अचला नागर: Difference between revisions
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'''अचला नागर''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Achala Nagar'' , जन्म- [[2 दिसंबर]], [[1939]], [[लखनऊ]], [[उत्तर प्रदेश]]) प्रसिद्ध फ़िल्म पटकथा एवं संवाद लेखिका हैं। उनकी पटकथा में रिश्ते-नाते, जवाबदारियाँ, वफाएँ, प्रेम, जज्बात, निबाह के छोटे-छोटे दृश्य इतने सशक्त होते हैं कि दर्शक बँधा रहता है। 'ईश्वर', 'मेरा पति सिर्फ मेरा है', 'निगाहें', 'नगीना', 'सदा सुहागन' आदि उनकी चर्चित फ़िल्में हैं। | '''अचला नागर''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Achala Nagar'' , जन्म- [[2 दिसंबर]], [[1939]], [[लखनऊ]], [[उत्तर प्रदेश]]) प्रसिद्ध फ़िल्म पटकथा एवं संवाद लेखिका हैं। उनकी पटकथा में रिश्ते-नाते, जवाबदारियाँ, वफाएँ, प्रेम, जज्बात, निबाह के छोटे-छोटे दृश्य इतने सशक्त होते हैं कि दर्शक बँधा रहता है। 'ईश्वर', 'मेरा पति सिर्फ मेरा है', 'निगाहें', 'नगीना', 'सदा सुहागन' आदि उनकी चर्चित फ़िल्में हैं। | ||
==जीवन परिचय== | ==जीवन परिचय== | ||
डॉ. अचला नागर का जन्म [[2 दिसंबर]], [[1939]] को [[लखनऊ]], [[उत्तर प्रदेश]] में हुआ था। वे मूर्धन्य साहित्यकार | डॉ. अचला नागर का जन्म [[2 दिसंबर]], [[1939]] को [[लखनऊ]], [[उत्तर प्रदेश]] में हुआ था। वे मूर्धन्य साहित्यकार [[अमृतलाल नागर|स्वर्गीय अमृतलाल नागर]] की बेटी हैं। [[साहित्य]] उनकी विरासत रहा है और पूरब में साहित्य, संस्कृति और परम्परा का जो यशस्वी अतीत है, उसका सर्वोत्कृट उन्होंने बचपन और जीवन से पाया है। डॉ. अचला नागर का बचपन [[लखनऊ]] में बीता। मायानगरी [[मुम्बई]] का आकर्षण उनके बाबूजी को मुम्बई ले आया था मगर वे चकाचौंधभरी दुनिया से जल्दी ही भरपाये। यद्यपि वे जितने दिन वहाँ रहे, अपनी गरिमा और ठसक के साथ और लौटे तो फिर लखनऊ में अपने सृजन में मगर हो गये। डॉ. अचला नागर प्रख्यात फ़िल्मकार [[बी.आर. चोपड़ा]] की निर्माण संस्था बी.आर. फ़िल्म्स से जुड़ीं और उनके लिए एक सफल फ़िल्म 'निकाह' की पटकथा लिखी। यह फ़िल्म बहुत चर्चित हुई थी। जे. ओमप्रकाश निर्देशित फ़िल्म 'आखिर क्यों' को एक स्त्री की सशक्त अभिव्यक्ति के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण फ़िल्म माना जाता है। इसमें [[स्मिता पाटिल]] की निभायी गयी भूमिका यादगार है और याद की जाती है। | ||
====लेखन शैली==== | ====लेखन शैली==== | ||
डॉ. अचला नागर की पटकथा में रिश्ते-नाते, जवाबदारियाँ, वफाएँ, प्रेम, जज्बात, निबाह के छोटे-छोटे दृश्य इतने सशक्त होते हैं कि दर्शक बँधा रहता है। यह सचमुच रेखांकित करने वाली चीज़ है कि एक स्त्री-सर्जक मानवीय जीवन के समूचे परिदृश्य को जिस संवेदना की निगाह से देखती है, जिस गहराई से उसका आकलन करती है, उतनी नजदीकी पुरुष पटकथाकारों में शायद नहीं होती। डॉ. अचला नागर का ज़िक्र करते हुए ख़ासतौर पर उनकी एक सशक्त फ़िल्म 'बागवान' की बात करना बहुत उचित इसलिए लगता है कि इस फ़िल्म के माध्यम से ही [[अमिताभ बच्चन]] अरसे और अन्तराल बाद किसी अच्छी भूमिका के लिए एकदम नोटिस किए गये थे। बागवान बिना किसी अतिरिक्त व्यावसायिक सावधानी या प्रचार के प्रदर्शित फ़िल्म थी जो [[परिवार|परिवारों]] ने पसन्द की थी और सफल भी थी। बागवान बरसों याद रहने वाली फ़िल्म थी। बाद में डॉ. अचला नागर ने रवि चोपड़ा के लिए 'बाबुल' फ़िल्म की पटकथा भी लिखी थी, यद्यपि वह उतनी सफल नहीं हुई मगर उसका विषय आज के सन्दर्भ में काफ़ी साहसिक था। डॉ. अचला नागर की पटकथा की यह विशेषता है कि उसकी हिन्दी और भाषा-विन्यास बहुत मायने रखता है। कलाकार उसे परदे पर प्रभावी ढंग से अभिव्यक्त करते हैं और वह रूटीन फ़िल्मों से अलग हटकर होती है। ईश्वर, मेरा पति सिर्फ मेरा है, निगाहें, नगीना, सदा सुहागन आदि उनकी अन्य चर्चित फ़िल्में हैं।<ref>{{cite web |url=http://mishrsunil.blogspot.in/2011/06/blog-post_16.html |title=लेखिकाओं की पटकथाएँ और संवेदना |accessmonthday=7 अक्टूबर |accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=सुनील मिश्र (ब्लॉग) |language=हिन्दी }}</ref> | डॉ. अचला नागर की पटकथा में रिश्ते-नाते, जवाबदारियाँ, वफाएँ, प्रेम, जज्बात, निबाह के छोटे-छोटे दृश्य इतने सशक्त होते हैं कि दर्शक बँधा रहता है। यह सचमुच रेखांकित करने वाली चीज़ है कि एक स्त्री-सर्जक मानवीय जीवन के समूचे परिदृश्य को जिस संवेदना की निगाह से देखती है, जिस गहराई से उसका आकलन करती है, उतनी नजदीकी पुरुष पटकथाकारों में शायद नहीं होती। डॉ. अचला नागर का ज़िक्र करते हुए ख़ासतौर पर उनकी एक सशक्त फ़िल्म 'बागवान' की बात करना बहुत उचित इसलिए लगता है कि इस फ़िल्म के माध्यम से ही [[अमिताभ बच्चन]] अरसे और अन्तराल बाद किसी अच्छी भूमिका के लिए एकदम नोटिस किए गये थे। बागवान बिना किसी अतिरिक्त व्यावसायिक सावधानी या प्रचार के प्रदर्शित फ़िल्म थी जो [[परिवार|परिवारों]] ने पसन्द की थी और सफल भी थी। बागवान बरसों याद रहने वाली फ़िल्म थी। बाद में डॉ. अचला नागर ने रवि चोपड़ा के लिए 'बाबुल' फ़िल्म की पटकथा भी लिखी थी, यद्यपि वह उतनी सफल नहीं हुई मगर उसका विषय आज के सन्दर्भ में काफ़ी साहसिक था। डॉ. अचला नागर की पटकथा की यह विशेषता है कि उसकी हिन्दी और भाषा-विन्यास बहुत मायने रखता है। कलाकार उसे परदे पर प्रभावी ढंग से अभिव्यक्त करते हैं और वह रूटीन फ़िल्मों से अलग हटकर होती है। ईश्वर, मेरा पति सिर्फ मेरा है, निगाहें, नगीना, सदा सुहागन आदि उनकी अन्य चर्चित फ़िल्में हैं।<ref>{{cite web |url=http://mishrsunil.blogspot.in/2011/06/blog-post_16.html |title=लेखिकाओं की पटकथाएँ और संवेदना |accessmonthday=7 अक्टूबर |accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=सुनील मिश्र (ब्लॉग) |language=हिन्दी }}</ref> | ||
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बाबूजी-बेटाजी एंड कंपनी' लगभग दो-तीन दर्जन सफल फ़िल्मों और धारावाहिकों की पटकथा एवं संवाद लेखिका अचला नागर का अपने पिता सुप्रसिद्ध साहित्यकार [[अमृतलाल नागर]] के संबंध में लिखे गए संस्मरणों का संग्रह है। इन संस्मरणों में उन्होंने अपने होश संभालने से लेकर पिता की मृत्यु तक के विभिन्न कालखंडों का जीवंत चित्रण किया है। चित्रण की इस जीवंतता के कारण ही यह पुस्तक अत्यंत पठनीय और रुचिकर बन पड़ी है। इसमें अमृतलाल नागर के लेखकीय और गैर-लेखकीय दोनों व्यक्तित्व बखूबी उभर कर सामने आए हैं। यह लेखिका के रचनात्मक कौशल का कमाल है। इन संस्मरणों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि ये संस्मरण एक बेटी का अपने साहित्यकार पिता के प्रति भावुक उद्गार नहीं है बल्कि इनमें उन्हीं पक्षों को उठाया गया है जिनका महत्व निजी के साथ-साथ सार्वजनिक भी हो। घटनाओं के चयन संबंधी इस लेखकीय विवेक के कारण ये संस्मरण स्थायी महत्व के हो गए हैं।<ref>{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/hindi-books-review/%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A5%82%E0%A4%9C%E0%A5%80-%E0%A4%AC%E0%A5%87%E0%A4%9F%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A5%80-%E0%A4%8F%E0%A4%82%E0%A4%A1-%E0%A4%95%E0%A4%82%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A5%80-109120200050_1.htm |title=बाबूजी-बेटाजी एंड कंपनी |accessmonthday=7 अक्टूबर |accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=वेबदुनिया हिंदी |language=हिन्दी }}</ref> | बाबूजी-बेटाजी एंड कंपनी' लगभग दो-तीन दर्जन सफल फ़िल्मों और धारावाहिकों की पटकथा एवं संवाद लेखिका अचला नागर का अपने पिता सुप्रसिद्ध साहित्यकार [[अमृतलाल नागर]] के संबंध में लिखे गए संस्मरणों का संग्रह है। इन संस्मरणों में उन्होंने अपने होश संभालने से लेकर पिता की मृत्यु तक के विभिन्न कालखंडों का जीवंत चित्रण किया है। चित्रण की इस जीवंतता के कारण ही यह पुस्तक अत्यंत पठनीय और रुचिकर बन पड़ी है। इसमें [[अमृतलाल नागर]] के लेखकीय और गैर-लेखकीय दोनों व्यक्तित्व बखूबी उभर कर सामने आए हैं। यह लेखिका के रचनात्मक कौशल का कमाल है। इन संस्मरणों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि ये संस्मरण एक बेटी का अपने साहित्यकार पिता के प्रति भावुक उद्गार नहीं है बल्कि इनमें उन्हीं पक्षों को उठाया गया है जिनका महत्व निजी के साथ-साथ सार्वजनिक भी हो। घटनाओं के चयन संबंधी इस लेखकीय विवेक के कारण ये संस्मरण स्थायी महत्व के हो गए हैं।<ref>{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/hindi-books-review/%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A5%82%E0%A4%9C%E0%A5%80-%E0%A4%AC%E0%A5%87%E0%A4%9F%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A5%80-%E0%A4%8F%E0%A4%82%E0%A4%A1-%E0%A4%95%E0%A4%82%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A5%80-109120200050_1.htm |title=बाबूजी-बेटाजी एंड कंपनी |accessmonthday=7 अक्टूबर |accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=वेबदुनिया हिंदी |language=हिन्दी }}</ref> | ||
==सम्मान और पुरस्कार== | ==सम्मान और पुरस्कार== | ||
* साहित्य भूषण पुरस्कार | * साहित्य भूषण पुरस्कार |
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अचला नागर
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पूरा नाम | डॉ. अचला नागर |
जन्म | 2 दिसंबर, 1939 |
जन्म भूमि | लखनऊ, उत्तर प्रदेश |
अभिभावक | पिता- अमृतलाल नागर |
संतान | संदीपन नागर |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | फ़िल्म पटकथा एवं कहानी |
मुख्य रचनाएँ | नायक-खलनायक, बोल मेरी मछली (कहानी संग्रह), निकाह, आखिर क्यों, बागबान, ईश्वर (फ़िल्म पटकथा) आदि। |
भाषा | हिन्दी |
पुरस्कार-उपाधि | साहित्य भूषण पुरस्कार, हिन्दी उर्दू साहित्य एवार्ड कमेटी सम्मान, यशपाल अनुशंसा सम्मान, साहित्य शिरोमणि सम्मान। |
नागरिकता | भारतीय |
संपर्क | क्लासिक अपार्टमेन्ट, 3डी/603 पाटलीपुत्र नगर, ओशियारा, जोगेश्वरी (पश्चिम) मुंबई |
अद्यतन | 18:58, 7 अक्टूबर 2014 (IST)
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इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
अचला नागर (अंग्रेज़ी: Achala Nagar , जन्म- 2 दिसंबर, 1939, लखनऊ, उत्तर प्रदेश) प्रसिद्ध फ़िल्म पटकथा एवं संवाद लेखिका हैं। उनकी पटकथा में रिश्ते-नाते, जवाबदारियाँ, वफाएँ, प्रेम, जज्बात, निबाह के छोटे-छोटे दृश्य इतने सशक्त होते हैं कि दर्शक बँधा रहता है। 'ईश्वर', 'मेरा पति सिर्फ मेरा है', 'निगाहें', 'नगीना', 'सदा सुहागन' आदि उनकी चर्चित फ़िल्में हैं।
जीवन परिचय
डॉ. अचला नागर का जन्म 2 दिसंबर, 1939 को लखनऊ, उत्तर प्रदेश में हुआ था। वे मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय अमृतलाल नागर की बेटी हैं। साहित्य उनकी विरासत रहा है और पूरब में साहित्य, संस्कृति और परम्परा का जो यशस्वी अतीत है, उसका सर्वोत्कृट उन्होंने बचपन और जीवन से पाया है। डॉ. अचला नागर का बचपन लखनऊ में बीता। मायानगरी मुम्बई का आकर्षण उनके बाबूजी को मुम्बई ले आया था मगर वे चकाचौंधभरी दुनिया से जल्दी ही भरपाये। यद्यपि वे जितने दिन वहाँ रहे, अपनी गरिमा और ठसक के साथ और लौटे तो फिर लखनऊ में अपने सृजन में मगर हो गये। डॉ. अचला नागर प्रख्यात फ़िल्मकार बी.आर. चोपड़ा की निर्माण संस्था बी.आर. फ़िल्म्स से जुड़ीं और उनके लिए एक सफल फ़िल्म 'निकाह' की पटकथा लिखी। यह फ़िल्म बहुत चर्चित हुई थी। जे. ओमप्रकाश निर्देशित फ़िल्म 'आखिर क्यों' को एक स्त्री की सशक्त अभिव्यक्ति के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण फ़िल्म माना जाता है। इसमें स्मिता पाटिल की निभायी गयी भूमिका यादगार है और याद की जाती है।
लेखन शैली
डॉ. अचला नागर की पटकथा में रिश्ते-नाते, जवाबदारियाँ, वफाएँ, प्रेम, जज्बात, निबाह के छोटे-छोटे दृश्य इतने सशक्त होते हैं कि दर्शक बँधा रहता है। यह सचमुच रेखांकित करने वाली चीज़ है कि एक स्त्री-सर्जक मानवीय जीवन के समूचे परिदृश्य को जिस संवेदना की निगाह से देखती है, जिस गहराई से उसका आकलन करती है, उतनी नजदीकी पुरुष पटकथाकारों में शायद नहीं होती। डॉ. अचला नागर का ज़िक्र करते हुए ख़ासतौर पर उनकी एक सशक्त फ़िल्म 'बागवान' की बात करना बहुत उचित इसलिए लगता है कि इस फ़िल्म के माध्यम से ही अमिताभ बच्चन अरसे और अन्तराल बाद किसी अच्छी भूमिका के लिए एकदम नोटिस किए गये थे। बागवान बिना किसी अतिरिक्त व्यावसायिक सावधानी या प्रचार के प्रदर्शित फ़िल्म थी जो परिवारों ने पसन्द की थी और सफल भी थी। बागवान बरसों याद रहने वाली फ़िल्म थी। बाद में डॉ. अचला नागर ने रवि चोपड़ा के लिए 'बाबुल' फ़िल्म की पटकथा भी लिखी थी, यद्यपि वह उतनी सफल नहीं हुई मगर उसका विषय आज के सन्दर्भ में काफ़ी साहसिक था। डॉ. अचला नागर की पटकथा की यह विशेषता है कि उसकी हिन्दी और भाषा-विन्यास बहुत मायने रखता है। कलाकार उसे परदे पर प्रभावी ढंग से अभिव्यक्त करते हैं और वह रूटीन फ़िल्मों से अलग हटकर होती है। ईश्वर, मेरा पति सिर्फ मेरा है, निगाहें, नगीना, सदा सुहागन आदि उनकी अन्य चर्चित फ़िल्में हैं।[1]
मुख्य कृतियाँ
डॉ. अचला नागर की प्रमुख कृतियाँ जिसमें कहानी संग्रह, संस्मरण एवं हिन्दी फ़िल्मों की पटकथा सूची शामिल है, निम्नलिखित हैं-
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बाबूजी बेटाजी एंड कम्पनी
बाबूजी-बेटाजी एंड कंपनी' लगभग दो-तीन दर्जन सफल फ़िल्मों और धारावाहिकों की पटकथा एवं संवाद लेखिका अचला नागर का अपने पिता सुप्रसिद्ध साहित्यकार अमृतलाल नागर के संबंध में लिखे गए संस्मरणों का संग्रह है। इन संस्मरणों में उन्होंने अपने होश संभालने से लेकर पिता की मृत्यु तक के विभिन्न कालखंडों का जीवंत चित्रण किया है। चित्रण की इस जीवंतता के कारण ही यह पुस्तक अत्यंत पठनीय और रुचिकर बन पड़ी है। इसमें अमृतलाल नागर के लेखकीय और गैर-लेखकीय दोनों व्यक्तित्व बखूबी उभर कर सामने आए हैं। यह लेखिका के रचनात्मक कौशल का कमाल है। इन संस्मरणों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि ये संस्मरण एक बेटी का अपने साहित्यकार पिता के प्रति भावुक उद्गार नहीं है बल्कि इनमें उन्हीं पक्षों को उठाया गया है जिनका महत्व निजी के साथ-साथ सार्वजनिक भी हो। घटनाओं के चयन संबंधी इस लेखकीय विवेक के कारण ये संस्मरण स्थायी महत्व के हो गए हैं।[2]
सम्मान और पुरस्कार
- साहित्य भूषण पुरस्कार
- हिन्दी उर्दू साहित्य एवार्ड कमेटी सम्मान
- यशपाल अनुशंसा सम्मान
- साहित्य शिरोमणि सम्मान
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ लेखिकाओं की पटकथाएँ और संवेदना (हिन्दी) सुनील मिश्र (ब्लॉग)। अभिगमन तिथि: 7 अक्टूबर, 2014।
- ↑ बाबूजी-बेटाजी एंड कंपनी (हिन्दी) वेबदुनिया हिंदी। अभिगमन तिथि: 7 अक्टूबर, 2014।
बाहरी कड़ियाँ
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