अनकहा इससे अधिक है -दिनेश रघुवंशी: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
m (Text replacement - "ह्रदय" to "हृदय")
 
Line 64: Line 64:
यूं तो शिखरों से बड़ी ऊँचाईयों को छू लिया है
यूं तो शिखरों से बड़ी ऊँचाईयों को छू लिया है
छूने को पाताल-सी गहराईयों को छू लिया है
छूने को पाताल-सी गहराईयों को छू लिया है
विष भरी बातें हंसी जब बींध कर मेरे ह्रदय को
विष भरी बातें हंसी जब बींध कर मेरे हृदय को
खुश्बुएँ छूकर लगा अच्छाईयों को छू लिया है
खुश्बुएँ छूकर लगा अच्छाईयों को छू लिया है
तुम मिले जिस पल मुझे ऐसा लगा-
तुम मिले जिस पल मुझे ऐसा लगा-

Latest revision as of 09:51, 24 February 2017

अनकहा इससे अधिक है -दिनेश रघुवंशी
कवि दिनेश रघुवंशी
जन्म 26 अगस्त, 1964
जन्म स्थान ग्राम ख़ैरपुर, बुलन्दशहर ज़िला, (उत्तर प्रदेश)
बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक वेबसाइट
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
दिनेश रघुवंशी की रचनाएँ

तुम अधूरी बात सुनकर चल दिए-

    जो सुना तुमने अभी तक, अनसुना इससे अधिक है
    जो कहा मैंने अभी तक, अनकहा इससे अधिक है

मैं तुम्हारी और अपनी ही कहानी लिख रहा था
वक़्त ने जो की थी मुझपे मेहरबानी लिख रहा था
पत्र मेरा अन्त तक पढ़ते तो ये मालूम होता
मैं तुम्हारे नाम अपनी ज़िन्दगानी लिख रहा था
तुम अधूरा पत्र पढ़कर चल दिए-

    जो पढ़ा तुमने अभी तक, अनपढ़ा इससे अधिक है
    जो कहा मैंने अभी तक, अनकहा इससे अधिक है

प्रार्थना में लग रहा कोई कमी फिर भी रह गई है
हंस रहा हूं किन्तु पलकों पर नमी फिर रह गई है
फिर तुम्हारी ही क़सम ने इस क़दर बेबस किया
ज़िन्दगी हैरान मुझको देखती फिर रह गई है
भाग्य-रेखाओं में मेरी आज तक-

    जो लिखा तुमने अभी तक, अनलिखा इससे अधिक है
    जो कहा मैंने अभी तक, अनकहा इससे अधिक है

हो ग़मों की भीड़ फिर भी मुस्कु्राऊँ, सोचता हूं
मैं किसी को भूलकर भी याद आऊँ, सोचता हूं
कोई मुझको आँसुअओं कि तरह पलकों पर सजाये
ओर करे कोई इशारा, टूट जाऊँ सोचता हूं
ज़िन्दगी मुझसे मिली कहने लगी-

    जो गुना तुमने अभी तक, अनगुना इससे अधिक है
    जो कहा मैंने अभी तक, अनकहा इससे अधिक है

यूं तो शिखरों से बड़ी ऊँचाईयों को छू लिया है
छूने को पाताल-सी गहराईयों को छू लिया है
विष भरी बातें हंसी जब बींध कर मेरे हृदय को
खुश्बुएँ छूकर लगा अच्छाईयों को छू लिया है
तुम मिले जिस पल मुझे ऐसा लगा-

    हो छुआ मैंने अभी तक, अनछुआ इससे अधिक है
    जो कहा मैंने अभी तक, अनकहा इससे अधिक है

तुम अधूरी बात सुनकर चल दिए…


टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख