संजीव चट्टोपाध्याय
संजीव चट्टोपाध्याय
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पूरा नाम | संजीव चट्टोपाध्याय |
जन्म | 24 अक्टूबर, 1936 |
जन्म भूमि | कलकत्ता, पश्चिम बंगाल |
पति/पत्नी | गीता चट्टोपाध्याय |
संतान | अपूर्वा चट्टोपाध्याय |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | लेखन |
भाषा | बांग्ला भाषा |
पुरस्कार-उपाधि | साहित्य अकादमी पुरस्कार, 2018 |
प्रसिद्धि | बांग्ला साहित्यकार, उपन्यासकार, लघु कथाकार |
नागरिकता | भारतीय |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
संजीव चट्टोपाध्याय (अंग्रेज़ी: Sanjib Chattopadhyay, जन्म- 24 अक्टूबर, 1936) बांग्ला भाषा के उपन्यासकार तथा लघु कथाकार थे। वर्ष 2018 में इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार (बांग्ला) से सम्मानित किया गया था।
परिचय
बंगाली साहित्यकार संजीव चट्टोपाध्याय की शैली को बहुत ही जीवंत भाषा के साथ मिश्रित छोटे व्यंग्य वाक्यों के उपयोग की विशेषता हासिल है। संजीब चट्टोपाध्याय ने अपना बचपन छोटा नागपुर पठार के पहाड़ी इलाके में अपने पिता की देखरेख में बिताया। उनकी मां की मृत्यु पांच वर्ष की उम्र में हुई थी।
शिक्षा
वे कलकत्ता स्थानांतरित हो गए और उन्हें विक्टोरिया इंस्टीट्यूशन स्कूल में भर्ती कराया गया, जिसमें उन्होंने सातवीं कक्षा में प्रवेश लिया। बाद में उन्होंने स्कॉटिश चर्च कॉलेज से स्नातक किया, जहाँ उन्होंने रसायनशास्त्र की शिक्षा प्राप्त की थी।
लेखन विषय
संजीव चट्टोपाध्याय के उपन्यास के विषय ज्यादातर कलकत्ता (आधुनिक कोलकाता) शहर में रहने वाले परिवार हैं। इन घरों की सीमा के भीतर वह शहर के तेजी से बदलते मध्यम वर्ग के नैतिक मूल्यों को चुनौती देता है। अक्सर बूढ़े लोगों को संजीव चट्टोपाध्याय अपने नायक के रूप में इस्तेमाल करते थे। ये वृद्ध पात्र उनके उपन्यास 'लोटाकंबल' (द वेसल एंड क्विल्ट) और 'शाखा प्रशाखा' (शाखाएं) में पाए जाने वाले आध्यात्मिक और दार्शनिक किनारे का निर्माण करते हैं। संभवतः उनकी रचनाओं में सबसे प्रसिद्ध लोटाकंबल है।
उनका सबसे प्रसिद्ध उपन्यास 'स्वेट पाथर टेबल' (द आइवरी टेबल) कहानी कहने की उनकी विशिष्ट शैली का एक उदाहरण है; जो तनाव, दुविधा, जिज्ञासा, दया, हास्य और व्यंग्य को मिलाता है। संजीव चट्टोपाध्याय ने बच्चों के लिए कथा साहित्य भी लिखा। पत्रिकाओं और समाचार पत्रों के लिए भी लिखना जारी रखा।
पुरस्कार
संजीव चट्टोपाध्याय सन 1981 में 'आनंद पुरस्कार' के प्राप्तकर्ता थे।
- उन्हें पश्चिम बंगाल सरकार से 'बंगा विभूषण पुरस्कार' मिला। (मई, 2012))
- उन्हें 82 वर्ष की आयु में उनके उपन्यास 'श्रीकृष्णनर शेष कथा' के लिए 2018 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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