प्रभा खेतान
प्रभा खेतान
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पूरा नाम | डॉ. प्रभा खेतान |
जन्म | 1 नवंबर, 1942 |
मृत्यु | 20 सितंबर, 2009 |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | प्रभा खेतान फाउन्डेशन की संस्थापक अध्यक्षा |
मुख्य रचनाएँ | कविता संग्रह- 'अपरिचित उजले', 'सीढ़ीयां चढ़ती ही मैं'; उपन्यास- 'आओ पेपे घर चले', 'तालाबंदी' आदि। |
भाषा | हिन्दी |
विद्यालय | कोलकाता विश्वविद्यालय |
शिक्षा | स्नातकोत्तर (दर्शन शास्त्र) |
प्रसिद्धि | उपन्यासकार, कवयित्री |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | प्रभा खेतान के साहित्य में स्त्री यंत्रणा को आसानी से देखा जा सकता है। बंगाली स्त्रियों के बहाने उन्होंने स्त्री जीवन में काफ़ी बारीकी से झांकने का बखूबी प्रयास किया। उन्होंने कई निबन्ध भी लिखे। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
प्रभा खेतान (अंग्रेज़ी: Prabha Khaitan, जन्म: 1 नवंबर, 1942; मृत्यु: 20 सितंबर, 2009) प्रभा खेतान फाउन्डेशन की संस्थापक अध्यक्षा, नारी विषयक कार्यों में सक्रिय रूप से भागीदार, फिगरेट नामक महिला स्वास्थ्य केन्द्र की स्थापक, 1966 से 1976 तक चमड़े तथा सिले-सिलाए वस्त्रों की निर्यातक, अपनी कंपनी 'न्यू होराईजन लिमिटेड' की प्रबंध निदेशिका, हिन्दी भाषा की लब्ध प्रतिष्ठित उपन्यासकार, कवयित्री तथा नारीवादी चिंतक तथा समाज सेविका थीं। उन्हें कलकत्ता चैंबर ऑफ़ कॉमर्स की एकमात्र महिला अध्यक्ष होने का गौरव प्राप्त था। वे केन्द्रीय हिन्दी संस्थान की सदस्या थीं।
जीवनी
कोलकाता विश्वविद्यालय से दर्शन शास्त्र में स्नातकोत्तर उपाधि लेने वाली प्रभा ने "ज्यां पॉल सार्त्र के अस्तित्त्ववाद" पर पी.एचडी की थी। उन्होंने 12 वर्ष की उम्र से ही अपनी साहित्य यात्रा की शुरुवात कर दी थी और उनकी पहली रचना (कविता) 'सुप्रभात' में छपी थी, तब वे सातवीं कक्षा की छात्रा थी। 1980-1981 से वे पूर्ण कालिन साहित्यिक सेवा में लग गईं। सीने में तकलीफ के बाद कोलकाता के आमरी अस्पताल में उनका उपचार चला तथा हुई बाईपास सर्जरी के दौरान प्रभा खेतान को असामयिक निधन 20 सितम्बर, 2009 को हुआ।
उल्लेखनीय योगदान
फ्रांसीसी रचनाकार सिमोन द बोउवा की पुस्तक ‘दि सेकेंड सेक्स’ के अनुवाद ‘स्त्री उपेक्षिता’ ने उन्हें काफ़ी चर्चित किया। इसके अतिरिक्त उनकी कई पुस्तकें जैसे बाज़ार बीच बाज़ार के ख़िलाफ़ और उपनिवेश में स्त्री जैसी रचनाओं ने उनकी नारीवादी छवि को स्थापित किया। अपने जीवन के अनछुए पहलुओं को उजागर करने वाली आत्मकथा ‘अन्या से अनन्या’ लिखकर सौम्य और शालीन प्रभा खेतान ने साहित्य जगत् को चौंका दिया। डॉ. प्रभा खेतान के साहित्य में स्त्री यंत्रणा को आसानी से देखा जा सकता है। बंगाली स्त्रियों के बहाने इन्होंने स्त्री जीवन में काफ़ी बारीकी से झांकने का बखूबी प्रयास किया। आपने कई निबन्ध भी लिखे। डॉ. प्रभा खेतान को जहाँ स्त्रीवादी चिन्तक होने का गौरव प्राप्त हुआ वहीं वे स्त्री चेतना के कार्यों में सक्रिय रूप से भी आप हिस्सा लेती रहीं। उन्हें 'प्रतिभाशाली महिला पुरस्कार' और टॉप पर्सनैलिटी अवार्ड' भी प्रदान किया गया। साहित्य में उल्लेखनीय योगदान के लिये केन्द्रीय हिन्दी संस्थान का 'महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार' राष्ट्रपति ने उन्हें अपने हाथों से प्रदान किया।
पुस्तकें
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पुरस्कार और सम्मान
प्रभा खेतान ने व्यवसाय से साहित्य, घर से सामाजिक कार्यों तथा देश से विदेशों तक के सफर में अनेक मंजिलें तय कीं। धरातल से शुरू किए अपने जीवन को खुले आकाश की ऊंचाईयों तक पहुंचाने के प्रभा के साहस और क्षमता को कई पुरस्कार-सम्मानों से भी नवाजा गया।
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- हांलाकि ये पुरस्कार और सम्मान उनकी प्रतिभा को आंकने के लिए पूर्ण तो नहीं माने जा सकते फिर भी उनके विराट व्यक्तित्व के ये छोटे-छोटे अवलम्ब अवश्य बनें।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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