नीलमणि फूकन (कनिष्ठ)
नीलमणि फूकन (कनिष्ठ)
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पूरा नाम | नीलमणि फूकन |
जन्म | 10 सितम्बर, 1933 |
जन्म भूमि | दरगाँ, असम |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | असमिया साहित्य |
मुख्य रचनाएँ | 'सूर्य हेनो नामि अहे एई नादियेदी', 'मानस-प्रतिमा', 'फुली ठका', 'सूर्यमुखी फुल्तोर फाले' आदि। |
भाषा | असमिया भाषा |
पुरस्कार-उपाधि | ज्ञानपीठ पुरस्कार, 2020 पद्म श्री, 1990 |
प्रसिद्धि | असमिया कवि व साहित्यकार |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | प्रगतिशील सोच वाले आधुनिक कवि नीलमणि फूकन करीब सात दशकों से कविता कर्म में सक्रिय हैं, जिन्होंने असमिया कविता को नया अंदाज प्रदान किया है। |
अद्यतन | 17:55, 2 अक्टूबर 2022 (IST)
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इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
नीलमणि फूकन (अंग्रेज़ी: Nilmani Phookan, जन्म- 10 सितम्बर, 1933) भारतीय राज्य असम के प्रसिद्ध कवि और साहित्यकार हैं। वह 'जनकवि' के रूप में जाने जाते हैं। असमिया साहित्य में उन्हें ऋषि तुल्य माना जाता है। असमिया साहित्य में विशेष स्थान रखने वाले नीलमणि फूकन पद्म श्री, साहित्य अकादमी पुरस्कार, असम वैली अवार्ड, 56वाँ ज्ञानपीठ पुरस्कार तथा साहित्य अकादमी फैलोशिप सहित कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किए जा चुके हैं। ज्ञानपीठ पुरस्कार पाने वाले वह असम से तीसरे साहित्यकार हैं।
परिचय
असम के गोलघाट जिले में 10 सितंबर, 1933 को जन्मे नीलमणि फूंकन मूलत: असमिया भाषा के भारतीय कवि और कथाकार हैं। उनका कैनवास विशाल है, उनकी कल्पना पौराणिक है, उनकी आवाज लोक-आग्रह बोली है, उनकी चिंताएं राजनीतिक से लेकर कॉस्मिक तक, समकालीन से लेकर आदिम तक है।
नीलमणि फूकन ने 1950 के दशक की शुरुआत से ही कविताएं लिखना शुरू कर दिया था और 1961 में गुवाहाटी विश्वविद्यालय से इतिहास में मास्टर डिग्री प्राप्त प्राप्त करने के बाद 1964 में गुवाहाटी में आर्य विद्यापीठ कॉलेज में व्याख्याता के रूप में कॅरियर की शुरुआत की, जहां वे 1992 में अपनी सेवानिवृत्ति तक कार्यरत रहे।
लेखन कार्य
नीलमणि फूकन जिन परिदृश्यों का उदाहरण देते हैं, वे महाकाव्यात्मक और मौलिक हैं। वह आग और पानी, ग्रह और तारा, जंगल और रेगिस्तान, मनुष्य और पर्वत, समय और स्थान, युद्ध और शांति, जीवन और मृत्यु की बात करते हैं। फिर भी उनके यहां न केवल एक ऋषि की तरह चिंतनशील वैराग्य है, बल्कि तात्कालिकता के साथ-साथ पीड़ा और हानि की गहरी भावना भी है। उन्होंने कविता की तेरह पुस्तकें लिखी हैं।
कृतियाँ
- 'सूर्य हेनो नामि अहे एई नादियेदी'
- 'मानस-प्रतिमा'
- 'फुली ठका'
- 'सूर्यमुखी फुल्तोर फाले'
प्रगतिशील सोच वाले आधुनिक कवि नीलमणि फूकन करीब सात दशकों से कविता कर्म में सक्रिय हैं, जिन्होंने असमिया कविता को नया अंदाज प्रदान किया है। आत्मकथा और 13 कविता संग्रह के अलावा आलोचना पर भी उनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उनकी उल्लेखनीय कृतियों में 'सूर्य हेनु नामी आहे ए नोडियेदी', 'गुलापी जमुर लग्न', 'कोबिता' इत्यादि प्रमुख रूप से शामिल हैं। उन्होंने जापान और यूरोप की कविताओं का असमिया में अनुवाद भी किया। डिब्रूगढ़ विश्वविद्यालय द्वारा उन्हें 2019 में डी.लिट् से सम्मानित किया गया था।
पुरस्कार व सम्मान
- सुप्रसिद्ध कथाकार और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकार प्रतिभा राय की अध्यक्षता में हुई चयन समिति की बैठक में वर्ष 2020 के लिए असमिया साहित्यकार नीलमणि फूकन को 56वां ज्ञानपीठ पुरस्कार देने का निर्णय लिया गया था। बैठक में चयन समिति के अन्य सदस्य माधव कौशिक, सैय्यद मोहम्मद अशरफ, प्रो. हरीश त्रिवेदी, प्रो. सुरंजन दास, प्रो. पुरुषोत्तम बिल्माले, चंद्रकांत पाटिल, डॉ. एस मणिवालन, प्रभा वर्मा, प्रो. असग़र वजाहत और मधुसुदन आनन्द शामिल थे।[1]
- पद्म श्री, 1990
- साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1981
- असम वैली अवार्ड
नीलमणि फूकन ज्ञानपीठ प्राप्त करने वाले तीसरे असमिया लेखक हैं। इससे पहले पुरस्कार पाने वालों में 1979 में बीरेन्द्र कुमार भट्टाचार्य और 2000 में ममोनी रईसम गोस्वामी थे।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ नीलमणि फूकन (हिंदी) kavita.com। अभिगमन तिथि: 02 अक्टूबर, 2022।
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