुख्य द्वार से पहले एक बड़ा घंटा है, इसे नेपाल के राजा ने प्रदान किया था। पूजा के लिए मंदिर का आंतरिक हिस्सा चौकोर बनाया गया है। प्रांगण में एक चट्टान है, जो देवी महाकाली के उग्र मुख का प्रतीक है। द्वार पर दो सिंह विराजमान है। रात को सोने से पहले की जाने वाली आरती का विशेष महत्त्व है। यह आरती बेहद अलग होती है।

मार्ग

ज्वालादेवी मंदिर पहुँचने के लिए नजदीकी एयरपोर्ट कुल्लू और रेलवे स्टेशन कालका है। कुल्लू से ज्वालादेवी मात्र 25 किलोमीटर और कालका से 90 किलोमीटर की दूरी पर है। धर्मशाला से यह स्थल क़रीब 30 किलोमीटर की दूरी पर है। दिल्ली से ज्वालादेवी की क़रीब 350 किलोमीटर है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख