विनोदशंकर व्यास

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विनोदशंकर व्यास
पूरा नाम विनोदशंकर व्यास
जन्म 1903
जन्म भूमि काशी, उत्तर प्रदेश
अभिभावक कालीशंकर व्यास (पिता)
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र हिन्दी साहित्य
मुख्य रचनाएँ 'उपन्यास कला', 'कहानी कला', 'प्रसाद और उनका साहित्य' तथा 'मेरी कहानी' आदि।
भाषा हिन्दी
प्रसिद्धि साहित्यकार व कहानीकार
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी व्यास जी ने कुछ हिन्दी साहित्यकारों से सम्बन्धित संस्मरण भी लिखे हैं। 'मधुकरी' नाम से एक कहानी संग्रह भी प्रकाशित कराया है।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

विनोदशंकर व्यास (जन्म- 1903, काशी, उत्तर प्रदेश) हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। इनके पितामह रामशंकर व्यास भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के घनिष्ठ मित्रों में से एक थे। एक शैलीकार के रूप में व्यास जी हिन्दी के मान्य लेखकों में से एक थे। उनकी रचना शैली इतनी विशिष्ट है कि हिन्दी के साहित्यकारों पर उनके लिखे कुछ संस्मरण अपने युग का चित्र खींच देते है।

जन्म

विनोदशंकर व्यास का जन्म भारत की प्राचीन नगरी काशी (वर्तमान बनारस) में सन 1903 ई. में हुआ था। उनके पिता का नाम कालीशंकर व्यास था, जो अपने समय के अच्छे कवि थे और पितामह रामशंकर व्यास भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के मित्र थे।

लेखन कार्य

जयशंकर प्रसाद से मित्रता के बाद विनोदशंकर व्यास साहित्यिक मण्डली के केन्द्र बिन्दू बन गये। ‘नवपल्लम’ इनका कहानी संग्रह था, जिससे लोगों ने इनकी सृजनात्मकता को जाना। विनोदशंकर व्यास का पहला उपन्यास 'अशान्त’, दूसरा कहानी संग्रह 'तुलिका' है। इन्होंने दर्जनों कृतियाँ उपन्यास व कहानी से संबंधित लिखी थीं। उन्होंने यूरोपीय लेखकों और दार्शनिकों के विचारों से हिन्दी जगत को परिचित कराने के लिए जो निबंध लिखे, वे अविस्मरणीय व अद्वितीय हैं।

आलोचनात्मक ग्रंथ

आलोचनात्मक ग्रंथों में विनोदशंकर व्यास के 'उपन्यास कला' (1932) और 'कहानी कला' (1935) मुख्य है। उनकी 'प्रसाद और उनका साहित्य' नामक आलोचना पुस्तक गम्भीर और महत्त्वपूर्ण है। यह पुस्तक सर्वप्रथम 1940 ई. में प्रकाशित हुई थी। उन्होंने 1952 में पाश्चात्य साहित्यकारों की जीवनी पर एक पुस्तक लिखी। इसी सिलसिले में 1955 में यूरोपीय साहित्य पर एक आलोचनात्मक ग्रंथ भी लिखा। अच्छे कहानी लेखक होने के नाते व्यास जी की कहानियों का भी विशेष महत्त्व है। 1958 में उनकी कहानियों का एक संग्रह 'मेरी कहानी' के नाम से प्रकाशित हुआ था।[1]

शैली

विनोदशंकर व्यास की शैली इतनी विशिष्ट है कि हिन्दी के साहित्यकारों पर उनके द्वारा लिखे कुछ संस्मरण अपने युग का चित्र खींच देते है। कहानियों में भी कला पक्ष का पूर्ण निर्वाह शैली की प्रांजलता के साथ-साथ हुआ। 'कहानी कला' पर आपकी पुस्तक में रूढ़िग्रस्त नियमों और उनकी उपलब्धियों पर अच्छी चर्चा की गयी है। उपन्यास कला पर भी आपने केवल कला पक्ष के स्वीकृत सिद्धांतों का प्रतिपादन किया है। व्यक्तिगत व्याख्या या दृष्टिकोण उसमें कम है। यूरोपीय साहित्यकारों पर लिखी गयी पुस्तक हिन्दी के पाठकों को प्राथमिक ज्ञान प्रदान करने में बड़ी सहायक हुई है। व्यास जी ने कुछ हिन्दी साहित्यकारों से सम्बन्धित संस्मरण भी लिखे हैं। 'मधुकरी' नाम से एक कहानी संग्रह भी प्रकाशित कराया है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी साहित्य कोश, भाग 2 |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |संपादन: डॉ. धीरेंद्र वर्मा |पृष्ठ संख्या: 568 |

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