टी. एल. वासवानी
टी. एल. वासवानी
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पूरा नाम | थांवरदास लीलाराम वासवानी |
अन्य नाम | साधु वासवानी |
जन्म | 25 नवंबर, 1879 |
जन्म भूमि | हैदराबाद |
मृत्यु | 16 जनवरी, 1966 |
मृत्यु स्थान | पूना, महाराष्ट्र |
कर्म भूमि | भारत |
मुख्य रचनाएँ | 'अवेक यंग इंडिय', 'इंडियाज एड़वेंचर', 'इंडिया इन चेन्स', 'दि सीक्रेट ऑफ एशिया', 'माई मदरलैंड', 'बिल्डर्स ऑफ टुमारो'। |
शिक्षा | बी.ए.; एम.ए. |
प्रसिद्धि | लेखक और शिक्षाविद |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | टी. एल. वासवानी ने देश की स्वाधीनता के संग्राम का समर्थन किया। इस विषय में महात्मा गाँधी के पत्र 'यंग इंडिया' में उन्होंने कई लेख भी लिखे। बालिकाओं की शिक्षा के लिए भी वासवानी ने अनेक योजनाएं आरंभ कीं। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
टी. एल. वासवानी (अंग्रेज़ी: T. L. Vaswani, जन्म- 25 नवंबर, 1879, हैदराबाद; मृत्यु- 16 जनवरी, 1966, पूना, महाराष्ट्र) प्रसिद्ध लेखक, शिक्षाविद और भारतीय संस्कृति के प्रचारक थे। वासवानी ने देश की स्वाधीनता के संग्राम का समर्थन किया था। इस विषय में गांधी जी के पत्र 'यंग इंडिया' में उन्होंने कई लेख लिखे थे। भारत सरकार ने टी. एल. वासवानी की स्मृति में डाक टिकट भी निकाला था।[1]
जन्म तथा शिक्षा
प्रसिद्ध लेखक, शिक्षाविद और भारतीय संस्कृति के प्रचारक टी. एल. वासवानी का जन्म 25 नवंबर, 1879 ई. को ब्रिटिशकालीन भारत में हैदराबाद (सिंध) में हुआ था। उनका पूरा नाम 'थांवरदास लीलाराम वासवानी' था, पर वे टी. एल. वासवानी के नाम से विख्यात हुए। वासवानी प्रतिभावान विद्यार्थी तो थे ही, बचपन से ही उनकी रुचि आध्यात्मिक विषयों की ओर भी हो गई थी। उनका कहना था कि आठ वर्ष की उम्र में ही उन्होंने चारों ओर शून्य के बीच एक ज्योति के दर्शन किए थे और वही ज्योति अपने अंदर भी अनुभव की थी। वासवानी ने अपनी शिक्षा पूरे मनोयोग से पूरी की। मैट्रिक और बी.ए. में वे पूरे सिंध प्रांत में प्रथम आए। एम.ए. करने के बाद वे पहले टी. जी. कॉलेज और दयालसिंह कॉलेज, लाहौर में प्रोफेसर तथा बाद में कूच बिहार के विक्टोरिया कॉलेज के एवं पटियाला के महेद्र कॉलेज के प्रिंसिपल रहे थे।
धार्मिक विषयों पर प्रवचन
साथ ही वासवानी ने धार्मिक विषयों पर प्रवचन करना भी छोटी उम्र में ही शुरु कर दिया था। इससे धार्मिक वक्ता के रुप में उनकी ख्याती फैल गई थी। उन्हें बर्लिन (जर्मनी) से विश्व धर्म-सम्मेलन में भाग लेने का निमंत्रण मिला। वासवानी के वहां भाषण का यह प्रभाव पड़ा कि उन्हें यूरोप के विभिन्न नगरों में भारतीय धर्म पर प्रवचन के लिए आमंत्रित किया गया।[1]
कृतियाँ
वासवानी ने देश की स्वाधीनता के संग्राम का समर्थन किया था। इस विषय में गांधी जी के पत्र 'यंग इंडिया' में उन्होंने कई लेख लिखे। राष्ट्रीय जागरण के विषय में उनकी लिखी निम्न पुस्तकें बहुत लोकप्रिय हुईं-
- 'अवेक यंग इंडिय'
- 'इंडियाज एड़वेंचर'
- 'इंडिया इन चेन्स'
- 'दि सीक्रेट ऑफ एशिया'
- 'माई मदरलैंड'
- 'बिल्डर्स ऑफ टुमारो'
इनके अलावा भी अंग्रेज़ी व सिंधी में उन्होंने शताधिक पुस्तकें लिखी थीं।[1]
गरीबी का जीवन अपनाया
1918 ई. में वासवानी ने स्वेच्छा से ग़रीबी का जीवन अपना लिया। माँ की मृत्यु के बाद प्रिंसिपल पद से वे पहले ही मुक्त हो चुके थे। शिक्षा विशेषत: बालिकाओं की शिक्षा के लिए भी वासवानी ने अनेक योजनाएं आरंभ कीं। पुणे का लड़कियों का सेंट मीरा कॉलेज टी. एल. वासवानी की कृति है। वे हरि स्मरण और ग़रीबों की सेवा को धर्म मानते थे। वे कहते थे- "सबसे अच्छा मंदिर ग़रीब की आत्मा है जो अपना खाना-कपड़ा पाती है और भगवान को दुआएं देती है।" संसार से भाग कर जंगल, पर्वत या गुफा में तपस्या करना मनुष्य का उद्देश्य नहीं है। वे पशु-पक्षियों को भी मनुष्यों का भाई-बहन मानते थे। उन्हें फूलों को तोड़ने पर भी आपत्ती थी। वे कहते थे- "फूलों का भी अपना परिवार होता है, इसलिए उन्हें एक-दूसरे से अलग नहीं करना चाहिए।"
धार्मिक एकता के समर्थक
टी. एल. वासवानी की युवकों को संस्कारित करने और अच्छी शिक्षा देने में बहुत अधिक रुचि थी। वह भारतीय संस्कृति और धार्मिक सहिष्णुता के अनन्य उपासक थे। उनका मत था कि प्रत्येक बालक को धर्म की शिक्षा दी जानी चाहिए। वह सभी धर्मों को एक समान मानते थे। उनका कहना था कि- "प्रत्येक धर्म की अपनी-अपनी विषेशताएं हैं।" वह धार्मिक एकता के प्रबल समर्थक थे।
विश्वधर्म सम्मेलन में भाषण
वसवानी तीस वर्ष की आयु में भारत के प्रतिनिधि के रूप में विश्व धर्म सम्मेमेलन में भाग लेने के लिए बर्लिन गए। वहां पर उनका प्रभावशाली भाषण हुआ और बाद में वह पूरे यूरोप में धर्म प्रचार का कार्य करने के लिए गए। उनके भाशणों का बहुत गहरा प्रभाव लोगों पर होता था। वे मंत्रमुग्ध हो कर उन्हें सुनते रहते थे। वह बहुत ही प्रभावशाली वक्ता थे। जब वह बोलते थे तो श्रोता मंत्रमुग्ध होकर उन्हें सुनते रहते थे। श्रोताओं पर उनका बहुत गहरा प्रभाव पड़ता था। भारत के विभिन्न भागों में निरन्तर भ्रमण करके उन्होंने अपने विचारों को लागों के सामने रखा और उन्हें भारतीय संस्कृति से परिचित करवाया।
टी. एल. वासवानी उस युग में धरती पर आए, जब भारत परतंत्रता की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था। देश में स्वतंत्रता के लिए आन्दोलन हो रहे थे। कोई भी व्यक्ति इस आन्दोलन से अपने आपको अलग नहीं रख पाता था। बंगाल विभाजन के मामले पर उन्होंने सत्याग्रह में भाग लेकर सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया। बाद में भारत की स्वतंत्रता के लिए चलाए जा रहे आन्दोलनों में उन्होंने बढ़-चढ़ कर भाग लिया। वह महात्मा गाँधी की अहिंसा के बहुत बड़े प्रषंसक थे। उन्हें महात्मा गांधी के साथ मिलकर स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लेने का अवसर मिला था। वह किसानों के हितों के रक्षक थे। उनका मत था कि- "भूमिहीनों को भूमि देकर उन्हें आधुनिक तरीके से खेती करने के तरीके बताए जाने चाहिए।" इसके लिए सहकारी खेती का भी उन्होंने समर्थन किया था।
निधन
16 जनवरी, 1966 ई. को पूना में टी. एल. वासवानी का देहांत हो गया। भारत सरकार ने उनकी स्मृति में डाक टिकट निकाला था।
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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