अंगुलि छाप: Difference between revisions

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#घटनास्थल की विभिन्न वस्तुओं पर अपराधी की अंकित अंगुलि छापों की तुलना संदिग्ध व्यक्ति की अंगुलि छापों से करके वह निश्चित करना कि अपराध किसने किया है।
#घटनास्थल की विभिन्न वस्तुओं पर अपराधी की अंकित अंगुलि छापों की तुलना संदिग्ध व्यक्ति की अंगुलि छापों से करके वह निश्चित करना कि अपराध किसने किया है।
==अन्य उपयोगिता==
==अन्य उपयोगिता==
अंगुलि छापों का प्रयोग पुलिस विभाग तक ही सीमित नहीं है, अपितु अनेक सार्वजनिक कार्यों में यह अचूक पहचान के लिए उपयोगी सिद्ध हुआ है। नवजात बच्चों की अदला-बदली रोकने के लिए विदेशों के अस्पतालों में प्रारंभ में ही बालकों की पद छाप तथा उनकी [[माता|माताओं]] की अंगुलि छाप से ली जाती है। कोई भी नागरिक समाज सेवा तथा अपनी रक्षा एवं पहचान के लिए अपनी अंगुलि छाप की सिविल रजिस्ट्री कराकर दुर्घटनाओं या अन्यथा क्षतविक्षत होने या पागल हो जाने की दशा में अपनी तथा खोए हुए बालकों की पहचान सुनिश्चित कर सकती है। [[अमरीका]] में तो यह प्रथा सर्वसाधारण तक से प्रचलित हो रही है।<ref>{{cite web |url=http://khoj.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%85%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%B8 |title=अंगिरस |accessmonthday=15 फ़रवरी |accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भारतखोज|language= हिंदी}}</ref>
अंगुलि छापों का प्रयोग पुलिस विभाग तक ही सीमित नहीं है, अपितु अनेक सार्वजनिक कार्यों में यह अचूक पहचान के लिए उपयोगी सिद्ध हुआ है। नवजात बच्चों की अदला-बदली रोकने के लिए विदेशों के अस्पतालों में प्रारंभ में ही बालकों की पद छाप तथा उनकी [[माता|माताओं]] की अंगुलि छाप से ली जाती है। कोई भी नागरिक समाज सेवा तथा अपनी रक्षा एवं पहचान के लिए अपनी अंगुलि छाप की सिविल रजिस्ट्री कराकर दुर्घटनाओं या अन्यथा क्षतविक्षत होने या पागल हो जाने की दशा में अपनी तथा खोए हुए बालकों की पहचान सुनिश्चित कर सकती है। [[अमरीका]] में तो यह प्रथा सर्वसाधारण तक से प्रचलित हो रही है।<ref>{{cite web |url=http://bharatkhoj.org/india/%E0%A4%85%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%B8 |title=अंगिरस |accessmonthday=15 फ़रवरी |accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भारतखोज|language= हिंदी}}</ref>




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==संबंधित लेख==
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Latest revision as of 12:24, 25 October 2017

thumb|right| अंगुलि छाप हल चलाए खेत की भाँति मनुष्य के हाथों तथा पैरों के तलबों में उभरी तथा गहरी महीन रेखाएँ दृष्टिगत होती हैं। वैसे तो वे रेखाएँ इतनी सूक्ष्म होती हैं कि सामान्यत: इनकी ओर ध्यान भी नहीं जाता, किंतु इनके विशेष अध्ययन ने एक विज्ञान को जन्म दिया है, जिसे अंगुलि-छाप-विज्ञान कहते हैं। इस विज्ञान में अंगुलियों के ऊपरी पोरों की उन्नत रेखाओं का विशेष महत्व है। कुछ सामान्य लक्षणों के आधार पर किए गए विश्लेषण के फलस्वरूप, इनसे बनने वाले आकार चार प्रकार के माने गए हैं:

  1. शंख (लूप)
  2. चक्र (व्होर्ल)
  3. शुक्ति या चाप (आर्च) तथा
  4. मिश्रित (कंपोजिट)

उत्पत्ति

ऐसा विश्वास किया जाता है कि अंगुलि-छाप-विज्ञान का जन्म अत्यंत प्राचीन काल में एशिया में हुआ। भारतीय सामुद्रिक ने उपर्युक्त शंख, चक्र तथा शुक्तियों का विचार भविष्य गणना में किया है। दो हज़ार वर्ष से भी पहले चीन में अंगुलि-छापों का प्रयोग व्यक्ति की पहचान के लिए होता था। किंतु आधुनिक अंगुलि-छाप-विज्ञान का जन्म हम 1823 ई. से मान सकते हैं, जब ब्रेसला (जर्मनी) विश्वविद्यालय के प्राध्यापक श्री परकिंजे ने अंगुलि रेखाओं के स्थायित्व को स्वीकार किया। वर्तमान अंगुली-छाप-प्रणाली का प्रारंभ 1858 ई. में इंडियन सिविल सर्विस के सर विलियम हरशेल ने बंगाल के हुगली ज़िले में किया। thumb|left|

वर्गीकरण

1892 ई. में प्रसिद्ध अंग्रेज़ वैज्ञानिक सर फ्रांसिस गाल्टन ने अंगुलि छापों पर अपनी एक पुस्तक प्रकाशित की, जिसमें उन्होंने हुगली के सब-रजिस्ट्रार श्री रामगति बंद्योपाध्याय द्वारा दी गई सहायता के लिए कृतज्ञता प्रकट की। उन्होंने उन्नत रेखाओं का स्थायित्व सिद्ध करते हुए अंगुलि छापों के वर्गीकरण तथा उनका अभिलेख रखने की एक प्रणाली बनाई, जिससे संदिग्ध व्यक्तियों की ठीक से पहचान हो सके। किंतु यह प्रणाली कुछ कठिन थी। दक्षिण प्रांत (बंगाल) के पुलिस इंस्पेक्टर जनरल सर ई.आर. हेनरी ने उक्त प्रणाली में सुधार करके अंगुलि छापों के वर्गीकरण की सरल प्रणाली निर्धारित की। इसका वास्तविक श्रेय श्री अजीजुल हक, पुलिस सब-इंस्पेक्टर, को है, जिन्हें सरकार ने 5000 का पुरस्कार भी दिया था।

महत्त्व

इस प्रणाली की अचूकता देखकर भारत सरकार ने 1897 ई. में अंगुलि छापों द्वारा पूर्व दंडित पूर्वदंडित व्यक्तियों की पहचान के लिए विश्व का प्रथम अंगुलि-छाप-कार्यालय कलकत्ता में स्थापित किया। अंगुलि छाप द्वारा पहचान हो सिद्धांतों पर आश्रित है, एक तो यह कि दो भि­­न्न अंगुलियों की छापें कभी एक सी नहीं हो सकतीं, और दूसरा यह कि व्यक्तियों की अंगुलि छापें जीवन भर ही नहीं, अपितु जीवनोपरांत भी नहीं बदलती। अत: किसी भी विचारणीय अंगुलि छाप को किसी व्यक्ति की अंगुलि छाप से तुलना करके यह निश्चित किया जा सकता है कि विचारणीय अंगुलि छाप उसकी है या नहीं। अंगुलि छाप के अभाव में व्यक्ति की पहचान करना कितना कठिन है, यह प्रसिद्ध भवाल संन्यासीवाद (केस) के अनुशीलन से स्पष्ट हो जाएगा।

छापे की अनिवार्यता

thumb|right अनेक अपराधी ऐसे होते हैं, जो स्वेच्छा से अपनी अंगुलि छाप नहीं देना चाहते। अत: कैदी पहचान अधिनियम (आइडेंटिफ़िकेशन ऑफ़ प्रिजनर्स एक्ट 1920) द्वारा भारतीय पुलिस को बंदियों की अंगुलियों की छाप लेने का अधिकार दिया गया है। भारत के प्रत्येक राज्य में एक सरकारी अंगुलि-छाप- कार्यालय है, जिसमें दंडित व्यक्तियों की अंगुलि छापों के अभिलेख रखे जाते हैं तथा अपेक्षित तुलना के उपरांत आवश्यक सूचना दी जाती है। इलाहाबाद स्थित उत्तर प्रदेश के कार्यालय में ही लगभग तीन लाख ऐसे अभिलेख हैं। 1953 ई. में कलकत्ता में एक केंद्रीय अंगुलि-छाप-कार्यालय की भी स्थापना की गई है। इनके अतिरिक्त अनेक ऐसे विशेषज्ञ हैं, जो अंगुलि छापों के विवादग्रस्त मामलों में अपनी संमतियाँ देने का व्यवसाय करते हैं।

उपयोगिता

अंगुलि-छाप-विज्ञान तीन कार्यों के लिए विशेष उपयोगी है, यथा-

  1. विवादग्रस्त लेखों पर की अंगुलि छापों की तुलना व्यक्ति विशेष की अंगुलि छापों से करके यह निश्चित करना कि विवादग्रस्त अंगुलि छाप उस व्यक्ति की है या नहीं।
  2. ठीक नाम और पता न बताने वाले अभियुक्त की अंगुलि छापों की तुलना दंडित व्यक्ति की अंगुलि छापों से करके यह निश्चित करना कि यह पूर्व दंडित है अथवा नहीं; और
  3. घटनास्थल की विभिन्न वस्तुओं पर अपराधी की अंकित अंगुलि छापों की तुलना संदिग्ध व्यक्ति की अंगुलि छापों से करके वह निश्चित करना कि अपराध किसने किया है।

अन्य उपयोगिता

अंगुलि छापों का प्रयोग पुलिस विभाग तक ही सीमित नहीं है, अपितु अनेक सार्वजनिक कार्यों में यह अचूक पहचान के लिए उपयोगी सिद्ध हुआ है। नवजात बच्चों की अदला-बदली रोकने के लिए विदेशों के अस्पतालों में प्रारंभ में ही बालकों की पद छाप तथा उनकी माताओं की अंगुलि छाप से ली जाती है। कोई भी नागरिक समाज सेवा तथा अपनी रक्षा एवं पहचान के लिए अपनी अंगुलि छाप की सिविल रजिस्ट्री कराकर दुर्घटनाओं या अन्यथा क्षतविक्षत होने या पागल हो जाने की दशा में अपनी तथा खोए हुए बालकों की पहचान सुनिश्चित कर सकती है। अमरीका में तो यह प्रथा सर्वसाधारण तक से प्रचलित हो रही है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अंगिरस (हिंदी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 15 फ़रवरी, 2014।

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